मेरे पास यह मानने के कई कारण हैं कि, मैं अपनी माँ का पसंदीदा बेटा था। मैं यह भी जानता हूँ कि उसने अपने अन्य दो पुत्रों की अपेक्षा मेरे लिए अधिक प्रार्थनाएँ की हैं। वह अक्सर मुझसे कहा करती थी कि मेरे समय वह एक बेटी की चाह रखती थी। वह मेरे बारे में वह चाहती थी कि मैं अठारह वर्ष की उम्र में ही एक ‘अँग्रेजी लड़की’ से शादी कर लूँ। जब वह मुझे लिखते या पढ़ते देखती तो गर्व से फूल जाती और रोमाँचित होकर अपनी सहेलियों से कहती कि मैं एक दिन अपने पिता की तरह एक बड़ा आदमी बनूँगा।
भले ही उसके पास पर्याप्त पैसा न हो पर उसने मेरे सभी जन्मदिन मनाने की ठानी हुई थी। 28 जून 1964 को मेरा 14वां जन्मदिन होना था। मैंने अपनी माँ को उस खास दिन के लिए बड़ी भारी तैयारियाँ करते देखा। उसने मेरे लिए एक नई शर्ट ली जिसकी कीमत 10 रुपये थी और वॉकवेल के जूते खरीदे जोकि 12 रुपये के थे। उसने वर्ग, पंथ और समुदाय के परे पूरे गाँव को आमंत्रित किया था और इस अवसर के लिए एक ईसाई बैंड भी किराए पर लिया था। मेरे जन्मदिन से दो दिन पहले, वह बाजार और बूचड़खाने गई और अपने मेहमानों की खातिरदारी के लिए सब कुछ खरीद लाई।
मैं भी उस दिन बहुत उत्साहित था और तड़के 4 बजे ही उठ गया था। मैंने अपनी झोंपड़ी का पिछला दरवाजा बिना यह जाने कि दरवाजे में कुंडी नहीं है और दरवाजा बंद रखने के लिए मेरी माँ ने पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, खोल दिया और पत्थर मेरे पैर पर गिर गया। मैंने अपनी माँ को यह नहीं बताया कि मुझे चोट आई है और मैं एक सामूहिक ईसाई अनुष्ठान में भाग लेने के लिए स्कूल गया क्योंकि मेरा जन्मदिन मेरे स्कूल के संस्थापक फादर पीटर परेरा के जन्मदिन के साथ पड़ता था। इसलिए मैं स्कूल जाने को बहुत उत्सुक था पर मेरे पैर में दर्द भी हो रहा था।
मैं जब घर पहुँचा तो मेरी माँ ने मुझे अपने पड़ोसियों को आमंत्रित करने के लिए कहा, जिनका हमारे क्षेत्र में बहिष्कार किया गया था। मैंने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और एक काले कुत्ते ने बहुत तेज भौंकते हुए मेरा स्वागत किया, वह तभी शांत हुआ जब उसने अपने छह तेज दांत मेरे बाएं पैर में खोद दिए लेकिन वह कुत्ता नहीं जानता था कि ये मेरी माँ के लिए उस कुत्ते पर हमला करने का संकेत था। जो टाइगर को बुला रहा था और वह टाइगर का अंत था।
मेरी माँ ने कुछ महिलाओं को घर बुलाया, जिन्होंने मेरे घाव से खून निकाला और एक मरहम लगाया, जो कुछ हरी पत्तियों से तैयार किया गया था और जब रक्तस्राव बंद हो गया, तो मेरी माँ ने मेरे क्षतिग्रस्त पैर के चारों ओर एक बड़ी पट्टी लपेट दी और रसोई में लग गई। तीन से पाँच के बीच दो घंटे में मैंने अपना गृहकार्य किया। वहाँ एक अफवाह फैली हुई थी कि मेरे घर के बगल में नदी अधिक पानी से नहीं, बल्कि सभी प्रकार की मछलियों के अचानक उफान से भरकर बह रही थी। गाँव के लोग चमत्कार देखने के लिए नदी की ओर दौड़े और मैं भी पाँच बजे वहाँ निकाल पड़ा। मेरे दोस्त ज्यादा से ज्यादा मछलियाँ पकड़ने के लिए हर तरीके का इस्तेमाल कर रहे थे। मेरे एक मित्र थॉमस ने एक नया तरीका निकाला, वह था नदी में मछली को पत्थर मारकर पकड़ना। मैं कुछ दूर खड़ा था कि मेरे सिर पर एक जोरदार धमाका हुआ और जब मैंने अपने सिर को छुआ, तो मैंने देखा कि मेरे पूरे शरीर में खून बह रहा है।
मैं लगभग बेहोश था जब तक कि मेरे दोस्त मुझे डॉ. सरकार के पास नहीं ले गए, जो गाँव के एकमात्र डॉक्टर थे। उन्होंने मुझे कुछ चम्मच शहद पिलाया और मेरे सिर पर कुछ मलहम मल दिया। मेरी माँ को पता नहीं था कि उनके प्यारे बेटे के साथ क्या हुआ था और जब उन्हें पता चला कि क्या हुआ है, तो उन्होंने उस पत्थर से मेरे सिर पर मारने वाले लड़के, थॉमस को पकड़ लिया और गुस्से में उसकी उँगलियाँ लोहड़े/ पत्थर से दबा दीं। फिर उत्सव जारी रखने के लिए घर वापस आ गए। बैंड ने हिंदी और कोनानी गाने (मेरी मातृभाषा) बजाना शुरू कर दिया था और शराब मुफ्त में परोसी जा रही थी। पुरुष और महिलाएं दोनों तरह-तरह के स्थानीय नृत्य करने लगे और जल्द ही बच्चे भी इसमें शामिल हो गए।
केले के पत्तों पर रात का खाना परोसा गया। खाना इतना था कि हम अगले तीन दिनों तक नाश्ता, दोपहर और रात का खाना खा सकते थे। यह एक ऐसा जन्मदिन था जिसे कोई भी लंबे समय तक नहीं भूल सका। और मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी क्योंकि मेरे प्रधानाचार्य ने मुझसे कहा था कि एक भी विषय में अनुत्तीर्ण होने वाले किसी भी छात्र को एस॰एस॰सी परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी। मुझे पता था कि मैं अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति में फेल हो जाऊंगा, भले ही भगवान आकार मेरे पेपर लिख दे, फिर भी मैं फेल हो जाऊँगा। अब मेरे पास इससे निकलने का प्रार्थना ही एक मात्र रास्ता था। जैसी कि उम्मीद थी, मैं गणित के तीनों पेपरों में फेल हो गया।
मेरे प्रधानाचार्य ने मुझे अपनी माँ को फोन करके यह गारंटी देने के लिए कहा कि मैं उन सभी सात विषयों में उत्तीर्ण हो जाऊँगा जो मैं अपनी एस॰एस॰सी परीक्षा में दूंगा। मैंने प्रिंसिपल से कहा कि मेरी माँ उनसे मिलने नहीं आ सकतीं। उसने मुझसे पूछा क्यों और मैंने उससे कहा कि मेरी माँ अब इस दुनिया में किसी भी सभा में शामिल नहीं हो पाएगी। सख्त प्रिंसिपल ने मुझे ऐसी गंभीर परिस्थितियों में मजाक न करने को कहा। मैंने उसे बताया कि मेरी माँ का देहांत दिसंबर में ही हो गया था। उन्होनें पूछा कि मैंने यह सूचना पहले क्यों नहीं दी? इतनी कम उम्र में भी, मैंने जवाब दिया कि अगर मैं उसे अपनी माँ की मृत्यु के बारे में बताऊँ भी तो वह या कोई और क्या कर सकता है? उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। उन्होनें मुझे केवल लिखित में देने के लिए कहा कि मैं सात विषयों के साथ अपनी एस॰एस॰सी परीक्षा पास करूंगा। मैं ऐसा अकेला विद्यार्थी था जो अंक पाने वाले विषयों जैसे गणित, भौतकी और रसायन विज्ञान को लिए बिना ही फर्स्ट क्लास से पास हुआ था।
मेरे गाँव वाले इतने खुश थे कि उन्होनें मुझे घोड़े पर घुमाया और जो बैंड मेरी माँ ने मेरे जन्मदिन पर बुलाया था, वहीं बैंड बजवाया। यहाँ सब कुछ था पर मेरी माँ, जिसे मेरी निगाहें ढूंढ रही थी, वहीं नहीं थीं।
मेरा 14वां जन्मदिन मेरा आखिरी जन्मदिन था, जिसे धूम-धाम से मनाया गया। वह सब कुछ मेरी माँ की वजह से। अगले जन्मदिन पर मेरे और मेरे भाई के पास खाने तक को कुछ नहीं था। उस दिन मैंने महसूस किया कि माँ क्या होती है? तब से मैं अपनी ही नहीं बल्कि हर एक माँ की पूजने लगा। आज पचपन सालों तक भी मैं अपनी माँ को ढूंढता हूँ कि शायद वह कहीं मिल जाए। मुझे पता है कि मुझे मेरी माँ जैसी कोई दूसरी माँ कभी नहीं मिलेगी।
माँ सिर्फ भगवान का रूप ही नहीं है। माँ भगवान है इसमें कोई शक हो सकता है?