नरगिस की जान बचाने के लिए आग में कूद गए थे Sunil Dutt

नरगिस का नाम उस दौरा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में गिना जाता था। उनके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं कि कभी वो और राजकपूर एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। लेकिन शायद किस्मत को उनका साथ मंजूर नहीं था...

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Sunil Dutt jumped into the fire to save Nargis life
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नरगिस का नाम उस दौरा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में गिना जाता था। उनके बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं कि कभी वो और राजकपूर एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। लेकिन शायद किस्मत को उनका साथ मंजूर नहीं था। उसके बाद उनकी जिंदगी में आए सुनील दत्त और बाद में दोनों ने शादी कर ली।

लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जब राजकपूर और नरगिस एक दूसरे के प्यार में पागल थे, तो आखिर सुनील दत्त, नरगिस की जिंदगी में कम और कैसे आ गए ? दरअसल, दोनों के प्यार का सिलसिला फिल्मी अंदाज़ में शुरु हुआ था। तो आइए आपको बताते हैं कैसे शुरु हुई नरगिस और सुनील दत्त की प्रेम कहानी...

बर्थडे स्पेशल: नरगिस की जान बचाने के लिए आग में कूद गए थे सुनील दत्त, ऐसे शुरु हुई थी लव स्टोरी

सुनील दत्त का जन्म पाकिस्तान के झेलम प्रांत में हुआ था। 5 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उनका परिवार भारत आ गया। सुनील दत्त कई साल तक हरियाणा में रहे। 1955 में सुनील दत्त मुंबई आ गए, लेकिन यहां भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पैसों की दिक्कत के चलते सुनील दत्त ने बस कंडक्टर की नौकरी कर ली।

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कुछ समय बाद उन्होंने रेडियो में काम करना शुरू किया। यही वो जगह थी जहां उनकी मुलाकात नरगिस से हुई। सुनील नरगिस को शुरु से ही बहुत पसंद करते थे। वो नरगिस का इंटरव्यू लेने आए थे लेकिन जब नरगिस उनके सामने आईं तो सुनील सब भूल गए। उस समय उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला, जिसके बाद इंटरव्यू कैंसिल करना पड़ा।

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उस दौरान राज कपूर और नरगिस के बीच नजदीकियां बढ़ चुकी थीं। राज कपूर पहले से शादीशुदा थे इसके बावजूद नरगिस ने आरके प्रोडक्शन की फिल्में करना बंद नहीं किया। राजकूपर के शादीशुदा होने के बावजूद भी नरगिस उनसे शादी करना चाहती थीं। लेकिन परिवार की वजह से राजकपूर उनसे शादी नहीं कर सके।

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बता दें, कि फिल्म मदर इंडिया में नरगिस ने मुख्य किरदार निभाया था और सुनील दत्त ने उनके बेटे बिरजू का। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही सुनील दत्त ने नरगिस का दिल जीत लिया था। दरअसल, शूटिंग के दौरान एक बार सेट पर आग लग गई थी, जिसमें नरगिस फंस गईं थीं। बस फिर क्या था, सुनील दत्त, नरगिस को आग में फंसा देख नहीं पाए और उनकी जान बचाने के लिए आग में कूद पड़े।

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जब ये हादसा हुआ उस वक्त नरगिस, राजकूपर से अपना रिश्ता टूटने से बेहद दुखी थीं। तभी सुनील दत्त की इस बहादुरी का उनका दिल जीत लिया। फिल्म रिलीज होने के अगले ही साल 1958 में दोनों ने शादी कर ली। शादी होते ही जैसे सुनील दत्त का समय बदल गया। उन्होंने सुजाता और साधना जैसी कई अच्छी फिल्मों में काम किया।

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फिल्म 'यादें' बनाने में सबसे पहले नरगिस ने दिया था साथ 

सुनील दत्त फिल्म निर्माता के रूप में अपना पहला कदम भी उठाया था और दिखाया था कि वह किसी भी विषय को ले सकते हैं और उसके साथ पूरा न्याय कर सकते हैं. एक शाम, उन्होंने एक कहानी के बारे में सोचा जो उन्होंने एक दोस्त से सुनी थी. इसमें उनका समर्थन करने वाले पहले व्यक्ति में उनकी पत्नी नरगिस थीं जिन्होंने हर तरह से उनका समर्थन करने का फैसला किया. उन्होंने सर्वश्रेष्ठ तकनीशियनों की एक छोटी टीम और वसंत देसाई जैसे अत्यधिक प्रतिभाशाली संगीत निर्देशक को इकट्ठा किया और फिल्म का निर्माण, निर्देशन और अभिनय करने का जोखिम भरा निर्णय लिया. शूटिंग बॉम्बे में शुरू हुई और पूरी इंडस्ट्री कहती रही कि "दत्त साहब पागल हो गए है", लेकिन दत्त साहब एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि दूसरे लोग क्या कहते हैं.

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यह फिल्म थी 'यादें', यादें एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के बारे में थी जो एक शाम घर लौटता है और अपनी पत्नी को अपने तीन बच्चों के साथ लापता पाता है. बाकी की फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जिन्होंने खुद को अपने अपार्टमेंट में बंद कर लिया है और एक बहुत ही अजीब जीवन जीता है जिसमें वह अपने परिवार के साथ अपने जीवन के अतीत और वर्तमान को जीता है. सुनील दत्त द्वारा निभाई गई इस फिल्म में अनिल खन्ना की भूमिका, भारतीय फिल्मों के इतिहास में सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शनों में से एक है.

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'यादें' की मुख्य विशेषताएं हैं कि कैसे अनिल खन्ना (सुनील दत्त) अलग-अलग समय पर अपनी पत्नी के साथ, अपने बच्चों के साथ और अपने मूड के कई उतार-चढ़ाव और अपनी सनकीपन और अपने आपा खोने और अपने उग्र तर्कों के साथ अपना जीवन जीते हैं. "यादें" की सबसे बड़ी बात यह है कि पूरी फिल्म में किसी भी किरदार द्वारा एक भी शब्द नहीं बोला गया है. फिर भी 60 के दशक में हिंदी सिनेमा का चमत्कार कुछ ऐसा था. फिल्में तो बिना गानों के बनती थीं, लेकिन कोई भी बड़ी और कमर्शियल फिल्म बिना डायलॉग बोलने वाले किरदारों के नहीं बनी थी. यादें को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज होने का संतोष था. यह कान फिल्म समारोह में दर्ज किया गया था. सुनील दत्त ने पद्मश्री जीता (मुझे नहीं पता कि यह यादों के लिए था) लेकिन वह निश्चित रूप से देश में हर बड़े पुरस्कार के हकदार थे.

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 कुछ याद बहुत ही यादगार होती है, और ऐसी यादें जब भी याद आएगी सुनील दत्त की 'यादें' जरूर आएगी.

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