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रेटिंग**
दुनियां भर में मुस्लिम आंतकवाद का बोल बाला है। इस बात को कितनी ही फिल्मों में बताया जा चुका है। इस बार निर्देशक युवराज कुमार ने अपनी फिल्म ‘ आई एस आई एस’ ( इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) के कारनामे दिखाने की कोशिश की है।
क्या है कहानी ?
फिल्म में बताया गया है कि किस प्रकार जिहाद का नाम दे राहुल देव अपने आका राशिद नाज़ के कहने पर गरीब तबके के जवान बच्चों को बहका कर कैंप में लाता है। वहां राशिद अपने उत्तेजना भरे भाषण द्धारा उनके दिमाग पर कब्जा करने का काम करता है। उनमें एक नाबिलिग बच्चा भी है जो अपने दादा को तलाश करने के लिये निकला था लेकिन किसी के बहकावे में आकर कैंप पहुंच गया। उसे छुड़ाने के लिये उसकी बहन का होने वाला पति भी कैंप में फंस जाता है। इसके अलावा एक विदेशी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ तथा एक शायर भी इन आतंकवादीयों के जाल में फंसा हुआ है। वे सब किसी न किसी मजबूरी के तहत ही वहां हैं। एक दिन ये सभी इन आंतकवादियों के जाल से निकल भागते हैं और इनके चुगंल से निकल एक बार फिर आजादी की सांस लेते हैं।
निर्देशक युवराज ने खबरों और रसालों के माध्यम से आई एस आई एस द्धारा चलाये जा रहे कैंपों के बारे में बताने की फिल्म में अच्छी कोशिश की है। नोजवानो की ट्रेनिंग देख सिहरन पैदा होती है। लेकिन इन सब के बावजूद फिल्म मनोरंजक न हो एक डाकूमेंट्री बन कर रह गई है। फिल्म की लोकेशंस भी चीट की गई हैं क्योंकि यहां बजट की मजबूरी हो सकती है। लेकिन अब इस विषय पर बनी फिल्में इसलिये भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती क्योंकि दर्शक हर दिन इन के बारे में पढ़ता और देखता रहता है। फिर भी युवराज इस तरह के प्रयास के लिये तारीफ के हकदार तो हैं।
फिल्म में ना खुदा और बेबी जैसी फिल्मों के इन्टरनेशनल अदाकर राशिद नाज हैं उन्होंने आतंकवादी सरगना के किरदार को अपने अभिनय और आवाज से प्रभावशाली बना दिया है। राहुल देव इस तरह के किरदार पहले भी न जाने कितनी फिल्मों में कर चुके हैं। इनके अलावा युवराज कुमार, मेनन आदि ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने की कोशिश की है। हरीश भिमानी एक सच्ची राह दिखाने वाले मौलाना के किरदार में अपनी आवाज का बहुत अच्छा इस्तेमाल करते हैं।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहा जा सकता है कि इसमें मनोरजंन न होकर तकरीरें ज्यादा हैं, लिहाजा फिल्म एक डाकूमेन्ट्री बन कर रह गई है।