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जन्मदिन विशेष: नंदा, जो देवानंद की प्रेमिका भी बनी, बहन भी और पत्नी भी

जन्मदिन विशेष: नंदा, जो देवानंद की प्रेमिका भी बनी, बहन भी और पत्नी भी
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नंदा का पूरा नाम नंदा कर्नाटकी था, उनके पिता विनायक दामोदर  मराठी फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा थे और ये कम ही लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर को हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में इंट्रोड्यूस कराने वाले नंदा के पिता ही थे।

विनायक दामोदर कर्नाटकी को लोग मास्टर विनायक के नाम से बेहतर जानते थे। वो मास्टर विनायक जो एक्टर, डायरेक्टर, प्रोडूसर होने के साथ-साथ एक ज़िम्मेदार पिता भी था। लेकिन सं 48 में, जब नंदा मात्र 8 साल की थीं; मास्टर विनायक गुज़र गए। नंदा को आठ साल की उम्र में क्या ही समझ होगी, पर घर के हालात जब मुश्किल होने शुरु हुए तो उन्होंने को एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में पहुँचा दिया गया और नंदा ने अपनी कैरियर की पहली फिल्म 'मंदिर' मिली और यहीं से नंदा की पहचान 'बेबी नंदा' के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गयी।

नंदा के नाम का सिक्का फ़िल्म्फेयर से और चमक उठा

नंदा सं 56 तक उन्होंने एक चाइल्ड आर्टिस्ट की तरह ही काम क्या लेकिन अब ख़ूबसूरत सी मुस्कान की मालकिन नंदा लीड रोल के लिए भी तैयार होने लगी थी। सं 59 में एल-वी प्रसाद की फिल्म छोटी बहन  में वो लीड हीरोइन थीं और इस फिल्म ने नंदा की ऐसी पहचान स्थापित की, ऐसा स्टार बनाया कि आने वाले समय में हर बड़े एक्टर ने नंदा के साथ काम करने की ठान ली।

अगले ही साल1960 में फिल्म 'आँचलके लिए उनको बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरुस्कार मिला। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

देव आनंद की सपना बन हर रिश्ता निभाया नंदा ने

publive-image

मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में 'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया' और 'अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं' आज तक टॉप रेट्रो सांग्स की लिस्ट में अपनी जगह बनाये रहते हैं। ये फिल्म भी बम्पर हिट रही।  फिर चार साल के बड़े अंतराल के बाद उन्होंने 1965 में देव साहब के साथ 'तीन देवियां' में नज़र आईं। इसमें वो देव की प्रेमिका बनी और उनका नाम फिल्म में भी नंदा ही रहा। इस फिल्म में मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में एक गीत 'ऐसे तो न देखो.....' और किशोर कुमार की आवाज़ में 'ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त....'  सदा बहार गीतों में हमेशा के लिए शामिल हो गए।publive-image

दोस्ती निभाने में भी माहिर रहीं नंदा

नंदा और वहीदा रेहमानजहाँ एक तरफ इंडस्टी में उन दिनों  समकालीन हीरोइन के बीच रस्सा-कशी ताने-बाजी और दिखावा चलता रहता था वहीं नंदा और वहीदा रहमान अपनी पहली फिल्म से ही ऐसी दोस्त बनीं कि उन्होंने कभी किसी अफवाह पर ध्यान ही न दिया। वहीदा अक्सर उनसे कहती रहती थीं कि वो शादी कर लें। शादी का तो यूँ हिसाब था कि नंदा के भाई ने भी न जाने कितने रिश्ते नंदा के सामने ला खड़े किए, जाने कितने ही एक्टर्स उनकी ख़ूबसूरती पर फ़िदा होते रहे लेकिन नंदा ने किसी का प्रस्ताव कबूल न किया।

'जब-जब फूल खिलें' की शूटिंग चल रही थी तब डायरेक्टर सूरज प्रकाश बताते हैं कि एक मराठी ल्यूटनेंट रैंक के फौजी ने उनको देखा और इस कदर फ़िदा हो गया कि उनके घर रिश्ता भेज दिया।

फिर एक वक़्त ऐसा भी आया जब मशहूर फ़िल्मकार मनमोहन देसाई को नंदा से इश्क़ हो गया। उस दौर में, जहाँ हाथ पकड़ ले कोई तो ख़बर बन जाती थी, मनमोहन देसाई और नंदा सप्ताहांत में रेगुलर मिला करते थे और सोमवार को ही अपने घर लौटते थे।  वहीदा रेहमान कहने, कहते रहने पर आख़िर नंदा शादी के लिए मान ही गयीं, उन्होंने मनमोहन देसाई से सगाई कर ली।

मगर, किस्मत शायद उन्हें सुहागन सा जोड़ा पहनाने के मूड में ही नहीं थी।

सं 92 में, जब नंदा ख़ुद पचास से ऊपर हो चुकी थीं, उन्होंने मनमोहन देसाई से सगाई की लेकिन शादी होने से पहले ही मनमोहन देसाई अपनी बालकनी से गिर गए और उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी। कुछ कहते हैं कि उनकी बालकनी की रेलिंग कमज़ोर थी, किसी का कहना था कि देसाई जी का बैलेंस नहीं बना लेकिन नंदा के दिल से पूछें तो वो यही कहेगा कि उनकी किस्मत, हाँ उनकी किस्मत ही थी जो इस मामले में उनका साथ देने को बिलकुल राज़ी नहीं थी।

नंदा और मनमोहन देसाई उस दिन उनका दिल टूटा ज़रूर था, पर दिल रुका 25 मार्च 2014 को, जब नंदा को दिल का दौरा पड़ा और वो ढेर सारी बेहतरीन फिल्मों में अपनी बेजोड़ अदाकारी के साथ अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती अपने फैंस के दिल में छोड़ इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो गयीं।

नंदाआज, 8 जनवरी उनके जन्मदिवस पर हम फिर उनकी कजरारी आँखें और भोली सी मुस्कान याद करते हैं।नंदा का पूरा नाम नंदा कर्नाटकी था, उनके पिता विनायक दामोदर  मराठी फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा थे और ये कम ही लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर को हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में इंट्रोड्यूस कराने वाले नंदा के पिता ही थे।

विनायक दामोदर कर्नाटकी को लोग मास्टर विनायक के नाम से बेहतर जानते थे। वो मास्टर विनायक जो एक्टर, डायरेक्टर, प्रोडूसर होने के साथ-साथ एक ज़िम्मेदार पिता भी था। लेकिन सं 48 में, जब नंदा मात्र 8 साल की थीं; मास्टर विनायक गुज़र गए। नंदा को आठ साल की उम्र में क्या ही समझ होगी, पर घर के हालात जब मुश्किल होने शुरु हुए तो उन्होंने को एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में पहुँचा दिया गया और नंदा ने अपनी कैरियर की पहली फिल्म 'मंदिर' मिली और यहीं से नंदा की पहचान 'बेबी नंदा' के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गयी।

नंदा के नाम का सिक्का फ़िल्म्फेयर से और चमक उठा

नंदा सं 56 तक उन्होंने एक चाइल्ड आर्टिस्ट की तरह ही काम क्या लेकिन अब ख़ूबसूरत सी मुस्कान की मालकिन नंदा लीड रोल के लिए भी तैयार होने लगी थी। सं 59 में एल-वी प्रसाद की फिल्म छोटी बहन  में वो लीड हीरोइन थीं और इस फिल्म ने नंदा की ऐसी पहचान स्थापित की, ऐसा स्टार बनाया कि आने वाले समय में हर बड़े एक्टर ने नंदा के साथ काम करने की ठान ली।

अगले ही साल1960 में फिल्म 'आँचलके लिए उनको बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरुस्कार मिला। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

देव आनंद की सपना बन हर रिश्ता निभाया नंदा ने

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मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में 'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया' और 'अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं' आज तक टॉप रेट्रो सांग्स की लिस्ट में अपनी जगह बनाये रहते हैं। ये फिल्म भी बम्पर हिट रही।  फिर चार साल के बड़े अंतराल के बाद उन्होंने 1965 में देव साहब के साथ 'तीन देवियां' में नज़र आईं। इसमें वो देव की प्रेमिका बनी और उनका नाम फिल्म में भी नंदा ही रहा। इस फिल्म में मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में एक गीत 'ऐसे तो न देखो.....' और किशोर कुमार की आवाज़ में 'ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त....'  सदा बहार गीतों में हमेशा के लिए शामिल हो गए।publive-image

दोस्ती निभाने में भी माहिर रहीं नंदा

नंदा और वहीदा रेहमानजहाँ एक तरफ इंडस्टी में उन दिनों  समकालीन हीरोइन के बीच रस्सा-कशी ताने-बाजी और दिखावा चलता रहता था वहीं नंदा और वहीदा रहमान अपनी पहली फिल्म से ही ऐसी दोस्त बनीं कि उन्होंने कभी किसी अफवाह पर ध्यान ही न दिया। वहीदा अक्सर उनसे कहती रहती थीं कि वो शादी कर लें। शादी का तो यूँ हिसाब था कि नंदा के भाई ने भी न जाने कितने रिश्ते नंदा के सामने ला खड़े किए, जाने कितने ही एक्टर्स उनकी ख़ूबसूरती पर फ़िदा होते रहे लेकिन नंदा ने किसी का प्रस्ताव कबूल न किया।

'जब-जब फूल खिलें' की शूटिंग चल रही थी तब डायरेक्टर सूरज प्रकाश बताते हैं कि एक मराठी ल्यूटनेंट रैंक के फौजी ने उनको देखा और इस कदर फ़िदा हो गया कि उनके घर रिश्ता भेज दिया।

फिर एक वक़्त ऐसा भी आया जब मशहूर फ़िल्मकार मनमोहन देसाई को नंदा से इश्क़ हो गया। उस दौर में, जहाँ हाथ पकड़ ले कोई तो ख़बर बन जाती थी, मनमोहन देसाई और नंदा सप्ताहांत में रेगुलर मिला करते थे और सोमवार को ही अपने घर लौटते थे।  वहीदा रेहमान कहने, कहते रहने पर आख़िर नंदा शादी के लिए मान ही गयीं, उन्होंने मनमोहन देसाई से सगाई कर ली।

मगर, किस्मत शायद उन्हें सुहागन सा जोड़ा पहनाने के मूड में ही नहीं थी।

सं 92 में, जब नंदा ख़ुद पचास से ऊपर हो चुकी थीं, उन्होंने मनमोहन देसाई से सगाई की लेकिन शादी होने से पहले ही मनमोहन देसाई अपनी बालकनी से गिर गए और उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी। कुछ कहते हैं कि उनकी बालकनी की रेलिंग कमज़ोर थी, किसी का कहना था कि देसाई जी का बैलेंस नहीं बना लेकिन नंदा के दिल से पूछें तो वो यही कहेगा कि उनकी किस्मत, हाँ उनकी किस्मत ही थी जो इस मामले में उनका साथ देने को बिलकुल राज़ी नहीं थी।

नंदा और मनमोहन देसाई उस दिन उनका दिल टूटा ज़रूर था, पर दिल रुका 25 मार्च 2014 को, जब नंदा को दिल का दौरा पड़ा और वो ढेर सारी बेहतरीन फिल्मों में अपनी बेजोड़ अदाकारी के साथ अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती अपने फैंस के दिल में छोड़ इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो गयीं।

नंदाआज, 8 जनवरी उनके जन्मदिवस पर हम फिर उनकी कजरारी आँखें और भोली सी मुस्कान याद करते हैं।

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