मूवी रिव्यू: इमोशन का नाकाम डोज 'ट्यूबलाइट' By Mayapuri Desk 22 Jun 2017 | एडिट 22 Jun 2017 22:00 IST in बॉक्स ऑफ़िस New Update Follow Us शेयर रेटिंग*** एक था टाइगर तथा बजरंगी भाईजान जैसी सुपर हिट फिल्मों के बाद कबीर खान और सलमान खान की जोड़ी देखने के लिये दर्शक फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ का बेसर्बी से इंतजार कर रहे थे । लेकिन फिल्म देखने के बाद उनका उत्साह झाग की तरह बैठ सकता है क्योंकि फिल्म महज कबीर खान की पिछली फिल्म बजरंगी भाईजान जैसी इमोशनल फिल्म के इमोशन को भुनाने की नाकाम कोशिश की गई है। कहानी 1962 की है । उत्तरा खंड के गांव जगतपुर में दो भाई लक्षमण सिंह बिश्ट और भरत सिंह बिश्ट यानि सलमान खान और सोहेल खान में बिना मां बाप के रहते हैं । लक्षमण बचपन से ही दिमागी रूप से कमजोर है, लिहाजा उसकी देखभाल उसका छोटा भाई भरत करता है। लक्षमण की दिमागी परेशानी को लेकर सब उसे ट्यूबलाइट कह कर चिढ़ाते हैं । अचानक चीन और भारत के बीच तनाव पैदा होना शुरू हो जाता है तो इंडियन आर्मी, जवानों की भर्ती शुरू कर देती है । जगतपुर में वहां औमपुरी यानि बन्ने चाचा के परामर्श पर सोहेल भी आर्मी में भर्ती हो जाता है । पीछे अकेले रह गये लक्षमण की देखभाल बन्ने चाचा करते हैं। एक बार जगतपुर में एक जादूगर शाहरूख खान आता है वो लक्षमण को अपने पर यकीन होने को पाढ पढ़ाता है और उसे साबित करने के लिये लक्षमण अपने यकीन द्धारा बोतल तक हिला देता है । चीन भारत के बीच युद्ध शुरू हो जाता है । इसी बीच जगतपुर में जूजू और उसका बेटा रहने आते हैं। पहले तो उन्हें चीनी मान लक्षमण उनका विरोध करता है लेकिन उसे पता चलता हैं कि दोनों मां बेटे यहीं पैदा हुये,उनका चीन से कोई सरोकार नहीं था लिहाजा वे भी उसकी तरह इंडियन ही थे । यहां उसे बचपन में गांधी जी और बाद में बन्ने चाचा द्धारा कही गई बातें अहिंसा,भाईचारे और एक दूसरे से प्यार करने को प्रेरती करती है लिहाजा वो बाद वो जूजू के बेटे गुआ से दोस्ती कर लेता है जिसे लक्षमण गू कह कर पुकारता है। बाद में किस प्रकार वो चीनीयों से नफरत करते नारायण यानि मौंहम्मद जीशान से दोनों मां बेटे को बार बार बचाता है। लक्षमण को अपने यकीन पर बहुत यकीन है लिहाजा उसके यकीन के चलते फोज में उसका खोया हुआ भाई वापस आता है। जैसा कि बताया गया, कि इस बार कबीर खान सलमान का जादू चलाने में लगभग नाकामयाब रहे हैं । बेशक फिल्म में इमोशन का फुल डोज है लेकिन दर्शक उससे शुरू से अंत तक नहीं जुड़ पाता ।दूसरे इस बार कबीर ने सलमान की इमेज के विपरीत उसे दिखाने की कोशिश है,इस इमेज के तहत सलमान के फैंस उसे जरा भी पंसद नहीं करने वाले, क्योंकि हीमैन की इमेज वाले सलमान को वे बार बार पिटते हुये नहीं देखना पंसद करेंगे,जबकि फिल्म में यही हुआ है। सबसे बड़ी बात कि सलमान की अपनी एक लिमिट है वे हर रोल नहीं कर सकते । जबकि इस तरह के रोल इससे पहले माई नेम इज़ खान में शाहरूख खान,कोई मिल गया में रितिक रौशन सफलता पूर्वक निभा चुके हैं। फिल्म की पटकथा और संवाद भी कमजोर हैं लेकिन उत्तराखंड की लोकेशन खूबसूरत है। सलमान खान ने अपनी भूमिका में काफी मेहनत की है लेकिन उन्हें एक कमजोर शख्स के तौर पर देखना दर्शक कतई पसंद नहीं करेंगे । सुहेल खान एक फौजी की भूमिका में ठीक लगे। स्व. ओम पुरी बन्ने चाचा की साधारण सी भूमिका में नजर आये, उसी प्रकार मौहम्म्द जीशान की भूमिका भी औसत ही रही। विदेशी अभिनेत्री जूजू की हिन्दी कमाल की रही,वो इमोशनल दृश्यों में प्रभावित करती है । उसी तरह उसके बेटे की भूमिका में बाल कलाकार मार्टिन रे टंगू बढि़या काम कर गये। ओमपुरी की बेटी के रोल में साउथ फिल्मों की स्टार इसा तलवार को छोटी सी साधारण सी भूमिका में देख हैरानी हुई लेकिन बीजेन्द्र काला अपनी भूमिका में खूब जचें । इनके अलावा यशपाल शर्मा आर्मी आफिसर की भूमिका में तथा छोटे से अरसे के लिये शाहरूख खान जादूगर के रोल में रंग जमा जाते हैं। सलमान खान के प्रशंसक एक बार फिल्म देख सकते हैं। #Salman Khan #Sohail Khan #movie review #Tubelight #box office movie review हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article