माँ के पल्लू में सारा जहान, सारी कायनात और सारी खुदाई है। By Mayapuri Desk 01 Feb 2022 in अली पीटर जॉन New Update -अली पीटर जाॅन मैं जब भी माँ के बारे में कुछ देखता हूं, सुनता हूं या पढ़ता हूं तो मैं एक दुर्लभ त्योहार मनाता हूं, क्योंकि मेरे 70 वर्षों में अगर एक वास्तविकता है तो मैंने एक समुदाय के रूप में मेरी माँ और माँ की पूजा की है, जिनके बिना दुनिया वह नहीं होगी जो यह है। इस महामारी के दौरान, मैं माताओं और उनके बच्चों के बीच इस खूबसूरत रिश्ते का अनुभव कर रहा हूं, लेकिन मैं सबसे ज्यादा देख रहा हूं कि जानवरों और उनकी माताओं के बीच, पक्षियों और उनकी माताओं के बीच का प्यार है। मैं नहीं जानता कि कितने लोग माताओं के बारे में मेरी भावनाओं से खुद को जोड़ सकते हैं, लेकिन सुबह मुझे अपने दोस्त अनुपम खेर द्वारा एक माँ के पल्लू की महानता के बारे में बात करने का अनूठा अनुभव हुआ। मैं अनुपम की तब से प्रशंसा कर रहा हूं, जब से मैंने उन्हें पहली बार ‘‘डिजायर अंडर द एल्म्स‘‘ नामक एक नाटक में देखा था और मुझे उन्हें किसी से बढ़कर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखकर गर्व हुआ है जो दुनिया भर में फर्क करता है। अनुपम ने दो किताबें लिखी हैं और विभिन्न मंचों पर बात की है, लेकिन मैंने उन्हें माँ के पल्लू के बारे में जितना कहा है, उनसे अधिक प्रभावशाली, भावुक और वाकपटु नहीं पाया। मेरे और अधिक शब्दों को बर्बाद किए बिना, मुझे अनुपम के शब्दों को उनके बहुत ही खास पलों में से एक में देने का सौभाग्य प्राप्त होता है... “दरअसल माँ के पल्लू की बात ही निराली थी। माँ का पल्लू, बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने के लिए तो इस्तेमाल किया ही जाता था पर खाना खाने के बाद माँ के पल्लू से अपना मुंह साफ करने का अपनी ही मजा होता था। और आँख में दर्द होने पर माँ अपनी साड़ी के पल्लू को गोल बना कर ..फू फू फूंक मार के गर्म करके जब आँख में लगाती थी तो दर्द उसी समय पता नहीं कहां उड़न छू हो जाता था जब बच्चों को बाहर जाना होता था। तब माँ की साड़ी का पल्लू पकड़ लो तब कमबख्त गूगल मैप की किसको जरूरत पड़ेगी। जब तक बच्चे ने हाथ में माँ का पल्लू थाम रखा होता था तो ऐसे लगता था जैसे सारी कायनात बच्चों की मुट्ठी में होती थी। ठंड में माँ का पल्लू हिटिंग और गर्मियों में कूलिंग का काम किया करता था। और बहुत बार माँ के पल्लू का इस्तेमाल पेड़ों से गिरने वाली नासपाति, सेब और फूलों को लाने के लिए भी किया भी जाता था। माँ के पल्लू में धानए धान प्रसाद भी जैसे तैसे इक्ट्ठा हो ही जाता था पल्लू में गांठ लगा कर माँ अपने साथ एक चलता फिरता बैंक रखती थी और अगर आपकी किस्मत अच्छी हो तो कभी-कभी उस बैंक के कुछ पैसे आपको मिल जाते थे। मैंने कई बार माँ को अपने पल्लू में हँसते, शरमाते और कभी-कभी रोते हुए भी देखता था। मुझे नहीं लगता की माँ के पल्लू का विकल्प या वैकल्पिक कभी भी कोई भी ढूंढ पायेगा। दरअसल माँ का पल्लू अपने ही एक जादुई अहसास ले के आता था। आज की पीढ़ी को माँ के पल्लू की अहमियत समझ में आती है या नहीं पर मुझे पूरा यकीन है कि आप में से बहुत से लोगों को ये सब सुन कर माँ की और माँ के पल्लू की बहुत याद आएगी। चलिये अपनी-अपनी माँ को फोन करिए।” मुझे हमेशा तुम पर नाज था अनुपम, आज मेरी तुम्हारे लिए इज्जत और भी बढ़ गई है। #Anupam Kher #about Anupam Kher हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article