- मायापुरी अंक 54,1975
नादिरा (Nadira) के जन्मदिन पर खास:
अपने समय की हसीन अभिनेत्री नादिरा एक अर्से से एक हारी हुई औरत की तरह जिंदगी गुज़ार रही थी। और औरत बस एक बार हार जाए तो उसके पास कुछ भी नही बचता न सपने, न ख्याल, न तमन्ना न इज्जत, न अस्मत नादिरा ने अपनी हार का इंतकाम लेने के लिए उसके बाद कई बार बढ़ चढ़कर दांव लगाए किंतु वह हारती चली गई। बजाहिर वह लाख जिंदा दिली दिखाए किंतु उसका दिल अंदर से छलनी हो चुका है।
पिछले दिनों 'जूली' के प्रदर्शन के पश्चात एक स्टूडियो में नादिरा मिल गई। हमने उसे बधाई दी तो उसकी आंखे आंसूओं से भर आई। कहने लगी, आपको मालूम है आज 25 वर्षो के बाद मुझे वह स्थान मिल गया है जिसके लिए मैंने अपना तन मन धन सब कुछ बर्बाद कर दिया है। आज मैं इस योग्य हो गई हूं कि अपने रोल अपनी पसंद से स्वीकार करूं और अपनी प्राइस पर काम करूं।
'जूली' में नादिरा ने जो सफलता पाई है उससे नादिरा को लगभग नौ फिल्में मिल गई है। इससे नादिरा में एक बार फिर आत्मविश्वास पैदा हो गया है। हालांकि नादिरा वही है जो 'आन' जैसी बड़ी फिल्म से फिल्म लाइन में हीरोइन बनकर आई थी और फिर 'श्री 420' में हीरोइऩ से वैम्प बन कर भी दर्शकों के दिलों पर छाई रही थी। यही नही 'जूली' से पूर्व 'एक नजर' में भी नादिरा को ऐसी ही सफलता मिली थी। इसके बावजूद नादिरा के फिल्मी करियर में गैप पड़ रहा था। पर गैप ही उसके जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजडी रही है। स्व. मेहबूब खान ने नागपाड़ा की गलियों से उठाकर उसे रजतपट की रूपहली दुनिया में पेश किया था।
'आन' में एक घमंडी लड़की के रूप में अपने जौहर दिखाए थे। उस समय उसके पास आकर्षक शरीर तो था किंतु ऐसा शारीरिक सौन्दर्य न था जो उसे एकदम ऊंचे पायदान पर बैठा देता। इसी दौरान उसकी भेंट गीतकार-निर्माता निर्देशक नखशब से हो गई। नखशब ने उसे अपनी फिल्म 'नगमा' में इस चैलेंज के साथ पेश किया था कि वह सुखी सड़ी-सी नादिरा को एक भरपूर यौवना के रूप में पेश करेगा। और 'नगमा' जब रिलीज़ हुई तो लगा कि नखशब ने जो कुछ कहा था वह सच कर दिखाया है। पर्दे पर नादिरा ने जब यह 'नगमा' बड़ी मुश्किल से दिल की बेकरारी को करार छीन गया था। उस से नखशब भी बचा न रह सका। उसने नादिरा से शादी करके उसे एक इज्जत का स्थान तो दे दिया। लेकिन उसे टॉप की हीरोइन न बना सका।
नखशब ने 'नगमा' के बाद रफ्तार बनाई किंतु 'नगमा' की तरह वह भी बॉक्स ऑफिस पर सफल न हो सकी यही से दोनों पति पत्नी में मन मुटाव बढ़ता चला गया जो तलाक की सूरत में सामने आया।
नखशब एक बड़ा खूबसूरत और खानदानी आदमी था। सफेद लिबास में वह शहजादा लगता था। (शौकत हुसैन रिज्वी की फिल्म जीनत को मशहूर कव्वाली आहें न भरी शिकवे न किये कुछ भी न जवां से काम लिया इसी नखशब ने लिखी थी। नखशब से पूर्व नादिरा के जीवन में कई मर्द आ चुके थे। लेकिन उसे ऐसा कोई मर्द न मिला था जिसके बाजू उसके वजूद को संभाल सके। नखशब में नादिरा को एक ऐसा ही मर्द मिल गया था। लेकिन फिल्मों की नाकामी ने दोनों के विवाहित जीवन में जहर भर दिया था। यही कारण है कि नखशब और नादिरा के जब संबंध विच्छेद हुए नखशब की आंखो में आंसू थे। वह मानसिक और आर्थिक तौर पर बड़ा परेशान था। यह देख कर उसके एक दोस्त ने उससे कहा था।
मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था कि तुम्हारा सिक्का खोटा है।
तुम क्या जानो कि खरा सिक्का किसे कहते है और खोटा सिक्का क्या होता है? नखशब ने बड़े आत्मविश्वास से उत्तर दिया था। इसका कारण नादिरा ही थी। दरअसल नादिरा औरत नही, बंगाल का जादू है जो सिर चढ़ जाए तो उतरता ही नही। नखशब नादिरा से अलग होकर इतना परेशान हुआ कि कुछ अर्से बाद घबराकर पाकिस्तान भाग गया।
नखशब के जाने के पश्चात नादिरा के जीवन में कुछ और मर्द भी आए लेकिन उन मर्दो से कभी पति का प्यार नही मिल सका। जो लोग बाद में उसके जीवन में आएं वह उससे खेल कर अलग हो गए। इस दौरान उसने कुछ फिल्में बतौर हीरोइन की जिनमें 'आकाश' 'डाकू बाबू' आदि सभी असफल रही। जिसके लिए नादिरा ने यह सोचकर राजकपूर की फिल्म 'श्री 420' में बैम्प का रोल स्वीकार कर लिया कि लोग उनके अभिनय क्षमता को जान सके। लेकिन 'श्री 420' के बाद उस पर वैम्पिश भूमिकाओं की वर्षो होने लगी जिन्हें नादिरा ने यह सोच कर ठुकरा दिया कि मैं हीरोइन के रोल कर रही हूं अगर 'श्री 420' जैसे रोल लिये तो फिर हीरोइन के रोल हाथ से निकल जायेंगे। और इसी उधेड़बुन साल डेढ़ साल की मुद्दत आंख झपकते ही गुजर गई और जब आंख खुली तो बहुत देर हो चुकी थी। लोग उसे भूलने लगे थे। तब उसे नये सिरे से 'स्ट्रगल' करना पड़ा और उसके बाद उसे अधिकतर सी-ग्रेड की स्टंट फिल्मों में ही काम मिला। और दिलीप कुमार अशोक कुमार को हीरोइन जयराज, आजाद की हीरोइन रह गई। और धीरे-धीरे रंगीन फिल्मों की लहर ने सी-ग्रेड फिल्मों को उखाड़ कर फेंक दिया। और नादिरा एक बार फिर बेकार होकर रह गई, उसकी हालत बस यूं थी
न खुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधऱ के रहे
नादिरा को इसके बाद कैरेक्टर रोल में खोजने वाला निर्देशक बी.आर. इशारा है। जिसे अपनी पहली फिल्म (बतौर) इंसाफ का मंदिर में उसे कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में पेश किया। उसी की एक और फिल्म 'एक नजर' में पुन: लोगों ने नादिरा के छुपे टैलेंट्स को देखा और उसकी ओर आकर्षित हुए। और तभी 'राजा काका' में प्रेमनाथ और नादिरा के बड़े सैंसेशनल फोटो (चुम्बन करते हुए आदि) पत्र-पत्रिकाओं में छपे। वह दौर नई लहर (जिसे कुछ लोगों ने नंगी लहर का नाम दिया है) का था। इसलिए लोग उसी किस्म की कहानियां और पात्र लेकर नादिरा के पास पहुंचने लगे। और मजबूरन इस बार फिर नादिरा को ऐसे पात्रों से जान छुड़ानी पड़ी। 'एक नजर' आई तो लोगों ने नादिरा को कोठे वाली नायिका के रोल ऑफर करने शुरू कर दिया। नादिरा ने वे सारे रोल ठुकरा दिये। क्योंकि नादिरा ने सदा यह कोशिश है कि वह टाइप्ड हो कर न रह जाए। इस तरह 'एक नजर चेतना' और जूली के बीच भी एक काफी बड़े गैप है।
'जूली' में नादिरा को एक बार फिर एक जिंदा रोल मिला था जिस में नादिरा जान डालने में इसलिए सफल हो सकी कि फिल्म तीन महीने में पूरी हो गई थी। इससे नादिरा को बड़ी सहायता मिली। क्योंकि निरंतर शूटिंग के कारण फिल्म की कन्टिन्यूटी दिमाग में रहती थी। उसके हिसाब से डायरेक्टर को जो चाहिये था वह देने में बड़ी मदद मिली। अब देखना यह है नादिरा अपनी नई इमेज को कब तक बरकरार रखती है। नादिरा में अभिनय-कौशल की कमी नही है किंतु वह एक भावुक स्त्री है इसीलिए जीवन में सदा हारती रही है। इसके बावजूद वह किसी को दोष नही देती। दरअसल उसे जीवन में ऐसा कोई न मिला जो उसका मार्ग दर्शन करता। उसे नही कोई ऐसा शौहर मिला। और न कोई सच्चा दोस्त उसे जिंदगी में जितने लोग मिले वे गलत थे सच्चा और अच्छा दोस्त आज तक न मिला। लेकिन 'जूली' ने उस हारी हुई औरत और जीती हुई अभिनेत्री में जो आत्म विश्वास पैदा किया है उससे नादिरा से बड़ी आशा बंध गई थी।