किंग ऑफ विलेन Mac Mohan के जन्मदिन पर विशेष लेख 24 अप्रैल, 1938 को मोहन माकिजनी में जन्मे मैक मोहन ने भारतीय सिनेमा में अपने लिए एक अलग जगह बनाई. हालाँकि उनके जन्म प्रमाण पत्र पर "मोहन" लिखा हुआ था, लेकिन दर्शक उन्हें उनके खलनायक किरदारों के लिए सबसे अच्छी तरह से जानते थे By Mayapuri Desk 24 Apr 2024 in गपशप New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर 24 अप्रैल, 1938 को मोहन माकिजनी में जन्मे मैक मोहन ने भारतीय सिनेमा में अपने लिए एक अलग जगह बनाई. हालाँकि उनके जन्म प्रमाण पत्र पर "मोहन" लिखा हुआ था, लेकिन दर्शक उन्हें उनके खलनायक किरदारों के लिए सबसे अच्छी तरह से जानते थे, जिन्हें उन्होंने पर्दे पर जीवंत किया. आज, उनकी जयंती पर, हम इस प्रतिष्ठित अभिनेता के जीवन और करियर पर एक नज़र डालते हैं. मैक मोहन आपके सर्वोत्कृष्ट नायक नहीं थे. वह एक खलनायक के रूप में सफल हुए, उनकी खतरनाक उपस्थिति और तेज़ आवाज़ ने 70 और 80 के दशक में हिंदी सिनेमा पर एक अमिट छाप छोड़ी. क्रिकेटर से लेकर कल्ट विलेन तक 1938 में कराची, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मे मैक मोहन का बॉलीवुड तक का सफर दिलचस्प था. क्रिकेटर बनने का सपना लेकर वह बॉम्बे (अब मुंबई) पहुंचे. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. थिएटर की दुनिया की ओर आकर्षित होकर, उन्होंने बॉम्बे में फिल्मालय स्कूल ऑफ एक्टिंग में दाखिला लिया. यह निर्णय महत्वपूर्ण साबित हुआ और एक सफल अभिनय करियर का मार्ग प्रशस्त हुआ. आनंद की फिल्म हकीकत (1964) में अभिनय की शुरुआत करने से पहले मैक मोहन ने प्रसिद्ध चेतन आनंद के अधीन एक सहायक निर्देशक के रूप में शुरुआत की. अगले कुछ दशकों में, मैक मोहन ने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और अपने सशक्त अभिनय से अमिट छाप छोड़ी. 1970 और 80 के दशक में मैक मोहन खलनायक भूमिकाओं का पर्याय बन गये. उन्होंने 'डॉन', 'कर्ज', 'सत्ते पे सत्ता', 'जंजीर', 'रफू चक्कर', 'शान' और 'खून पसीना' जैसी फिल्मों में यादगार अभिनय किया. लेकिन शायद उनकी सबसे प्रतिष्ठित भूमिका रमेश सिप्पी की प्रतिष्ठित क्लासिक "शोले" में सांभा की है. गब्बर की तेज़ आवाज़ अब प्रसिद्ध पंक्ति प्रस्तुत करती है, "अरे ओ सांभा! कितने आदमी थे?" जिस पर सांभा का जवाब "तीन सरकार" आज भी प्रशंसकों के बीच गूंजता रहता है. The Versatile Villain मैक मोहन की बहुमुखी प्रतिभा हिंदी सिनेमा से परे तक फैली हुई थी. उन्होंने भोजपुरी, गुजराती और हरियाणवी, मराठी, पंजाबी, बंगाली और सिंधी फिल्मों की शोभा बढ़ाई, यहां तक कि कई विदेशी भाषाओं में संवाद भी बोले. दिलचस्प बात यह है कि उन्हें एकमात्र अभिनेता होने का अनूठा गौरव प्राप्त है, जिसका वास्तविक नाम, "मैक" अक्सर उनके चरित्र नामों के लिए उपयोग किया जाता था. दुख की बात है कि मैक मोहन का जीवन 2010 में समाप्त हो गया. उन्हें फेफड़ों के कैंसर का पता चला था और 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. आज, उनकी जयंती पर, हम भारतीय सिनेमा में मैक मोहन के योगदान का जश्न मनाते हैं. उनकी विरासत अनगिनत फिल्मों के माध्यम से जीवित है, जिसे उन्होंने अपनी उपस्थिति से समृद्ध किया है, जो हमें एक महान कहानी को आकार देने में एक यादगार खलनायक की शक्ति की याद दिलाती है. -Ayushi Sinha Read More: Padma Bhushan 2024: पद्म भूषण से सम्मानित हुई उषा उत्थुप पद्म भूषण से सम्मानित होने पर Mithun Chakraborty ने जाहिर की खुशी Mohanlal ने Shahrukh Khan के 'जिंदा बंदा' गाने पर किया जबरदस्त डांस Allu Arjun की फिल्म Pushpa 2 का पहला गाना इस दिन होगा रिलीज हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article