पटना, बिहार में जन्में व परवरिश पाने वाले अभिजीत सिन्हा एमबीए की पढ़ाई करने के लिए मुंबई, महाराष्ट्र आए थे. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉर्पोरेट जगत में 11 वर्षों तक काम किया. 2013 के अंत में वह मनोरंजन उद्योग से जुड़ गए. उन्होंने बैरी जॉन एक्टिंग स्कूल से बैरी जाॅन से अभिनय में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया. फिर वह नादिरा बब्बर के ‘एकजूट थिएटर ग्रुप’ से जुड़कर थिएटर करना शुरू किया. बाद में वह टीवी इंडस्ट्री से जुड़ गए. उसके बाद उन्होने फिल्मों में अभिनय किया. इन दिनों वह फिल्म ‘‘होटल मर्डर केस’’ को लेकर चर्चा मंे है.
प्रस्तुत है अभिजीत सिन्हा से हुई बातचीत के अंश ...
आप तो कारपोरेट जगत में नौकरी कर रहे थे. फिर फिल्मों का चस्का कैसे लगा कि आप नौकरी छोड़कर बाॅलीवुड में रम गए?
मेरी समझ से फिल्मों का चस्का हिंदुस्तान मंे जन्में हर इंसान को कभी न कभी तो लगता ही है. कम से कम भारत मंे हर दूसरा इंसान अपनी जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर क्रिकेटर या अभिनेता बनने का इरादा जरुर रखता है. तो मेरे अंदर भी फिल्मांे से जुड़ने का ख्याल बचपन से ही था. मेरा इरादा ड्ामैटिक या क्रिएटिब क्षेत्र में जाने का था. लेकिन जब मैं युवा हो रहा था, उस वक्त न इतने आॅप्षन थे और न ही मुझे बहुत ज्यादा जानकारी थी. वह इंटरनेट व सोश ल मीडिया का जमाना नहीं था. मैं छोटे श हर, पटना,बिहार का रहने वाला हॅूं. उन दिनांे मध्यम वर्गीय परिवार में पढ़ाई लिखाई करके नौकरी करना ही एक मात्र सोच थी. हमने भी वही किया.मैने ग्यारह वर्ष तक कारपोरेट नौकरी की. पर मेरे दिल में कुछ क्रिएटिब करने की भावना जरुर थी. मुझे अलग से अपने पैश न को फाॅलो करना था. जब जिंदगी पटरी पर गयी तो मैने कारपोरेट जगत को अलविदा कहकर अपने सपनांे को पूरा करने की दिषा में कदम बढ़ा दिए. मैने सबसे पहले बैरी जाॅन एक्टिंग स्कूल से अभिनय की ट्रैनिंग हासिल की. फिर थिएटर करने लगा. थिएटर करते करते टीवी सीरियलों मंे अभिनय करने का अवसर मिला. फिर फिल्मों मंे अभिनय करने का अवसर मिला. इसी के साथ मैने अपनी कुछ लघु फिल्में लिखीं और उनका निर्माण किया.
अभिनय के क्षेत्र में उतरने पर आपको संघर्ष करना पड़ा या सब कुछ आसानी से होता गया?
जिंदगी में हर मोड़ पर हर इंसान को संघर्ष करना ही पड़ता है. फिल्म इंडस्ट्ी ग्लैमरस इंडस्ट्ी है, इसलिए यहां पर संघर्ष को लेकर काफी चर्चाएं होती हैं. लोग दस संघर्ष के बारे में सुनना व पढ़ना चाहते हैं. पर क्या सिर्फ अभिनेता व फिल्मकार ही संघर्ष करते हैं? मेरी समझ से डाक्टर, इंजीनियर, षिक्षक,सी ए हर किसी को संघर्ष करना पड़ता है. मैने भी संघर्ष किया.अभिनय का कोर्स करने का मतलब यह नहीं है कि आपको तुरंत लोग बुलाकर काम देने लगेंगें. .काम ढूढ़ना भी कलाकार के लिए एक बहुत बड़ा काम है. क्यांेकि यह पूरी तरह से असुरक्षित क्षेत्र है. यहां निष्चित कुछ नही है. आज आपके पास काम है, कल को हो सकता है कि आपके पास काम न हो. बैरी जाॅन एक्टिंग स्कूल से ट्ेनिंग लेने के बाद हमने दूसरे कलाकारों की ही तरह आॅडीश न देना षुरू किया. कई माह तक कई बार रिजेक्ट होेते रहे. लेकिन उसी वक्त मैं एकजुट थिएटर ग्रुप के साथ जुड़कर थिएटर पर अभिनय करने लगा. आॅडीश न का दौर चलता रहा.छह सात माह बाद पहले टीवी में छोटे किरदार मिले. फिर बड़े किरदार मिले. फिल्में भी मिली.कुछ कैमियों किए, जिसमें पैसे कम मिलते थे. सीखने के लिए भी काम करना जरुरी था,तो काम करता रहा. आज भी काम लगातार कर रहा हॅूं. भले ही वह छोटा काम हो या बड़ा काम हो.संघर्ष तो अब भी जारी है.
आपने थिएटर में किन नाटकों में अभिनय किया?
‘सलाम 1950 ’ मेरा सर्वाधिक चर्चित नाटक रहा है. इसके अलावा ‘यमराज जी कुछ तो कहिए’ किया. ,वीवा नाट्य ग्रुप के साथ मैने ‘एक चालू आदमी’, ‘बड़े भाई साहब’सहित कई नाटकों में अभिनय किया. ‘लखनउ थिएटर फेस्टिवल’,‘पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल’,‘काला घोड़ा फेस्टिवल’ जैसे कई फेस्टिवल मंे भी मंैने नाटकों का मंचन किया.
किन सीरियलों से आपको पहचान मिली?
सबसे पहले मुझे हाॅरर सीरियल ‘‘फिअर फाइल्स’’ में अभिनय करने का अवसर मिला. कई सीरियलों में ंकरेक्टर रोल मिले. ‘क्राइम पेट्ोल’ के डेढ़ सौ एपीसोड लगातर किए और इससे मुझे पहचान मिली.. इसके अलावा ‘मषाल’,‘सावधान इंडिया’भी किया. इसके अलावा सीरियल ‘‘बेहद’’ में मेरा इंस्पेक्टर ष्ंिादे का किरदार काफी लोकप्रिय है. एक सीरियल ‘‘हम हैं ना’’ भी है, इसमें नगेटिब किरदार दुर्योधन सिंह निभाकर षोहरत बटोरी. इसमें मेरे साथ स्व. प्रत्यूषा बनर्जी भी थी. ‘ये है मोहब्बतें’ व ‘कुमकुम भाग्य’ सीरियल भी किए.
फिल्मों में षुरूआत कहंा से हुई थी?
मैने सबसे पहले फिल्म ‘‘जोगिया राॅक्स’’ मंे एक छोटा सा किरदार निभाया था, जो कि आज तक प्रदर्षित नहीं हो पायी. 2018 में मैने ‘अदृष्य’ फिल्म की. इसे सफलता मिली. इसमें मैने इंस्पेक्टर गोड़बले का किरदार निभाया था. इस फिल्म को आज भी नेटफ्लिक्स, अमेजाॅन व टाटा प्ले पर काफी देखा जाता है. हाॅलीवुड के निर्देश क चक्र हुसेन की फिल्म ‘जंगली’ व आर बाल्की की फिल्म ‘चुप’ भी की है. और हालिया प्रदर्षित फिल्म ‘‘होटल मर्डर केस’’ में मैने मुख्य भूमिका निभायी है.
‘होटल मर्डर केस’ से जुड़ने का अवसर कैसे मिला?
मैं मूलतः बिहार का निवासी हॅूं. पर पिछले 22 वर्षों से मंुबई में हॅूं. पर बिहार से संबंध नहीं टूटा है. मैं लंबे समय से बिहार के किसी प्रोजेक्ट से जुड़ना चाहता था. एक दिन ‘होटल मर्डर केेस’ के निर्माता व निर्देश क नवीन सिन्हा मेरे पास आए और उन्होने इस फिल्म का जिक्र किया और वह इसे गया,बिहार में फिल्माना चाहते थे. यह भी सच है कि मुझे इससे पहले बिहार की भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्ी से कई फिल्मांे के आफर आए थे. पर जिस तरह की भोजपुरी फिल्में बन रही थीं या आज भी बन रही हैं, वह मुझे आकर्षित नहीं करती. उनका मसाला फिल्में बनाने का अपना अलग तरीका है,जिसमे मैं ख्ुाद को फिट नहीं पाता था.मगर फिल्म ‘होटल मर्डर केस’ की कहानी बहुत ही अलग तरह की है. स्क्रिप्ट पढ़कर मेरे किरदार श मषाद षेख ने काफी आकर्षित किया. यह एक सस्पेंस थ्रिलर की बेहतरीन कहानी है. पटकथा बहुत अच्छी है. इसमंे मेरे साथ पटना रंगमंच के बेहतरीन कलाकार हैं.
फिल्म की कहानी को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
फिल्म ‘‘होटल मर्डर केस’’ की कहानी के केंद्र में बिहार में स्थित बोधगया श हर है, जो कि देश विदेश के पयर्टकों के लिए एक अद्भुत शहर है. लोग दूर सुदूर से यहाँ घूमने आते हैं. एक हसीन जोड़ा भी शहर के आलिशान होटल में ठहरता है. यह आम बात है. एक दिन दोनों देर रात नशे की हालत में होटल वापस आते हैं और सीधे रेस्टोरेंट में पहुँचते है. वेटर को खाने का आर्डर देते हैं,मगर जब वेटर खाना लेकर आता है,तो वेटर को दोनों अपने टेबल पर मृत मिलते है.
इन दोनों की मौत से रहस्य बढ़ जाता है. सवाल उठते है कि इनकी मौत कैसे हुई? क्या किसी ने इनका कत्ल किया है? पर खून बहा नही,श रीर पर चोट के निषान भी नहीं है. कहीं खून भी नहीं बहा,कोई वार नहीं. आखिर इन्हे किसने,कब और कैसे मारा ? यह दोनों हैं कौन? इनके बीच रिष्ता क्या था ? आखिर
कौन इनकी जान का दुश्मन था ?
होटल के वेटर से सूचना मिलने पर जांच करने के लिए पुलिस इंस्पेक्टर शमशाद शेख पहुँचते हैं और फौरन अपनी टीम के साथ तफ्तीश शुरू करते है. शहर के चर्चित होटल में इस तरह की रहस्मय कत्ल पुलिस विभाग के लिए बहुत चिंता की वजह थी. इसकी खास वजह यह थी कि देश विदेश के हजारों सैलानियों का जत्था उस वक्त शहर में मौजूद था. इंस्पेक्टर शमशाद शेख की पहचान श हर में कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले सख्त अफसर के रूप में होती है.
श मषाद षेख की तफ्तीश से मरने वाले की शिनाख्त मोहिनी और रोहित के रूप में होती है,जिनकी हाल ही में शादी हुई थी,पर इनकी आपस में षादी नही हुई थी. हकीकत में मोहिनी अपने पति नवनीत को धोखा दे रही थी,जो एक जमाने में उसका प्यार था,वहीं रोहित की शादी भी अलगाव के कगार पर थी. वह भी अपनी पत्नी स्मृति को धोखा दे रहा था. पर अहम सवाल था कि मोहिनी और रोहित की मौत से किसको फायदा था? आखिर कौन दोनों को मार सकता था?इन्हे मारने का मौका कातिल को कब मिला? यह दो मौतें कैसे हुईं?क्या शमशाद इस रहस्यमयी मौत के तह तक पहुंच पाएंगे? क्या वह कातिल को सजा दिला पाएंगे?
अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगें?
श मषाद षेख एक पढ़ा लिखा हुआ, सुलझा हुआ पुलिस अफसर है. यह दूसरी फिल्मों में नजर आने वाले पुलिस अफसर से अलग है. यह भ्रष्ट नही है. जोर जोर से षोर नही मचाता. वह पुलिस अफसर के साथ ही एक आम इंसान है. मध्यम वर्गीय परिवार में पला बढ़ा है. उसका अपना परिवार है. पत्नी है. वह अपनी पत्नी से डरता भी है, पर पत्नी से अगाध प्यार भी करता है. हमेषा लहजे में षांत स्वभाव से बात करता है. कभी मजाक भी करता है. उसे किसी बात का ईगो नही है. वह मैं की बजाय हम की बात करता है. श क के घेरे में गिरफ्तार अपराधी से वह ‘आप’ करके बताता है. वह मनोवैज्ञानिक तरीके से काम करता है. इस किरदार में कई लेअर हैं.
इस फिल्म को सिनेमाघरों की बजाय डिजिटल क्यों रिलीज किया गया?
आज हम जब यह बात कर रहे हंै तब हिंदी फिल्म इंडस्ट्ी बुरे दौर से गुजर रही है. बड़ी बड़ी फिल्मों को
दर्षक नही मिल रहे हैं. फिल्में दर्षक तक नही पहुॅच पा रही है. वैसे भी स्क्रीन कम हैं और इन स्क्रीन्स पर बड़े कलाकारों की फिल्मों का कब्जा है. छोटे बजट की फिल्मांे को स्क्रीन्स मिलना बड़ा मुष्किल होता है. इंडीपेडें ट निर्माता की फिल्मों को ज्यादा स्क्रीन्स नही मिलते.ओटीटी वाले पहले कंटेंट प्रधान फिल्में ले रहे थे और अब वह भी बड़े कलाकारो की फिल्मे ंलेने लगे है. अब वह थिएटर में प्रदर्षित होने के बाद ही फिल्म ले रहे है. ऐसे मे हमारी फिल्म के पास डिजिटल माध्यम ही एकमात्र विकल्प बचा था. निर्माता ने अपनी फिल्म को ज्यादा से ज्यादा दर्षकों तक पहुॅचाने के लिए मुफ्त में यूट्यूब पर प्रदर्षित करने का इरादा किया. इससे फिल्म दर्षकों तक पहुॅची और इससे एक मुहीम की षुरूआत होगी कि लोग बिहार मंे जाकर फिल्में बनाएंगे.
इसके अलावा कुछ कर रहे हैं?
एक फिल्म ‘बस करो अंाटी’ की है,जो कि जल्द रिलीज होगी. कुछ अन्य फिल्में हैं, जो कि 2023 में रिलीज होगी, पर उनका नाम अभी नहीं ले सकता.