मैंने अच्छे लोगो को भी देखा, बुरे लोगो को भी, लेकिन ऐसे भी लोग थे जो अच्छा दिखते थे और बोलते थे, लेकिन सच में वे कुछ और ही थे- अली पीटर जॉन By Mayapuri Desk 19 Jul 2021 in अली पीटर जॉन New Update Follow Us शेयर मैं साम्राज्यों, सम्राटों और साम्राज्ञियों के उत्थान और पतन के हर पल का साक्षी होने का सौभाग्य प्राप्त किया है। मैंने अच्छे और बुरे दोनों आदमियों को भी देखा है और कई बार मुझे यह जानकर झटका लगा है कि, जिन लोगों पर मुझे विश्वास था वे अच्छे हैं और जिन लोगों के लिए मुझे गलतफहमी थी कि, वे अच्छे है और वे कितने अच्छे थे, ये उन्होनें अपना शैतान रुप दिखाकर मेरी उस छवि को नष्ट कर दिया जो मैंने अपने मन-मस्तिष्क में बनाई थी। मैं इस कवि को उस समय से जानता था जब मैं कॉलेज में था और उनकी कविताओं और उनकी सफेद कड़कड़ वेशभूषा और चेहरे पर छोटी दाढ़ी से बहुत प्रभावित हुआ। मैं उनपर इतना मोहित हो गया था कि मैंने भी उनकी तरह कपड़े पहनना शुरू कर दिया था और उनके जैसी ढाढ़ी रखी थी। जब मेरे कॉलेज की लड़कियों ने कहा कि मैं कवि, लेखक और फिल्म निर्माता गुलजार से मिलता-जुलता हूँ तो मैं बहुत रोमांचित हुआ करता था! उन्हें यह नहीं पता था कि उनके जैसे सफेद कपड़े के लिए मुझे भूखा रहना पड़ा है! मुझे यह भी नहीं पता था कि मेरे सपनों का आदमी मेरे जीवन में एक महान वास्तविकता होगी, जब मैं ‘स्क्रीन‘ में शामिल हुआ तो सप्ताह में एक बार या कई बार उनसे मिलने की रस्म-सी बना ली। उन्होनें दिखाया कि उन्होनें मेरे लिए अपने प्यार को कितना बदला लिया। उन्होंने अपनी प्रत्येक पुस्तक की पहली प्रति के पहले पृष्ठ पर अपने पसंदीदा शब्द, ‘या अली‘ लिखकर तथा अपने हस्ताक्षर करके मुझे भेंट की। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मुझे उनकी नई फिल्म के हर मुहूर्त और उनकी फिल्मों की सभी शूटिंग के लिए आमंत्रित किया जाए। यहाँ तक कि उन्होंने मुझे अपनी फिल्म ‘अंगूर‘ में एक गाने के फिल्मांकन का हिस्सा बनाया, जिसमें उनकी दोहरी भूमिकाओं में संजीव कुमार और देवेन वर्मा थे। उन्होंने हमेशा मुझे अपने जीवन की नवीनतम घटनाओं के बारे में बताया, जैसे कि एक नई किताब लिखना, मराठी जैसी नई भाषा सीखना और सबसे महान और सबसे कठिन मराठी कवि कुसुमाराज की रचनाओं का अनुवाद करना। उनकी रचनाओं का अनुवाद जापानी भाषा में किया जा रहा है। इतना ही नहीं उन्हें ओसाका और टोक्यो विश्वविद्यालयों में अपनी कविता-पाठ के लिए आमंत्रित किया जा रहा है और उन्होंने मुझे उनका साठवां जन्मदिन मनाने का बहुत बड़ा अवसर दिया है, जो उनकी बेटी मेघना और मेरा संयुक्त विचार था, क्योंकि हम जानते थे कि, उन्हें जन्मदिन मनाना अच्छा नहीं लगता था। 18 अगस्त, जो मेरे लिए इसलिए भी खास था क्योंकि यह मेरी गरीब माँ का भी जन्मदिन था, जिनका जन्मदिन मैं कभी नहीं मना पाया था। सफेद और साधारण पोशाक के इस कवि से यह महान रिश्ता हो सकता है, मैं लंबे समय तक ऐसा ही करता रहा जब तक कि मैं एक निश्चित सीमा तक एक आरामदायक और यहाँ तक कि कमांडिंग स्थिति में था और मुझे अपने कॉलम ‘अली के नोट्स‘ में उद्योग में किसी के बारे में और कुछ भी लिखने की स्वतंत्रता थी। मैं जुलाई, 2006 को सेवानिवृत्त हुआ और मुझे अचानक मिल गये। सफेद रंग में उस महान कवि के रवैये में एक बड़ा बदलाव तब आया जब उन्होंने अपने सचिव से कहा कि, अगर मैं उनसे मिलना चाहता हूँ तो मिलने का एक निश्चित समय पहले ही लूँ। मैं खुद को जानता था और मेरे गुस्से ने उस मौके पर नरक जाने के लिए कहा होगा, लेकिन वह मेरी एक किताब को रिलीज करने के लिए पहले ही सहमत हो गए थे और रिलीज होने में केवल तीन दिन थे। मैंने अपने गुस्से पर काबू पाया और अंतिम समय में कार्यक्रम की तैयारी शुरू कर दी। उन्होनें मुझसे वायदा किया था कि, वह समय से पहले सभागार में होंगे और मैंने उन पर विश्वास किया। मेरे पुस्तक विमोचन समारोह की शाम निकट थी और अतिथियों से सभागार भर गया था। मैं उनका इंतजार करता रहा, लेकिन इसके बजाय मुझे उनके सचिव का फोन आया, जो हमेशा अपने मालिक, सर्वशक्तिमान कवि के प्रति कटु थे। कुट्टी, हाँ वह सचिव का नाम था, उसने मुझे फोन किया और कहा, ‘श्रीमान अली, मैंने तुमसे कहा था कि उस आदमी पर भरोसा न करें। वह बहुत बड़ा धोखेबाज है। अब, उन्हें देखो, वह आपके समारोह में आने वाला थे, लेकिन वह अपनी कुर्सी पर बैठे हैं और मुझसे कह रहे हैं कि आपको बता दूं कि वह नहीं आ पाएंगे क्योंकि पाकिस्तान से उनके कुछ मेहमान आए हैं! मैं एक बूढ़ी और ढहती मूर्ति की तरह खड़ा था और नहीं जानता था कि क्या करना है। मैं वाशरूम में गया और खूब रोया। मुझे एक विचार आया, मैंने अपने दोस्त सुभाष घई को फोन करने का जोखिम उठाया और वह लाइन पर आ गए। मैंने उन्हें इस जाल के बारे में बताया जिसमें मैं इस महान कवि के कारण फँस गया था और उनसे पूछा कि, क्या वह आकर मेरी जो भी छोटी-मोटी प्रतिष्ठा है, उसे बचा सकते हैं और घई ने मुझे उन्हें बीस मिनट देने के लिए कहा और वह ठीक बीस मिनट में वहाँ पहुँच गए! उन्होंने मुझे शर्मिंदगी से बचा लिया था। वास्तव में उन्होंने मेरे फंक्शन को और बड़ी कामयाबी दिलाई। उस शाम मैंने तय किया कि मैं गुलजार को अपने अंतिम संस्कार में भी नहीं बुलाऊंगा। यह मेरी आत्मकथा का मराठी में विमोचन करने का अवसर था और भाषा के सभी बेहतरीन कवियों और लेखकों को उपस्थित होना था! मैंने सर्वश्रेष्ठ गीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए जावेद अख्तर के नाम की सिफारिश करके पाप किया था और उन्हें ही यह पुरस्कार मिले इसलिए मैंने अपनी जान लगा दी थी। उन्होनें मुझसे जो कुछ भी मैं चाहता था उन्हें उपहार के रूप में मांगने के लिए कहा! उन्होंने मुझे सारे पैसे और अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं की पेशकश की, लेकिन मैंने उन सभी को ठुकरा दिया और उनसे कहा कि मैं समारोह में शाहरुख खान को आमंत्रित करना चाहता हूँ। मुझे अभी भी उनके शब्द याद हैं, ‘अरे साहब, कहा आप छोटे-छोटे चीज मांगते हैं, अरे जरा हम से कोई बड़ी चीज मांग कर तो देखिये।‘‘ उस मुलाकात के बाद तब तक कोई बातचीत नहीं हुई जब तक कि मैं एक दिन उनसे नहीं मिला और समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आने के लिए कहा। उन्होंने इसे बहुत हल्के में लिया और कहा, ‘‘अरे हुजूर, हम जरूर हाजिर होंगे, वक्त से पहले।‘‘ उन्होंनें अभी भी अपने चेहरे पर हमेशा की तरह चालाक मुस्कान का कोई संकेत नहीं दिखाया था... यह निर्धारित समय के आधे घंटे बाद की बात है, जब मुझे उनके घर से फोन आया और दूसरी तरफ की आवाज आई ‘जावेद साहब आ नहीं पाएंगे, उनको तेज बुखार हो गया है’ मैंने उन्हें खूब कोसकर खुद को सांत्वना दी क्योंकि यह नकली कवि झूठ बोल रहा था। मैं उनसे साढ़े पांच बजे मिला था और वह पूर्णतः स्वस्थ थे, लेकिन इस तेज बुखार ने उन्हें अचानक कैसे जकड़ लिया! इससे पहले कि मैं एक विकल्प के बारे में सोच पाता, मैंने अपने सबसे अच्छे जासूसों में से एक को यह पता लगाने के लिए ड्यूटी पर रखा कि वह कहाँ है? मुझे बताया गया कि वह अपनी पसंदीदा महिला गायक के साथ थे जिसके साथ मैंने सुना था कि उन्हें कुछ करना है प्यार से, किस तरह का प्यार, मैं उस समय नहीं जानता था और मैं उस समय जानना भी नहीं चाहता था। मैंने अपनी हताशा में एक ऐसे शख्स को बुलाया, जिसे दुनिया ने सबसे खतरनाक और सनकी आदमी कहा, नाना पाटेकर। उन्होनें दो बार नहीं सोचा और मराठी में उन्होनें कहा, ‘आता यतो‘ और इससे पहले कि मैं नाना कह पाता, वह सभागार के गेट पर थे और दीप्ति नवल अपनी स्कॉर्पियो चला रही थी। वह दर्शकों के साथ एक बहुत बड़ा क्रेज साबित हुआ, जो सभी महाराष्ट्रियन थे और शुद्ध मराठी में उनके बोलने से दर्शकों की खुशी में इजाफा हुआ, जिसमें साहित्य, संगीत और रंगमंच के क्षेत्र की मशहूर हस्तियों की क्रीम शामिल थी। उन्होंने लोगों का दिल तो जीता ही और मेरा दिल उनका हमेशा आभारी था और रहेगा, हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वह बदल गए हैं और वह रुडमजवव आंदोलन और कई अन्य विवादों में शामिल रहे हैं। मैं वर्षों से इन दोनों कवियों की प्रशंसा करता था और कुछ ही महीनों में, मैंने कवियों और मनुष्यों दोनों में उनकी सभी रुचि खो दी थी और इन दिनों मुझे बहुत खुशी होती है जब कोई मुझसे कहता है कि वे महान प्रेरक साहित्य स्रोतों से उधार लेते हैं या खुले तौर पर कहें तो चोरी करते हैं। अभिनेत्री मीना कुमारी, जिनकी डायरी उनकी कविताओं के साथ उन्होंने गुलजार को भेंट की थी, जब वह नशे से मर रही थीं और इसी तरह शैलेंद्र और सबसे बढ़कर साहिर लुधियानवी ने भी इन्हें भेंट किया था। लोग और यहाँ तक कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी मुझसे कहते हैं कि, जो कुछ भी होता है उन्हें छोड़ दिया जाता है, लेकिन जो कुछ भी वे कहते हैं और जो कुछ भी मैं इन धोखेबाजों के बारे में सोचता हूँ, जो मानते हैं कि वे देवता हैं, उनके बारे में मेरी राय कभी नहीं बदलेगी क्योंकि बुरे इंसान हमेशा बुरे होते हैं। मुझे इस कड़वे सच का अनुभव मिल चुका है। इस सच्चाई को तो इस उद्योग के कुछ तथाकथित सर्वश्रेष्ठ लोगों के बीच सबसे अच्छी तरह से जानते है। इन दो धोखेबाज कवियों की तुलना में बहुत बड़े कवि हुए हैं, लेकिन उन्हें कभी भी उनका हक नहीं दिया गया क्योंकि वे अच्छे इंसान थे और महान कवि और गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित होने के कपटपूर्ण तरीकों का उपयोग करने में विश्वास नहीं करते थे। सुभाष घई मेरे साथ एक बार फिर अच्छे इंसान साबित हुए। मंगेशकर बहनों के छोटे भाई के नाम पर यह पहला हृदयेश पुरस्कार था। पहला पुरस्कार स्वाभाविक रूप से भारतरत्न लता मंगेशकर को दिया जाना था। उन्होंने आयोजकों से पूछा कि उन्हें पुरस्कार कौन प्रदान करेगा। उन्होनें तीनों नामों की सूची मांगी और उन्होंने उन्हें तीन नाम दिए, ए पी जे कलाम जी, सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन! कोकिला ने पहले दो नामों को काट दिया और फिर अमिताभ बच्चन के नाम की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘आपकी सूची में यह नाम है, तो आप मुझे अन्य दो नाम क्यों दिखा रहे हैं‘ मैं उन कारणों को अच्छे से जानता था जब आयोजकों ने अमिताभ से पुरस्कार देने के बारे में बात करने के लिए कहा और उन्होंने हाँ कहने से पहले दो बार नहीं सोचा। शाम को पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया था जिसमें अमिताभ के पास लता मंगेशकर का शाब्दिक रूप अभिनंदन करने के लिए पर्याप्त पंक्तियाँ और कवितायें थी और ‘अमिताभ जी‘ का वर्णन करने के लिए लता जी को शब्दों के लिए संघर्ष करना पड़ा। यह अभिनंदन के शब्दों की और गुणगान की अदला-बदली के एक उत्सव की तरह था। दो साल बाद, अमिताभ को वही पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया और लता जी को उन्हें पुरस्कार प्रदान करना था। अमिताभ इतने खुश थे कि वह अपनी पत्नी जया के साथ आए, दोनों ने इस अवसर के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ कपड़े पहने। जो अमिताभ की नजर में इस तरह का पहला आयोजन था। समारोह शुरू होने के आधे घंटे पहले ही लताजी ने फोन किया और कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वह समारोह में शामिल नहीं हो पाएंगी। उन्होनें अमिताभ और जया से मोबाइल पर बात की, लेकिन मैं बच्चन के चेहरे पर निराशा देख सकता था। आयोजक दहशत में थे और सोच रहे थे कि अमिताभ को पुरस्कार देने के लिए किससे कहें। मुख्य आयोजक, श्री अविनाश प्रभावलकर अग्रिम पंक्ति में मेरे पास आए और मुझसे उनकी मदद करने को कहा। मैं फिर से केवल एक ही नाम के बारे में सोच सकता था और वह था चालीस साल का मेरा दोस्त, सुभाष घई और प्रभावलकर से लताजी से पूछने के लिए कहा कि क्या सुभाष घई उनके स्थान पर ठीक रहेंगे और उन्हें हाँ कहने में मुश्किल से आधा सेकेंड का समय लगाया। मुझे अमिताभ और सुभाष घई के बीच बड़ी गलतफहमी के बारे में तब पता चला जब उन्होंने पारस्परिक रूप से फिल्म ‘देवा‘ को बंद करने का फैसला किया था, जो वे पहली बार एक साथ करने जा रहे थे और लंबे समय से एक-दूसरे से मिले या बात नहीं की थी। लेकिन मैंने अब भी व्हिस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल में घई को बुलाया और वह आने और सम्मान करने के लिए सहमत भी हुए और उन्होंने यह भी कहा कि यह उनके लिए एक सम्मानीय अवसर होगा। जिन आयोजनों में मैंने उन्हें आमंत्रित किया था, वे वहाँ पहुँचे। उन्होंने मेरे अनुरोधों का सम्मान किया। वह आए, मिले और ऐसा व्यवहार किया जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही न हो और पुरस्कार समारोह शानदार रूप से सफल हुआ। सुभाष घई ने मेरी चार किताबें का विमोचन किया और मेरे कई निजी समारोहों में भाग लिया है। उन्होंने एक बार अस्पताल का दौरा भी किया जहाँ मैं लगभग एक महीने भर्ती था। वे रोज वहाँ आते या फिर अपने छोटे भाई अशोक घई को भेजा करते थे। इतना ही नहीं अपने कर्मचारियों को मेरी देखभाल करने की ड्यूटी भी दी थी! अस्पताल से छुट्टी मिलने से एक शाम पहले, मैं अपना बकाया जानने के लिए रिसेप्शन पर गया और उन्होंने मुझे बताया कि जिस दिन मुझे भर्ती कराया गया था, उस दिन मेरा बिल का भुगतान हो गया था। मैंने उनसे पूछा, कैसे तो उन्होंने कहा कि उन्हें मुझे यह बताने की अनुमति नहीं है कि कैसे। मुझे यह पता लगाने में एक महीने का समय लगा कि एक लाख से अधिक के बिल का भुगतान सुभाष घई ने किया था। मुझे यकीन है कि अगर कोई एक आदमी है जो किसी भी समय मेरे साथ खड़ा होगा, तो वह सुभाष घई होगा। मुझे आश्चर्य है कि हमारे पास सुभाष घई जैसे कई और अच्छे इंसान क्यों नहीं हैं, बल्कि ऐसे धोखेबाज देवता ज्यादा हैं जो यह भी नहीं जानते कि उनकी ‘‘देवगिरी‘‘ और “धोखाधड़ी” दोनों उनके अंत तक उनके साथ नहीं रहेंगी। मैं ऐसी कड़वी बातों को अक्सर भूल जाता हूँ, लेकिन मैं क्या करूँ जब ऐसी बातें मेरे रगों में जगह बना चुकी हैं। मेरे दोस्त कहते हैं भूल जाओ ऐसी बातों को लेकिन उनको क्या मालूम कि ऐसे लोगों ने कुछ-कुछ मेरा दुनिया पर से भरोसा ही उठा दिया है। अगर दिल ने कहा तो शायद कभी भूल जाऊंगा। लेकिन दिल कहता है कि जख्म बहुत भारी हैं और जल्दी ठीक नहीं हो सकता। #Amitabh Bachchan #Subhash Ghai #Lata Mangeshkar #Nana Patekar #Sachin Tendulkar #Sanjeev kumar #Gulzar #Bharat Ratna Lata Mangeshkar #Sahir Ludhianvi #Shailendra #A.P.J Kalam #alcoholism #Angoor #Avinash Prabhawalkar #Deven Varma #film "Angoor" #film Devva #Sanjeev Kumar and Deven Varma हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! 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