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छोटे शहरों व कस्बों से निकलकर बाॅलीवुड में अपनी पहचान बना पाना आसान काम नही है। इसके बावजूद हर वर्ष छोटे षहरों, कस्बों व गांवों से सैकड़ों प्रतिभाएं बाॅलीवुड में अपनी जगह तलाषने के लिए आती रहती हैं। इनमें से कुछ संघर्ष करते करते थक कर वापस चली जाती हैं, तो कुुछ अपने लिए एक जगह बना ही लेती हैं। संघर्ष के बल पर पिछले दस वर्ष के अंतराल में छोटे छोटे किरदार निभाते हुए गत वर्ष कनुप्रिया शर्मा बतौर हीरोईन पहली फिल्म ‘‘फेअर इन लव’’ में नजर आयी थीं। इन दिनों वह पितृसत्तात्मक सोच को चुनोती देने वाली आस्था वर्मा निर्देषित लघु फिल्म ‘द लास्ट राइट्स’ को लेकर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सूर्खियां बटोर रही हैं। - शान्तिस्वरुप त्रिपाठी
क्या आपने बचपन से ही फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना संजो लिया था?
    बिल्कुल नहीं। मैं हिमाचल प्रदेश में शिमला के नजदीक नाहन जिले की रहने वाली हूं। अभिनेत्री बनने का मेरा कोई इरादा नहीं था। जबकि बचपन से ही मैं स्टेज करके आई हूं। नृत्य के परफॉर्मेंस दिए हैं। थिएटर करती रही हूं. थिएटर से मुझे अच्छा रिस्पांस मिलता था. इसलिए मन में कभी कभी आता था कि मैं कैमरे के सामने काम करूं। लेकिन मैंने फिल्मों में अभिनय करने को लेकर कोई योजना नहीं बनाई थी. कुछ सोचा भी नहीं था।तो फिर मुंबई और बाॅलीवुड में आना कैसे हुआ?
तो मुंबई में आपको संघर्ष नहीं करना पड़ा?
आपको लगता है कि मुंबई में संघर्ष किए बगैर कुछ मिल जाए? मेरी राय में बाॅलीवुड में किस्मत ही सबसे ज्यादा असर करती है। पिछले दस वर्ष से मुंबई में मेरा संघर्ष चल रहा है। मैं यह नहीं कहूंगी कि मुझे काम करने का अवसर नही मिला। मैंने ‘प्रतिज्ञा’, ‘खोटे सिक्के’, ‘सब गोलमाल है’, ‘सात जन्म का साथ’ सहित दर्जन भर से अधिक सीरियलों में अभिनय किया।
इसके अलावा मैंने यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘लेडीज वर्सेस रिक्की बहल’ की थी। राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘अब तक छप्पन’ की। ओम पुरी जी के साथ फिल्म ‘‘खाप’’ की। शुजित सरकार के साथ फिल्म ‘पीकू’ की। इसमें दीपिका पादुकोण, अमिताभ बच्चन व इरफान खान थे। इस फिल्म को करने का मेरा अनुभव बहुत शानदार रहा। इसमें मेरा किरदार बहुत महत्वपूर्ण था। मैंने घर की नौकरानी का किरदार निभाया। कुल तीन या चार सीन हैं। लेकिन यह सभी सीन प्रोमीनेट थे। मेरे किरदार को इस फिल्म में महत्व दिया गया। इसी के चलते लोगों ने मेरे किरदार को काफी पसंद भी किया। काफी सराहना मिली। फिल्म का अंत घर के अंदर मेरी इंट्री के साथ ही होता है।क्योंकि यह नौकरानी कह कर गई थी कि जिस दिन यह आदमी इस घर में नहीं रहेगा, उस दिन वापस आऊंगी। तो अमिताभ बच्चन का डेथ सीन और घर के अंदर मेरी इंट्री एक साथ होती है।
आपने कई बड़ी फिल्में की. पर हर फिल्म में आपने छोटे किरदार निभाए?
बाॅलीवुड को आप मुझसे भी ज्यादा बेहतर जानते हैं। बड़े किरदार निभाने के लिए तो बहुत सारे लोग बैठे हुए हैं, जो पहले से काम कर रहे हैं, वह दूसरों को आने नहीं देते। कुछ लोग अपने घर की संतानों को आगे बढ़ा रहे हैं। यानी कि नेपोटिज्म हावी है। ऐसे में हम लोगों के लिए ज्यादा तकलीफ होती है। हमारा यहां कोई गाॅड फादर नहीं है। फिर भी मैं अपने आप को खुशकिस्मत समझती हॅू कि मुझे बड़ी फिल्मों में छोटे, मगर कहानी में महत्त्व रखने वाले किरदार निभाने के मौके मिले। एक बड़े निर्देशक के साथ वेब सीरीज में मेन लीड करने वाली हूँ। पर जब तक षूटिंग षुरू न हो जाए,कुछ कहना ठीक नहीं होगा। एक बड़ी फिल्म की चर्चा चल रही है। इसी तरह मैंने कई दूसरी जगहों पर भी ऑडीशन दिए है। मैंने दो इंटरनेशनल फिल्में ‘बम्बई बर्ड’ और ‘‘ द लास्ट राइट्स’ में मेन लीड किए हैं। जो कि इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल मे धूम मचा रही हैं। इन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। मैंने बतौर हीरोईन ए के मिश्रा की बोल्ड व विचारोत्तेजक फिल्म ‘फेयर इन लव’ की है, जो कि पिछले साल छह सितंबर को पूरे भारत मंे एक साथ प्रदर्शित हुई थी।फिल्म ‘द लास्ट राइट्स’ क्या है?
इंटरनेशनल ख्याति की लेखक व निर्देशक आस्था वर्मा की लघु फिल्म ‘द लास्ट राइट्स’ उस काशी नामक युवती की कहानी है, जो कि अपनी मृतक दादी का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने समाज की पितृ सत्तात्मक परंपराओं को चुनौती देती है। दादी के देहांत के बाद बनारस के मणिकर्णिका घाट में काशी अपनी दादी का अंतिम संस्कार करना चाहती है। मगर वहां उसे संस्कार तो दूर, श्मशान घाट में भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता।इसकी शूटिंग बनारस में की है। अंतिम संस्कार का दृश्य नंदेश्वर घाट पर फिल्माया गया है, हालांकि फिल्म में मणिकर्निका दिखाया है। इस फिल्म का मुद्दा है कि एक लड़की दाह संस्कार क्यों नहीं कर सकती? इस फिल्म की पूरी तकनीकी टीम अमरीका के लॉस एंजेल्स से आयी थी। फिल्म की निर्देशक आस्था वर्मा हंैं, जो मूलतः भारतीय हैं, पर अमरीका में रहकर लाॅस एंजेल्स में काम करती हैं। फिल्म ‘‘द लास्ट राइट्स’’ कई अंतर राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा रही है।
फिल्म के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?
फिल्म ‘द लास्ट राइट्स’ को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहो में किस तरह का रिस्पांस मिल रहा है?
इतना ही नहीं ‘आठवें इंडियन सिने फिल्म फेस्टिवल्स मुंबई’ में दस सितंबर को ही ‘स्पेशरी अवाॅर्ड’ से नवाजा गया। इस फेस्टिवल में विभिन्न देशों की 450 फिल्मों ने हिस्सा लिया।
अमरीकन टीम के साथ फिल्म ‘द लास्ट राइट्स’ करने के अनुभव क्या रहे?
फिल्म ‘बुम्बई बर्ड’ किस तरह की फिल्म है?
कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?
आपके शौक क्या हैं?
डांस, ड्राइविंग और अच्छी डिस्कशन. अच्छा पढ़ना। अच्छी चीजें सीखना। पर गजलें सुनना मुझे बहुत पसंद हैं।किस तरह की किताबें पढ़ना पसंद है?
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