रेटिंग****
एक ऐसा पारिवारिक ड्रामा जिसमें कॉमेडी और इमोशन का जबरदस्त तड़का हो उसे लेखक निर्देशक अनीस बज़्मी ही रच सकते हैं। दूसरे जबकि इन दिनों इस तरह की फिल्मों का दौर लगभग खत्म सा हो चका है ऐसे में अनीस बज़्मी पारिवारकि फिल्म ‘मुबारकां’ में ऐसा कुछ रचते हैं जिसे देख दर्शक शुरू से अंत तक खिलखिलाता ही रहता है।
अनिल कपूर के भाई संजय कपूर के दो जुड़वा बच्चे पैदा होते हैं लेकिन उनके पैदा होते ही संजय और उसकी पत्नि एक एक्सिडेन्ट में मारे जाते हैं। बाद में ये दोनों बच्चे करण और चरण अपने चाचा और बुआ के यहां पलते हैं। करण अपनी बुआ रत्ना पाठक के यहां लंदन में है और चरण पंजाब में अपने चाचा के पास। जंहा करण जो स्वभाव से स्मार्ट है और पंजाब की लड़की इलियाना डीक्रूज से प्यार करता है, जिसके पीछे वो पंजाब तक आ पहुंचता है। जबकि चरण बहुत ही शर्मीले स्वभाव का ऐसा सिख है जो अपने पिता के सामने जबान तक नहीं खोल पाता, लेकिन वो एक मुस्लिम लड़की नहीं शर्मा से प्यार करता है, जिसके बारे में अपने पेरेन्ट्स को बता नहीं पाता। लंदन में करण के माता पिता ललित परिमू रत्ना पाठक उसकी शादी एक बेहद अमीर सिंधू यानि राहुल देव की लड़की अधिया शेट्टी के साथ करने के प्लान बना रहे हैं इस पर करण लंदन में रह रहे अपने चाचा अनिल कपूर को अपनी मुसीबत बताते हैं। उनके कहने पर करण अपनी जगह चरण को वहां भेज देता है । वहां ऐसा कुछ होता है कि सब कुछ गुड़ गोबर हो जाता है लिहाजा स्थितियां सुलझने के बजाये उलझती चली जाती हैं वहीं हास्य और इमोशन पैदा होता है जो उस वक्त तक चलता है जब तक सारी स्थिति सुलझा नहीं जाती।
अनीस बज़्मी एक ऐसे मेकर हैं जो इस तरह का पारिवारिक ड्रामा रचने में माहिर हैं । बेहद भव्य और चमकीली कहानी पंजाब से लंदन तक फैली हुई है। दोनों तरफ के किरदार आपस में इस कदर उलझे हुये हैं कि उनकी उलझन ही हास्य पैदा करती है। बावजूद इसके चाहे लंदन हो या पंजाब फिल्म की चमक दमक देखते बनती है। बेहतरीन और मंहगी लांकेशसं तथा हर किरदार का वैभवशाली लुक देखते हुये दर्शक शुरू से अंत तक एक अलग ही दुनिया में खोया रहता है। इसे निर्देशन का ही कमाल कहा जायेगा कि दर्शक को दो सीन का किरदार भी भली भांती याद रह जाता है यानि ये एक ऐसी कसी हुई पटकथा और चुटीले संवाद वाली फिल्म है जिसमें मनोरंजन के सारे मसाले मौंजूद हैं।
फिल्म की लंबी चौड़ी कास्टिंग मे सबसे पहले अनिल कपूर का नाम लिया जाना चाहिये क्योंकि इस उम्र में भी उनकी चुस्ती फुर्ती ऐसी, जिसे देख जवान भी शर्मिंदा हो जायें। अपने सदाबहार अभिनय के तहत वे शुरू से अंत तक दर्शक को खिलखिलाने पर मजबूर करते रहते हैं। अर्जुन कपूर अपनी दोनों भूमिकाओं का सफल निर्वाह कर प्रभावित कर जाते हैं। रत्ना पाठक और पवन मल्हौत्रा की जुगल बंदी कमाल की है। उनका बेहतरीन साथ दिया है ललित परिमू और राहुल देव ने । इलियाना डीक्रूज, नेहा शर्मा तथा अधिया शेट्टी का उतना ही काम है जितना इस तरह की फिल्मों में नायिकाओं का होता है। गुरूद्धारे के बाबा की छोटी सी भूमिका में लंदन के अभिनेता कृष्ण टंडन एक बार फिर अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करवा जाते हैं।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहा जा सकता है कि अरसे बाद एक ऐसी पारिवारिक फिल्म देखने को मिली है,जिसमें मनोरजंन के सारे मसाले भरपूर मात्रा में मौंजूद हैं।