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चंद निर्देशक किसी भी कहानी को घुमा फिरा कर और कन्फयूजन पैदा करते हुये फिल्माना पंसद करते हैं। निर्देशक ओनीर भी इन्ही मेकर्स में शामिल है। उदाहरण बतौर उनकी इस सप्ताह रिलीज फिल्म ‘शब’ देखी जा सकती है। जिसमें साधारण सी कहानी को पेचीदा बना कर पेश किया गया है।
उत्तराखंड से एक लड़का मोहन यानि आदित्य बिस्ट दिल्ली मॉडल बनने के लिये आता है लेकिन जजेज उसे रिजेक्ट कर देते हैं, उनमें से एक जज सोनल यानि रवीना टंडन अपनी ग्रहस्थी से खुश नहीं लिहाजा वो मोहन को इस्तेमाल करने लगती हैं और उसकी हर जरूरत पूरी करती है। मोहन रायना यानि अर्पिता चक्रबर्ती की तरफ आकर्षित हो उसे प्यार करने लगता है जबकि अर्पिता उससे उम्र में काफी बड़ी है तथा वो अपने दोस्त नील के रेस्तरां में काम करती है। अर्पिता अपने फ्रेंच नेबर की तरफ आकर्षित होती है लेकिन उसे पता चलता है कि वो भी नील की तरह गे है। अर्पिता नील और अपने नेबर को मिला देती है। इसके बाद में मोहन और अर्पिता तथा मोहन और सोनल के रिश्ते अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं।
ओनीर अपनी फिल्मों में गे किरदार तथा सेक्स को लेकर बनते बिगड़ते रिश्तों की कहानियों का ही महत्व देते हैं। शब में भी तकरीब वही सब है लेकिन वो सब सीधा नहीं बल्कि निर्देशक कई किरदारों को लेकर गढ़मढ़ कर दर्शक को सफलता पूर्वक कंफ्यूज करने में कामयाब हैं। फिल्म में मोहन के सामने उच्च वर्ग की उससे कहीं ज्यादा बड़ी औरते अपने आपको परोसने के लिये तैयार रहती हैं। वह सब देख महसूस होने लगता है कि क्या वास्तव में उच्च वर्ग की महिलायें ऐसी होती हैं। इस तरह की फिल्में यूथ को गलत मेसेज देती हं तथा सबसे बड़ी बात कि इस तरह की फिल्म के लिये दर्शक मंहगी टिकट पर पैसे खरचने से रहा।
रवीना टंडन ने एक उच्च वर्ग की सेक्स का तरसी महिला के किरदार में कुशलता से निभाया है। वहीं अर्पिता चटर्जी अधेड़ उम्र के बावजूद बेहद खबसूरत है उसने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है। आदित्य बिस्ट अपनी पहली फिल्म के हिसाब से ठीक रहा।
लगता है 'शब' आम दर्शक के लिये नहीं बल्कि फिल्म महोत्सव के लिये बनाई गई फिल्म है।