- अली पीटर जॉन
मैं दोषी हूँ। मैंने खुद से लिखने का वादा किया था कि मैं सरोज खान जी पर एक सटीक लेख लिखुंगा। मैं उनसे सैकड़ों बार मिला था।
मैंने उन्हें नृत्य करते हुए प्रत्यक्ष देखा था, कैसे वह दूसरों को नृत्य सिखातीं है और उनके मार्गदर्शन में लोग किस प्रकार नृत्य की ऊंचाइयों को छूते हैं। जब भी मैं उनके एक डांस सीक्वेंस की शूटिंग के दौरान उनसे मिलता तो उनसे कुछ बात किया करता था और मैं अपने कॉलम और कुछ लेखों में उनका उल्लेख करता था, जो मैंने लोगों और फिल्मों के विषय में लिखे थे। मैं उनके विषय में लेख लिखने के अपने वायदे को टालता रहा। फिर मैं काम से बाहर रहा और स्टूडियो जाकर न तो शूटिंग देख सका और न ही सितारों और स्टार निर्माताओं से बात कर सका। उसी समय एक भयानक दुर्घटना से मेरा सामना हुआ जिसने मेरे सभी खुशी के पलों को खत्म कर दिया। अब देखिये कि आखिरकार हुआ क्या...
‘मास्टर जी’ सरोज खान ने अपने तरीके से अनंत काल तक नृत्य किया है। अब मुझे अपना वायदा निभाना है और मुझे वह लिखना है जो एक शोक समाचार की तरह न पढ़ा जाए। इसे उस टुकड़े के रूप में देखा जाना चाहिए जिसे मैंने तब लिखा जब वह जीवित थी और आनंद से भरी थीं। नृत्य न केवल उनके जीवनयापन का तरीका था, बल्कि उनके लिए जीवन ही था।
मैं सरोज जी को तब से जानता हूँ जब से मैंने अपना करियर शुरू किया था। लेकिन जब मैं उनसे बोनी कपूर, सुभाष घई, एन.चंद्रा और राजीव राय द्वारा बनाई गई फिल्मों की शूटिंग के दौरान उनसे मिला तो उन्हें बेहतर तरीके से जान पाया। हमने सबसे पहले ‘मिस्टर इंडिया’ के गाने ‘काटे नहीं कटते दिन ये रात’ के फिल्मांकन के दौरान विस्तार से बात की, जिसमें वह श्रीदेवी को एक नया जीवन दे रही थीं और वे कई बार श्रीदेवी द्वारा किए गए कामुक नृत्य के दौरान, मैं और मेरे जैसे कई लोगों सोच में पड़ गए कि कौन बेहतर है थे? श्रीदेवी या उनको सिखाती हुई मास्टर जी। मुझे यह कहने की जरूरत नहीं है कि कैसे उस एक नृत्य ने श्रीदेवी के करियर में बहुत बड़ा बदलाव किया।
एक दोपहर हम फिल्मिस्तान स्टूडियो के एक मेकअप रूम में बैठे और उन्होनें मुझे अपने बारे में कुछ बताया.... सरोज (जो निर्मला के नाम से भी जानी जाती हैं), अपने नाम सरोज किशनचंद साधु सिंह नागपाल के साथ एक हिंदू परिवार में पैदा हुई थीं जो पाकिस्तान से यहाँ आयी थी। उन्होंने ‘नजराना’ नामक फिल्म में तीन साल की बच्ची के रूप में अपनी पहली भूमिका निभाई थी। नृत्य की और उनका झुकाव स्वाभाविक ही था और उन्होनें नर्तकियों के एक समूह में नृत्य करके शुरूआत की थी।
साठ के दशक के एक प्रमुख कोरियोग्राफर सोहनलाल उनके गुरु थे, जिन्होंने न केवल उन्हें फिल्मों में नृत्य को गंभीरता से लेना सिखाया, बल्कि उनसे शादी भी की, भले ही उनके बीच एक बड़ा उम्र का अंतर था और शादी लंबे समय तक नहीं चली। उसके बाद उन्होंने सरदार रोशन खान से शादी की। जिनसे उनकी दो बेटियां और एक बेटा था। उनके पति की जल्दी ही मृत्यु हो गई। वह अकेली माँ थीं जिन्होंने अपने बच्चों को अपने दम पर पाला।
उन्हें ‘गीता मेरा नाम’ नामक एक फिल्म में कोरियोग्राफर के रूप में अपना पहला ब्रेक मिला, जिसे साठ के दशक की बहुत लोकप्रिय अभिनेत्री साधना ने निर्देशित किया था और इसके बाद सरोज खान को सफलता का नृत्य करने से कोई रोक नहीं सकता था। यह विश्वास करना कल्पना से परे है कि उन्होनें चालीस वर्षों में दो हजार फिल्मों को कोरियोग्राफ किया और सभी प्रमुख निर्देशकों और सितारों के साथ पुरुष और महिला दोनों के साथ काम किया।
उन्हें यश चोपड़ा, सुभाष घई, एन.चंद्रा और संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशकों द्वारा बनाई गई फिल्मों में कोरियोग्राफर के तौर पर ज्यादा याद किया जाएगा।
उन्होंने श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोइराला, मीनाक्षी शेषाद्री, ऐश्वर्या राय जैसी अभिनेत्रियों के करियर के ग्राफ को सचमुच बदल दिया और ... मुझे और कितने नाम लेने चाहिए? गोविंदा, शाहरुख खान, जिन्होंने उन्हें उद्योग में अपना पहला शिक्षक कहा था और अक्षय कुमार, यहाँ तक कि अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेताओं के नृत्य को कोरियोग्राफ करते समय भी वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में थीं।
जब वह एक नृत्य अनुक्रम की प्रभारी थीं तब गीत के तालमेल के साथ नृत्य का फिल्मांकन होने तक सब उनपर छोड़कर अच्छे से अच्छे और अनुभवी निर्देशकों को भी पीछे बैठना पड़ता था। इतना ही नहीं कैमरे पर भी उनका पूरा नियंत्रण था और वह जानती थीं कि एक नृत्य को पूर्णता में कैद करने के लिए इसका उपयोग कैसे किया जाए। बड़े पुरुष निर्देशकों का उन पर इतना भरोसा और उनके पास उनका कोई विकल्प न होना और उनके सामने एक महिला को शॉट लेते हुए देखना बड़ा रोमांचक था। यह उनकी प्रतिभा को दी गई सबसे अच्छी श्रद्धांजलि थी जो कई निर्देशकों और स्टार्स ने कहा कि उनके पास उनका कोई दूसरा समानांतर या विकल्प नहीं था और वह हर बार लोगों की इन उम्मीदों पर खरी उतरी।
पी एल राज, विजय-ऑस्कर, चिन्नी प्रकाश, श्यामक डावर और वैभवी मर्चेंट जैसे कई अन्य नृत्य निर्देशक उनके युवा प्रतियोगी थे, लेकिन इनकी प्रतियोगिता से उस महिला को कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उन्हें हमेशा नृत्य की रानी के रूप में सम्मार्नित और स्वीकार किया गया था।
नृत्य के क्षेत्र में वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं और जो सभी प्रतिभाशाली कलाकारों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाती थीं। इसी सर्वश्रेष्ठता के आधार पर उन्होनें हर जगह पुरस्कार और प्रशंसा जीती और वह तीन राष्ट्रीय पुरस्कार और आठ फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने वाली पहली कोरियोग्राफर बनी। जिसकी वह हकदार थीं। उनके जीवन पर एक बायोपिक बननी चाहिए थी, लेकिन वह अपने जीवन और नृत्य के प्रति उनके जुनून पर बने एक डॉक्यूड्रामा से ही खुश थीं।
मैं उनके बारे में एक किताब लिख सकता था अगर मैंने उनके साथ अधिक समय बिताया होता और अगर उनके पास मेरे साथ बिताने के लिए अधिक समय होता, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यह मेरे जीवन और पेशे के लिए एक बड़ा पछतावा बन गया।
मुझे याद है कि मैंने उनसे इस्लाम में परिवर्तित होने के बारे में पूछा था और वह मुझे असली कहानी उनसे मेरी पहली मुलाकात के वर्षों बाद अर्थात मुझे अच्छे से पहचान लेने के बाद ही बता सकती थी। उन्होनें कहा कि वह एक हिंदू थी, लेकिन उन्हें एक हिंदू के रूप में खुश होने के सभी कारण नहीं मिले इसलिए उन्होनें इस्लाम में परिवर्तित होने का फैसला किया। अपनी कहानी में उन्होनें मुझे अपने धर्मांतरण के बारे में बताया, उन्होनें कहा कि वह बॉम्बे के जुम्मा मस्जिद गई थी और वहाँ के मौलवियों से कहा कि वह धर्म परिवर्तन करना चाहती है। उन्होंने उनसे पूछा कि उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर तो नहीं किया जा रहा या दबाव तो नहीं डाला जा रहा। उन्होनें कहा नहीं, वह अपनी मर्जी से ऐसा कर रही है। उसने मुझे यह भी बताया कि उन्होनें मौलवियों से कहा था कि वे अपनी बच्ची को खो चुकीं है जो उनके सपने में आई थी और उन्हें एक मस्जिद के अंदर से आवाज देकर बुला रही थी। मैं यह कहानी भूल गया था।
मुझे आज सुबह ही उनके द्वारा बताई गई इस कहानी का दोबारा ध्यान आया जब उनके इस जीवन से दूर जाने की खबर फैली और दुबई के मेरे युवा दोस्त जैन हुसैन, जो फिल्म उद्योग से जुड़े सभी लोगों के संपर्क में रहते हैं, ने मुझे फोन किया और सरोज खान के धर्म परिवर्तन की कहानी की मुझसे पुष्टि कराई। दो घंटे बाद, मैंने सरोज को एक लाइव इंटरव्यू देते हुए देखा और मैंने उन्हें अपने धर्म परिवर्तन के बारे में वही कहानी सुनाते हुए सुना।
मैं दोषी था जो मैंने इतनी लोकप्रिय सरोज जी या मास्टर जी पर अब तक कुछ नहीं लिखा और यह श्रद्धांजलि लेख लिखना शुरू किया। मैं अभी भी खुद को दोषी महसूस कर रहा हूँ, लेकिन मुझे आशा है कि मेरे द्वारा किए गए इस छोटे से प्रयास के बाद मेरा थोड़ा-सा अपराध धुल जाएगा। मैं उनके जीवित रहते उनके लिए कुछ न कर सका। वह कहतीं थी कि नृत्य, सभी बीमारियों, दर्द और यहाँ तक कि अवसाद के लिए सबसे अच्छा रामबाण है। वह जो मानती थी उस पर विश्वास करना मुश्किल है, लेकिन उसपर विश्वास करने की कोशिश करने में क्या गलत है?
और जब भी कोई बहुत प्रिय और करीबी मर जाता है, तो मुझे मेरे पसंदीदा देवानंद की मृत्यु के विषय में कही बात को याद करने का मन होता है, उन्होनें मुझसे कहा था, लोग मौत को इतना डरावना और दुखमय क्यों समझते हैं? हम यह क्यों नहीं सोचते कि इस दुनिया को छोड़ने के बाद हमारे स्वागत के लिए एक बेहतर जीवन हो सकता है?
मैं स्वर्ग या नर्क जैसे भ्रमों में विश्वास नहीं करता, लेकिन कई बार मैं ऐसे भ्रमों में विश्वास करना भी चाहता हूँ। यह एक ऐसा समय है जब मैं यह विश्वास करना चाहता हूँ कि स्वर्ग है और सरोज खान का स्वागत उस स्वर्ग में स्वर्गदूतों के एक समूह द्वारा किया गया है, जो पृथ्वी पर उनके द्वारा माधुरी और अन्य अभिनेत्रियों को सिखाये नृत्य जैसे नृत्य कर रहें हैं।
हमारी धरती की पसंदीदा महिला का स्वागत करने के लिए स्वर्ग को धन्यवाद!
मैं स्वर्ग को बिल्कुल नहीं मानता। लेकिन जब कोई सरोज खान जैसी इंसान मर जाती है और लोग कहते हैं कि उनको खुदा ने स्वर्ग में जगह दी है, तो स्वर्ग को मानने का जी करता है।
ओ रे पिया
ओ रे पिया
उड़ने लगा क्यों मन बावला रे
आया कहाँ से ये हौसला रे
ओ रे पिया
तानाबाना, तानाबाना बुनती हवा
बूंदें भी तो आये नहीं बाज यहाँ
साजिश में शामिल सारा जहां है
हर जर्रे-जर्रे की ये इल्तिजा है
ओ रे पिया...
नजरें बोलें, दुनिया बोले, दिल की जबाँ
इश्क मांगे, इश्क चाहे, कोई तूफां
चलना आहिस्ते, इश्क नया है
पहला ये वादा हमने किया है
ओ रे पिया...
नंगे पैरों पे अंगारों, चलती रही
लगता है कि गैरों में मैं, पलती रही
ले चल वहाँ जो, मुल्क तेरा है
जाहिल जमाना, दुश्मन मेरा है
ओ रे पिया...
फिल्म- आजा नचले
कलाकार- माधुरी दीक्षित
गायक- राहत फतेह अली खान
संगीतकार- सलीम-सुलेमान
गीतकार- जयदीप साहनी