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निर्देशिका एश्वर्या रजनीकांत की 'वीआईपी 2' फिल्म हिन्दी में कई बार दौहराई गई कहानी पर आधारित एक साधारण फिल्म साबित होती हैं।
धनुष यानि रघुवरण एक मेधावी इंजीनियर हैं. जिसे बेस्ट इंजीनियर का अवार्ड हासिल हुआ हैं. ये बात देश की नंबर वन कंस्ट्रक्शन कंपनी की घमंडी मालकिन काजोल यानि वसुंधरा परमेश्वर को हजम नहीं हो पाती. लिहाजा वो पहले तो रघुवरण को जॉब ऑफर करती हैं. लेकिन जब रघुवरण मना कर देता हैं तो वसुंधरा उसे बेरोजगार बना देने में कोई कसर बाकी नहीं रखती. अंत में रघुवरण वसुंधरा को जमीन पर लाकर ही दम लेता हैं।
इससे पहले 'वीआईपी 2' एक हिट फिल्म साबित हुई थी. इस बार इस फिल्म का पार्ट 2 हिन्दी में भी डब किया गया लेकिन इस तरह की कहानियों पर हिन्दी में कई फिल्में बन चुकी हैं. जिनमे सुपरहिट फिल्म – त्रिशूल भी थी. लेकिन ये फिल्म त्रिशूल के आस पास भी नहीं हैं। कहानी पटकथा तथा सवांद धनुष ने लिखे हैं जो अति साधारण हैं. फिल्म कुछ देर हिन्दी में रहती हैं लेकिन बाद में पूरी तरह साउथ इंडियन फिल्म में तब्दील हो जाती हैं. काजोल ने हिन्दी में अपनी डबिंग खुद की हैं. बाकी धनुष समेत सभी कलाकारों की डबिंग ठीक रही।
काजोल एक कंस्ट्रक्शन कंपनी की घमंडी मालकिन की भूमिका में बढ़िया अभिनय करती दिखी. धनुष हीरो होने के बावजूद काजोल के सामने बोने नजर आते हैं. बाकी धनुष की पत्नी के रोल में अमला पॉल, माँ की भूमिका में सरन्या पोरवनन तथा उसके पिता के रोल में समुथिरकानी आदि सभी ने अच्छा काम किया हैं।
अंत फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं जिसके लिए दर्शक आकर्षित हो. हां काजोल के लिए फिल्म एक बार देख सकते हैं।