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रेटिंग**
क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि एक ही डायरेक्टर एक ही कहानी को दो बार निर्देशित करने का साहस कर सकता हो। अश्विनी धीर ऐसे डायरेक्टर हैं जिन्होंने 'अतिथि तुम कब जाओगे' के बाद एक बार लगभग उसी कहानी को फिल्म ‘गेस्ट इन लंदन’ में यूज कर निर्देशित करने का कारनामा कर दिखाया है। हाईलाईट, दोनों फिल्मों में एक ही रोल को परेश रावल ने भी दो बार निभाने का कारनामा कर दिखाया है।
कार्तिक आर्यन लदंन में पिछले चार साल से रह रहा है वो वहां की नागरिकता पाने के लिये एक टेक्सी ड्राइवर कृति खरबंदा के साथ झूठी शादी करने का नाटक करता है। उसी दौरान पंजाब में उसके चाचा के पड़ोसी के किरायेदार परेश रावल और तन्वी आमी उसके मेहमान बनकर आते हैं और लगभग जबरदस्ती उसके चाचा चाची बन जाते हैं । कार्तिक और कृति चाचा जी की हरकतों जिनमें पाद मारना भी शामिल है, परेशान हैं । शादी के बाद एक दिन कार्तिक कृति के कहने पर दोनों को कहीं छौड़ आता है लेकिन बाद में उन्हें पता चलता है कि वे जो समझ रहे थे असल में चाचा चाची उससे उलट थे ।बाद में वे पश्चाताप स्वरूप दोनों से माफी मांगते हैं ।
फिल्म के प्रोड्यूसर कुमार मंगत रिलीज से पहले दावे कर रहे थे कि फिल्म का अजय देवगन की फिल्म 'अतिथि तुम कब जाओगे' जिसे अश्विनी धीर ने ही डायरेक्ट किया था से कोई लेना देना नहीं जबकि ये अतिथि....की हू बूहू नकल है, यहां तक जो रोल परेश ने अतिथि... में निभाया था कृमश उसी रोल में वे यहां भी नजर आ रहे हैं। अतिथि...एक हास्य भरी एन्टरटेनमेनट फिल्म थी जबकि गेस्ट.... उतनी ही फूहड़ है। जिस फिल्म में पादने को कॉमेडी से जोड़ दिया जाये उसका स्तर कैसा होगा आप स्वंय समझ सकते हैं यही नहीं पादने पर एक ग़जल तक फिल्म में है। कॉमेडी के नाम पर पाकिस्तानी और चाइना किरदार को लेकर नस्लवाद तथा सस्ते किस्म के उल्हाने फिल्म को और भी सस्ता बनाते हैं। अंत में फिल्म को न्यूयार्क की 9.11 की घटना से जोड़ दिया है।
कार्तिक आर्यन ने अपनी भूमिका को कुशलता से निभाया हैं कृति खरबंदा की साधारण सी भूमिका थी। उसी प्रकार परेश रावल का दौहराव भर है तन्वी आज़मी साधारण रही। लेकिन संजय मिश्रा अच्छा अभिनय कर गये। अजय देचगन भी एक छोटे से रोल में दिखाई दे जाते हैं।
अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं जो फिल्म देखने की वजह बन सके।