मूवी रिव्यू: गांव में बढ़ते अपराधों को दर्शाती फिल्म - 'जी कुत्ता सै'

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By Mayapuri Desk
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मूवी रिव्यू: गांव में बढ़ते अपराधों को दर्शाती फिल्म - 'जी कुत्ता सै'

रेटिंग**

निर्देशक राहुल दहिया की फिल्म 'जी कुत्ता सै' का टाइटल इसलिये अधिकांश दर्शकों को कन्फयूज कर रहा है क्योंकि बेसिकली फिल्म हरियाणवी भाषा में हैं  और टाइटल भी हरियाणवी है। 'जी कुत्ता सै' का मतलब हरियाणवी में  होता है यानि दिल कमीना है  या कुत्ता है। लेकिन पता नहीं क्यों फिल्म की भाषा को हिन्दी करार दिया जा रहा है

शहरों की तरह हरियाणा के भरे पूरे घरों के लड़के रोमांच और कुछ पाकेटमनी के लिये अक्सर अपराध कर बैठते हैं  दूसरे आजकल गांव खेड़ों में अपराध की वजह ज्यादातर ओरत और सेक्स होता है जो इंसान को कुत्ता बना देता है।  यहां भी तीन दोस्त  राजबीर सिंह और उसके दो दोस्त एक कार चुराने के लिये एक रोड़ एक्सि्डेंट का नाटक करते हैंं। उनके जाल में एक इनोवा गाड़ी फंसती है । पता चलता है कि उस गाड़ी की मालकिन लड़की उसमें अपने ड्राइवर के साथ ही घर से भागी हुई है  और जब उनमें एक दोस्त लड़की के साथ रेप करने की कोशिश करता है तो राजबीर सिंह उसे सख्ती से ऐसा करने से मना करता है।  इस बीच ड्राइपर लड़की का जेपरों से भ्रा बैग लेकर नदारद हो जाता है । बाद में राजबीर लड़की को उसकी कार समेत उसके घरवालों के हवाले कर देता है। गांव में राजबीर की एक नाबालिग  छोटी बहन है। गांव का एक लड़का उसका फायदा उठा मोबाइल पर उसकी नंगी तस्वीर निकाल पूरे गांव में वायरल कर देता है लिहाजा बदनामी को देखते हुये राजबीर के मां बाप उसे जान से मार देते हैं और फिर पुलिस को चढ़ावा चढ़ा आसानी से बच जाते हैं। उसी प्रकार राजबीर की चचेरी बहन भी गांव के एक लड़के से प्यार करती है। जब इस बात का राजबीर को पता चलता है तो वो अपने दोस्तों के साथ उस लड़के को मार खेतों में फेंक देता है और जब लड़की को पता चलता है कि उसके प्रेमी को उसके कजन ब्रदर ने मार दिया है और अब उसके मांबाप उसे भी मार देना चाहते हैं तो वो दूध में जहर मिला देती है लिहाजा उस दूध की चाय पीकर राजबीर समेत पूरा परिवार खत्म हो जाता है।publive-image

फिल्म शायद बताना चाहती हैं कि चूंकि आज भी हरियाणा मे लड़के लड़कियों को अपना जीवन साथ अपने आप चुनने की इजाजत नहीं है लिहाजा वे  उनके प्यार मौंहब्बत के पूरी तरह से खिलाफ हैं और ऐसा करने वालों को आसानी से वे मौंत के घाट उतारने से जरा भी नहीं हिचकते । फिल्म का दूसरा पक्ष ये भी है कि आज शहरों से कहीं ज्यादा गांव अपराध ग्रस्त हो रहे हैं और उनमें  ओरत, सेक्स  के तहत ऐसे अपराध कर बैठते हैं और इन अपराधों में  नई तकनीक का भी  योगदान है। फिल्म में सब दिखाया तो जाता है लेकिन उसका कोई उपाय या संदेश देने की जरा भी कोशिश नहीं करती । फिल्म की पृष्ठभूमि,माहौल, भाषा पूरी तरह से वास्तविक है इसलिये फिल्म रीयल लगती है।

कथानक के अनुसार अनजाने कलाकार फिल्म को रीयल बनाते हैं जैसे राजबीर सिंह, नेहा चौहान, रश्मि सिंह, संदीप गोयत, विद्या दीक्षित, नितिन पंडित तथा पर्ब शर्मा सभी वास्तविक किरदार लगे।

गांव में बढ़ते अपराधों को प्रभावशाली ढंग से दिखाती है फिल्म।

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