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फिल्म : सीरियस मेन
रेटिंग: चार स्टार
निर्माता व निर्देशक: सुधीर मिश्रा
लेखक: भावेश मंडालिया
कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दिकी, इंदिरा तिवारी,अक्षत दास,श्वेता बसु प्रसाद, नासर,संजय नार्वेकर व अन्य
अवधिः एक घंटा 54 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स
सरकार चाहे जितने दावे कर ले,मगर जातिगत भेदभाव और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपने चेहरों पर नकली मुखौटा लगाए हुए इंसानों की आज भी भरमार है। हालात ऐसेे बन गए हैं कि उच्च पदों पर आसीन लोग ‘शोध फंड’ के नाम पर महज सरकारी धन उगाहने के लिए कई तह के झूठ व आडंबर का सहारा लेते हैं,तो वहीं अपने से नीची जाति के इंसान का पगपग पर अपमानित करने से भी नहीं चूकते। जबकि गरीब व झुग्गी झोपड़े में रहने वाला इंसान अपनी जिंदगी को बेहहर बनाने के लिए कई तरह के झूठ का सहारा लेता है,मगर अफसोस उसका शोषण राजनेता करने भी नही बाज आते हैं और बेचारा गरीब समझ ही नही पता कि वह किस तरह के चक्रब्यह में फंसकर मुक्ति के लिए छटपटा रहा है।
गरीब से गरीब पिता भी नही चाहता कि उनकी संतान उन्ही अभावों में पले और दुःख झेले, जिन्हे उन्होने झेला है. पर अपनी महत्वाकांझा का बोझ अपने बच्चों पर लादने से उनका भी भला नहीं होता।इन्ही मुद्दों को सुधीर मिश्रा ने अपनी फिल्म ‘‘सीरियस मेन’ में मनोरंजक ढंग से उठाया है,जो कि दो अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर देखी जा सकती है।हालांकि यह फिल्म मनु जोसेफ के इसी नाम के अंग्रेजी उपन्यास पर आधारित है।
कहानीः
फिल्म की कहानी मुंबई स्थित ‘‘नेशइंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’’ संस्थान के प्रमुख और खगोलशास्त्री डाॅ.अरविंद आचार्र्य (नासर) के सहायक के रूप में काम करने वाले मध्यम आयु के तमिल दलित अय्यन मणि(नवाजुद्दीन सिद्दिकी) के इर्द गिर्द घूमती है। डाॅक्टर आचार्य ब्राम्हिण हैं। अय्यन अपने ब्राह्मण बाॅस डाॅ.आचार्य को खुश करने के लिए जितना अधिक प्रयास करता है, उतना ही उसे अप्रिय व्यवहार मिलता है। अय्यन इसे डाॅ. आचार्य की बेवकूफी मानते हुए अपना अपमान समझता है। अय्यन मणि मुंबई के वर्ली इलाके की बीडीडी चाल में किराए की खोली में अपनी पत्नी ओर्जा (इंदिरा तिवारी) और बेटे आदि के साथ रहता है। दलित होने के चलते उसने खेतों में काम करने वाले अपने माता पिता की तकलीफों को देखा है।अपने समुदाय में वह पहला बालक था, जिसे पढ़ने का मौका मिला था। उसे दलित होने का दर्द पता है। परिणामतः उसके अंदर इस समाज व दुनिया के खिलाफ एक किस्म की बगावत है। अब वह तय करता है कि जो कुछ उसके माता पिता या उसने इस समाज में झेला है,वह सब वह अपने बेटे आदि (अक्षत दास)के जीवन में नही आने देगा।
अय्यन एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में अपने बेटे के प्रवेष के लिए डाॅ. आचार्य का पत्र लेकर जाता है,मगर पता चलता है कि डाॅ.आचार्य ने स्कूल के प्रबंधक से कह दिया कि पत्र को नजरंदाज कर मैरिट पर ही प्रवेश दिया जाए। परिणामतः आदि को स्कूल में प्रवेश नही मिलता है.अय्यान को लगता है कि डाॅ.आचार्य ने इस तरह उसका अपमान किया है। अपने अपमान में जल रहे अय्यान अपनी अपमान जनक कहानी विकसित कर अपने 10 वर्षीय साधारण बुद्धि के बेटे आदि को झूठ का सहारा लेकर एक गणितीय व वैज्ञानिक प्रतिभा के रूप में समाज के सामने लाता हैै।आदि को सिंगापुर के विज्ञान संस्थान से पुरस्कृत किया जाता है, तब उसी स्कूल की प्रिंसिपल खुद आदि को बुलाकर अपने स्कूल में प्रवेश देती है। अय्यन अपने बेटे आदि को हथियार बना,उसे रटाते हुए शिक्षकों को भी मात देता रहता है,तो वहीं आदि अपने आश्चर्यजनक गणित- सुलझाने के कौशल के साथ प्रिंसिपल का संरक्षण प्राप्त करता है। इधर अय्यन अपने तरीके से आदि को गणित व विज्ञान में महारथी साबित करते हुए उसे भविष्य य का अंबेडकर व आइंस्टीन तक बताता है। जिसके चलते एक दिन स्कूल की प्रिंसिपल,अय्यन से कहती है कि वह अपने संस्थान के चपरासी की तरह क्रिष्चियन धर्म को स्वीकार कर ले, तो उसे कई तरह की आर्थिक व अन्य सुविधाएं मिल सकती हैं। पर अय्यान इसे ठुकरा देता हैं।
अय्यन को पता है कि पीड़ित कार्ड को खेलकर वह क्या कर सकता है, पर इसी खेल में वह खुद को कब वास्तविकताओं से कोसो दूर लेकर चला जाता है, इसका अहसास उसे भी नहीं हो पाता। आदि की बनावटी प्रतिभा कौशल का प्रभाव मीडिया और राजनेताओ पर भी है। क्षेत्र के नेता केशव (संजय नार्वेकर) और उनकी एमबीए पास बेटी अनुजा (श्वेता बसु प्रसाद) अपने निजी स्वार्थ के चलते आदि के कौशल का उपयोग करते हैं। एक दिन ऐसा आता है,जब अय्यन, बदले की आग में जलते हुए डां आचार्य को नौैकरी से निकलवाने में कामयाब हो जाते हैं। क्योंकि डाॅं आचार्य का माइक्रो एलियन व ब्लैक होल की खोज भी झूठ का पुलंदा ही होता है। उसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं। अंततः एक दिन यह झूठ अय्यन मणि व आदि दोनों के नियंत्रण से बाहर हो जाता है।और कहानी पूर्णरूपेण मार्मिक हो जाती है।
निर्देशनः
लंबे समय बाद सुधीर मिश्रा अपने चिरपरिचित अंदाज की फिल्म लेकर आए हैं।फिल्म में कुछ कड़वे सच को उजागर करने के साथ ही उन्होने कुछ अति ज्वलंत सवाल भी उठाए हैं। अहम सवाल यह है कि उंचे पद पर बैठे लोग अंतरिक्ष में एलियन व ब्लैक होल के सिद्धांत ढूढ़ने का झूठ का पुलंदा गढ़ सरकारी खजाने को लूट रहे लोग सही हैं? क्या अय्यन जैसे लोग गलत हैं,जो कि अपने बेटे को समाज में उंची जगह दिलाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है? अपनी महत्वाकांक्षाओ व खुशी को पाने के लिए अपने बेटे के बचपन को हथियार के तौर पर उपयोग करते हुए उसके बचपन को कुचलना कितना जायज है? क्या माता पिता द्वारा अपने बच्चे को भविष्य के आइंस्टीन के रूप में देखना अपराध है? सुधीर मिश्रा ने अपने निर्देशकीय कौशल के चलते इन सवालों के मनोरंजक तरीक से जवाब भी दिए है,अब यह दर्शकों पर निर्भर करता है कि वह इसे किस तरह से लेते हैं.सुधीर मिश्रा ने उन लोगों पर तीखा व्यंग कसा है,जो गरीबी, असमानता, अभावों,भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात करने की बजाय दूरबीनों और गुब्बारों को सरकारी खजाने से प्राप्त करोड़ों रूपए की लागत से अंतरिक्ष में भेजने के कुछ माह बाद ऐलान करते हैं कि इंसान के पास ज्ञान नही है। फिल्म का क्लायमेक्स कमाल का है।
अभिनयः
नवाजुद्दीन सिद्दीकी बेहतरीन अभिनेता हैं,इसमें कोई दो राय नहीं। अय्यन के गुस्से,दम घोंटू तनाव के बावजूद गंभीर बने रहने वाले आम इंसान को उन्होने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है।अय्यन की पत्नी ओजा के हिस्से कुछ खास करने को नहीं आया,फिर भी इस किरदार को निभाकर इंदिरा तिवारी अपनी छाप छोड़ जाती है। बाल कलाकार अक्षय दास ने आदि के किरदार में जान डाल दी है।फिल्म के असली स्टार तो वही है। डाॅ.अरविंद आचार्य के किरदार में नासर याद रह जाते हैं। राजनेता केशव के किरदार में संजय नार्वेकर और उनकी बेटी अनुजा के किरदार में श्वेता बसुप्रसाद अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं।
मायापुरी प्रतिनिधि