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रेटिंग***
बेशक इससे पहले दोस्ती को लेकर कितनी ही फिल्मे आ चुकी हैं। लेकिन निर्देशक मिलिंद थाईमड की फिल्म ‘तू है मेरा संडे’ की दोस्ती थोड़ी अलग है और इस दोस्ती का आधार है फुटबाल।
क्या है फिल्म कहानी ?
मुबंई जैसे शहर में अलग उम्र, व्यवसाय और नोकरी जुड़े चार दोस्त जिनमें कोई व्यापारी है, तो कोई टेलर, कोई कलर्क है तो कोई शेयर ब्रोकर। इन चारों की दोस्ती का आधार है फुटबाल। हर संडे ये चारों दोस्त फुटबाल लेकर निकलते हैं लेकिन मुंबई में सब कछ है, बस नहीं है तो खेलने के मैदान। इस खेल के साथ साथ उन चारों की पारिवारिक परिस्थयों को भी दिखाया गया है।
करीब आधा दर्जन फिल्मी मेलों में घूम चुकी ये फिल्म महानगर के चार परिवारों के सदस्यों के पारिवारिक रिश्तों और समस्याओं से अवगत करवाती है। चारों तरफ से समुद्र से घिरे इस महानगर में लोगों के बढ़ते सैलाब को देखते हुये खेलने के लिये मैदान तलाष करना कोई आसान काम नहीं है इसलिये चारों दोस्त कभी गली कूंचों में या कभी समुद्र किनारे खेलने के लिये मजबूर हैं। फिल्म के किरदारों को देखते हुये दर्शक भी उनमें शामिल हो जाता है क्योंकि ये फिल्म और इसके किरदार उसके आसपास के ही हैं। इसके अलावा फिल्म ये भी साबित करती है कि अगर विषय अच्छा और नया है तो फिल्म में स्टार हो या नये कलाकार, कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि लगभग नये कलाकारों से सजी इस फिल्म के विषयवस्तु में एक नयापन दिखाई देता है।
कास्टिंग के अनुसार विशाल मल्होत्रा, वरूण सोबती, शिव सुब्रमन्यम तथा शहाना गोस्वामी तथा कुछ नये कलाकारों ने अपने किरदार में घुस कर काम किया है।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहा जा सकता है कि ये एक असरदार, रोचक तथा प्रभावशाली ऐसी फिल्म है जिसे हर कोई देख सकता है।