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मूवी रिव्यू: एक बेहतरीन संदेशात्मक मनोरंजक फिल्म ‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा’

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By Mayapuri Desk
मूवी रिव्यू: एक बेहतरीन संदेशात्मक मनोरंजक फिल्म ‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा’
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रेटिंग****

अगर आपकी कहानी में नयापन हो कोई अच्छा प्रेरक इशू हो तो फिल्म हर तबके की पसंद पर खरी साबित होगी। निर्देशक श्री नारायण सिंह की फिल्म ‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा’ ऐसी एक फिल्म है जिसमें स्वच्छता अभियान को लेकर ना सिर्फ एक बेहतरीन संदेश हैं बल्कि एक अच्छी लव स्टोरी में टॉयलेट की जरूरत को कुछ इस तरह पिरोया है कि वो सीधे दर्शक के दिल पर असर करता है।publive-image

अक्षय कुमार अपने भाई दिव्यांशू शर्मा और अपने पिता सुधीर पांडे के साथ मथुरा के एक गांव में रहता है,उसकी साइकिल सेल और रिपेयरिंग की दुकान है। अक्षय छत्तीस साल का हो चुका है लेकिन उसकी शादी उसके कट्टर ब्राह्मण पिता की वजह से नहीं हो पा रही है क्योंकि उनका मानना है कि चूंकि अक्षय मांगलिक है इसलिये उसकी शादी उसी लड़की से होगी जिसके दायें हाथ के अंगूठे में छह उगलीयां होगी। इससे पहले उसके कुछ दोष दूर करने के लिये एक भैंस से उसकी शादी करवा दी जाती है। आगे छंगी लड़की की तलाश है। पास के गांव में भूमि पेंडनेकर अपने माता पिता और काका अनुपम खेर के साथ रहती है। भूमि काफी पढ़ी लिखी और आज के विचारों की लड़की है। उसका और अक्षय का प्यार हो जाता है और कुछ जुगाड़ लगाने के बाद शादी भी हो जाती है लेकिन दिक्क्त अगले दिन उस वक्त शुरू होती है जब भूमि को पता चलता है कि उसकी ससुराल के घर में तो टॉयलेट ही नहीं है। पहले तो भूमि अक्षय को इस बारे में समझाती है कि उसे घर के टॉयलेट में जाने की आदत है वो बाहर शौच के लिये नहीं जायेगी। लेकिन जब अक्षय के पिता नहीं मानते तो एक दिन वो घर छोड़ मायके आ जाती  है। इसके बाद अक्षय अपने पिता और गांव वालों को समझाने की काफी कोशिश करता है कि खुले में शौच करना ठीक नहीं इसलिये हर घर में टॉयलेट होना चाहिये। लेकिन जब सब नहीं मानते तो वो अपनी बीवी और भाई के साथ टॉयलेट के लिये बाकायदा आंदोलन शुरू कर देता है। अंत में उनकी मेहनत रंग लाती हैं क्योंकि वो अपने पिता और गांव वालों  और पूरे देश को टॉयलेट का महत्व समझाने में कामयाब हो जाता है।publive-image

अच्छे संदेश को एक प्रेम कहानी में अच्छी तरह से मिक्स कर बड़े बढ़िया ढंग से बनाई गई इस फिल्म से हर कोई प्रभावित हुये बिना नहीं रह पाता। इसके बाद रीयल माहौल, भाषा और लोकेशन तथा कसी हुई पटकथा और संवाद फिल्म को ऐसा रूप देने में सफल हैं जिसमें मनोरंजन के साथ साथ एक मजबूत संदेश भी है, जो सीधा दर्शको पर असर करता है। निर्देशक ने शुरू से अंत तक फिल्म और किरदारों पर अपनी पकड़ बनाये रखी है। इसके अलावा फिल्म का संगीत भी आकर्षक है जुगाड़,  हंस मत पगली, बखेड़ा तथा लट्ठ मार होली आदि गीत दर्शनीय बने पड़े हैं।

अक्षय कुमार एक हरफनमौला अभिनेता बन चुके हैं इसमें कोई दोराय नहीं।  अपनी बीवी से बेहद प्यार करने वाले एक बढ़ती उम्र के किरदार को अक्षय ने अपने अंदाज में निभाया है। उनका साथ उनके भाई बने दिव्यांशू शर्मा ने बेखूबी निभाया है। भूमि पेंडनेकर ने एक आजाद ख्याल लड़की के तौर पर बेहतरीन काम किया है। अनुपम खेर के हाथ इस बार एक आम सी भूमिका लगी है जिसे उन्होंने अपने अंदाज में निभा कर खास बनाने की भरकस कोशिश की। सुधीर पांडे कट्टर ब्राह्मण के रोल में खूब जमे हैं। शुभा खोटे भी प्रमुख कलाकारों का बढ़िया साथ निभाती नजर आती हैं।publive-image

अंत में फिल्म के लिये कहना है कि फिल्म के दर्शकों को चाहिये कि वे उन लोगों को भी फिल्म देखने के लिये प्रेरित करें जो आज भी बाहर शौच के लिये जाते हैं ।

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