लोकतंत्र का कड़वा सच 'न्यूटन' By Mayapuri Desk 22 Sep 2017 | एडिट 22 Sep 2017 22:00 IST in बॉक्स ऑफ़िस New Update Follow Us शेयर रेटिंग***** अब एक्सपेरिमेंटल सिनेमा या रीयलस्टिक फिल्मों का जमाना है। इन छोटे बजट की फिल्मों के आगे बिग बजट फिल्में पानी भरती नजर आ रही हैं। इसी क्रम में इस हफ्ते की निर्देशक अमित वी मसूरकर की फिल्म ‘न्यूटन’ शीर्ष पर है। इस फिल्म को ऑस्कर के लिये भारत की तरफ से एंट्री के लिए चुना गया है। नूतन कुमार कैसे बना Newton ? नूतन कुमार जिसने अपने नाम में संशोधन कर उसे न्यूटन कर दिया। यानि राज कमार राव एक पढ़ा लिखा, ईमानदार नौजवान है जिसकी हाल ही में प्रशासनिक विभाग की सरकारी नौकरी लगी है। आदिवासी इलाके में होने वाले चुनाव के लिये उसे रिजर्व चुनाव अधिकारी के तौर पर चुना जाता है। जब वो छत्तीसगढ़ के जंगल में कुछ आदिवासियों की वोटिंग के लिये जाता है। तो उसके साथ उसके सहकर्मी रघुवीर यादव, अंजली पाटिल तथा एक रिजर्व पुलिस ऑफिसर पंकज त्रिपाठी और उसकी टीम होती है। वहां राजकुमार पुलिस अफसर से कमिश्नर तक के रवैये से हैरान है। क्योंकि इन लोगों ने लोकतंत्र के नाम पर आदिवासियों का जो मजाक बनाया हुआ है वो हैरानी के अलावा दयनीय भी है। बाद में राजकुमार अपने कुलीग और पुलिस ऑफिसर के खिलाफ जाकर किस प्रकार ईमानदारी से निष्पक्ष चुनाव कराने में सफल होता है। आदिवासियों के दोहन की कहानी इसमें कोई शक नहीं कि ये विविध सिनेमा का स्वर्णिम युग है। आज ऐसे सब्जेक्ट फिल्मों के जरिये सामने आ रहे हैं, जिनकी कभी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। न्यूटन एक ऐसी ही फिल्म है जिसमें दिखाया गया है, कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों का लोकतंत्र के नाम पर किस प्रकार दोहन किया जा रहा है। आदिवासी, जिनके एक तरफ पुलिस और प्रशासन, दूसरी तरफ नक्सलवादी, लिहाजा ये दोनों के नीचे पिसने के लिये विवश हैं। क्योंकि प्रशासन में हर कोई स्वेच्छा से या मजबूरन अपने कर्तव्य से बेजार है। 'न्यूटन' से जुड़ाव महसूस करेंगे आप ऐसे में एक ईमानदार नौजवान इन सबका सामना किस प्रकार करता है। निर्देशक ने बहुत ही रियलस्टिक अप्रोच के साथ दिखाया है। फिल्म देखते हुये दर्शक को लगता है जैसे वो सब उसके सामने घट रहा हो। आदिवासियों के चेहरों पर दृवित कर देने वाली गहरी निराशा और विवशता देखकर दर्शक सिहर उठता है। निर्देशन के अलावा फिल्म का हर पक्ष प्रभावशाली है। इन सब खूबियों के तहत बेशक ये फिल्म ऑस्कर में जाने की हकदार है। राजकुमार राव की बेहतरीन अदाकारी नई जनरेशन के कलाकारों में राजकुमार राव एक बेहतरीन अदाकार के तौर पर उभर कर सामने आते हैं। वैसे तो उन्होंने अपनी हर फिल्म में अपने अभिनय से प्रभावित किया हैं लेकिन इस फिल्म में उनकी अदाकरी चरम पर है। रघुवीर यादव का अनुभव उनकी भूमिका में साफ तौर पर झलकता है। कुछ फिल्मों से अंजली पाटिल अपने अच्छे अभिनय से दर्शकों और फिल्मकारों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रही हैं। इस फिल्म में एक आदिवासी पढ़ी लिखी लड़की की भूमिका को उसने स्वाभाविक अभिव्यक्ति दी है। रिजर्व पुलिस फोर्स के कमाडिंग ऑफिसर में पंकज त्रिपाठी ने लाजवाब काम किया है। अंत में आदिवासी क्षेत्रों में लोकतंत्र का सच बताती इस फिल्म को देखना हर दर्शक के लिये अनिवार्य होना चाहिये। #movie review #Newton हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article