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मूवी रिव्यू: इमरजेंसी का काला अध्याय 'इंदू सरकार'

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By Mayapuri Desk
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मूवी रिव्यू: इमरजेंसी का काला अध्याय 'इंदू सरकार'

रेटिंग****

रियलिस्टिक फिल्मों के लिये जाने जाते फिल्मकार मधुर भंडारकर ने अपनी फिल्म ‘इंदू सरकार’ में 1975 के आपातकालीन जैसे काले अध्याय को जिस प्रकार साहसिक तरीके से दिखाया है, वो उनकी इस प्रकार की फिल्मों में इस्तेमाल निर्देशकीय प्रतिभा को दर्शाता है।

'इंदू सरकार' 1985 में उस वक्त की पीएम इंदिरा गांधी द्धारा लगाई गई इमरजेंसी के उन्नीस महीनों के काले अध्याय की ऐसी गाथा है जो उनके पुत्र संजय गांधी द्धारा लिखी गई थी। उन दिनों हुये कितने ही नृशंसता पूर्ण  कृत्य कभी नहीं भूले जा सकते, जैसे सैंकड़ों लोगों की जबरदस्ती की गई नसबंदी जिसमें सत्तर साल के बूढ़े से लेकर तेरह साल का बालक तक का समावेश था। दिल्ली के तुर्कमान गेट स्थित जगह पर बरसों से बसे हुये लोगों को बेदर्दी पूर्वक उनके घरों समेत उजाड़ दिया गया था । उन दिनों बड़े सरकारी अफसरों और पुलिस का इस कदर आंतक था कि उनकी बदौलत न जाने कितने बेकसूर लोग मीसा के अंर्तगत जेल की अंधेरी कोठरियों में सड़ने के लिये भेज दिये गये थे । उन दिनों सिर्फ एक ही शख्स सजंय गांधी की हुकूमत चलती थी । उस शख्स ने देश के विकास के नाम पर न जाने कितने बेकसूर लोगों के घर बरबाद किये और कितनों को सिरे से उजाड़ दिया था। फिल्म की कथा और पटकथा की बारीकियां देखकर पता चलता है कि इस पर काफी रिसर्च की गई है। फिल्म में इमरजेंसी के खिलाफ खड़े आंदोलनकारियों को देख आजादी से पहले की याद आ जाती है। कहने तो कहा गया है कि फिल्म में काफी कुछ काल्पनिक है लेकिन बस इंदू सरकार का किरदार ही काल्पनिक है जो पूरे देश में इमरजेंसी के शिकार लोगों का प्रतिनिधित्व करता है वरना सब कुछ वास्तविक है और इसके लिये मधुर भंडारकर जैसे निर्देशक वाकई  तारीफ के हकदार हैं जो बरसों बाद भी इमरजेंसी जैसा काला अध्याय दिखाने की हिम्मत रखते हैं।publive-image

हालांकि इससे पहले  कीर्ती कुल्हारी कुछ फिल्मों में अपने अभिनय से परिचय करवा चुकी है लेकिन इस बार वो इंदू सरकार के तौर पर पूरी फिल्म अपने कंधाें पर ले कर चलती है । फिल्म में उसके अभिनय के कई रंग देखने को मिलते हैं जैसे पहले बेबस अनाथ हकलाती बच्ची, फिर किशोरी और आखिर में एक ऐसी गृहणी जो दो अनाथ हुये बच्चों के लिये न सिर्फ अपना दांपत्य जीवन दाव पर लगा देती है बल्कि इमरजेंसी के दानवों के खिलाफ स्वंय भी उठ खड़ी होती  है । ये सभी शेड्स को कीर्ती ने सफलता पूर्ण तरीके से निभा कर दिखाया  है। उसके पति और पथ भ्रष्ठ हुये पति की भूमिका में तोता राय चौधरी ने बढि़या काम किया है  लेकिन नील नितिन मुकेश फिल्म का सरप्राइज किरदार हैं। उन्होंने फुल गैटअप के साथ जिस प्रकार सजंय गांधी को जिया है, वो बहुत ही प्रभावशाली रहा। नील कितनी ही देर तो वे पहचान में ही नही आते। इसके अलावा अनुपम खेर तथा सुप्रिया विनोद आदि कलाकार भी उल्लेखनीय रहे ।

आप कह सकते हैं कि इंदू सरकार फिल्म के रूप में ऐसा पुख्ता दस्तावेज है जो इमरजेंसी जैसी दहशतभरी घटना की याद ताजा कर देता है ।

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