ऐसे हुआ करता था हमारा बचपन जब... -अली पीटर जाॅन By Mayapuri Desk 22 Jan 2021 | एडिट 22 Jan 2021 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर ऐसे ही नहीं मैं मनोज कुमार के गुण गाता आ रहा हूँ। कुछ तो बात होगी उनमें जो एक दस साल के बच्चे (मैं) को आकर्षित कर सकता था। और ऐसे ही नहीं कि वो दस साल का बच्चा आज भी उनकी बातें करते रहता हो और वहीं धुन में उनका गीत गाते रहता हो। आज मनोज कुमार 85 के है, और तबीयत उम्र के साथ नासाज रहती है, लेकिन आज भी उनकी सोच उतनी ही जवान है जितनी 50 साल पहले होती थी। जरा नजर और सोच दोनों इन पंक्तियों पर डालिये और ऐसा कुछ आप जानेगें जो आपने पहले कभी सोचा नहीं था ’कभी हम भी... बहुत... अमीर हुआ करते थे’ ’हमारे भी जहाज... चला करते थे।’ ’हवा में... भी।’ ’पानी में... भी।’ ’दो दुर्घटनाएं हुई।’ ’सब कुछ... खत्म हो गया।’ ’पहली दुर्घटना’ जब क्लास में... हवाई जहाज उड़ाया। टीचर के सिर से... टकराया। स्कूल से... निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई। और जहाज बनाना और... उडाना सब छूट गया। ’दूसरी दुर्घटना’ बारिश के मौसम में, मां ने... अठन्नी दी। चाय के लिए... दूध लाना था। कोई मेहमान आया था। हमने अठन्नी... गली की नाली में तैरते... अपने जहाज में... बिठा दी। तैरते जहाज के साथ... हम शान से... चल रहे थे। ठसक के साथ। खुशी खुशी। अचानक... तेज बहाव आया। और... जहाज... डूब गया। साथ में... अठन्नी भी डूब गई। ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चले गये। फिर... जमकर... ठुकाई हुई। घंटे भर... मुर्गा बनाया गया। और हमारा... पानी में जहाज तैराना भी... बंद हो गया। आज जब... प्लेन और क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , तो... उन दिनों की याद दिलाती हैं। वो भी क्या जमाना था! और... आज के जमाने में... मेरी बेटी ने... पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो... मां बोली कोई बात नहीं! पापा... दूसरा दिला देंगे। हमें अठन्नी पर... मिली सजा याद आ गई। फिर भी आलम यह है कि... आज भी... हमारे सर... मां-बाप के लिए झुकते हैं। और हमारे बच्चे... यार पापा ! यार मम्मी ! कहकर... बात करते हैं। हम प्रगतिशील से... प्रगतिवान... हो गये हैं। ‘कोई लौटा दे... मेरे बीते हुए दिन’ ’मैं तो पत्थर हूँ। मेरे माता-पिता शिल्पकार है..’ ’मेरी हर तारीफ के वो ही असली हकदार हैं।’ आज बच्चों को शोर मचाने दो कल जब ये बड़े हो जाएँगे खामोश जिंदगी बिताएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ गेंदों से तोड़ने दो शीशें कल जब ये बड़े हो जाएँगे दिल तोड़ेंगे या खुद टूट जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ बोलने दो बेहिसाब इन्हें कल जब ये बड़े हो जाएँगे इनके भी होंठ सिल जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ दोस्तों संग छुट्टियों मनाने दो कल जब ये बड़े हो जाएँगे दोस्ती-छुट्टी को तरस जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ भरने दो इन्हें सपनों की उड़ान कल जब ये बड़े हो जाएँगे पर इनके भी कट जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ बनाने दो इन्हें कागज की कश्ती कल जब ये बड़े हो जाएँगे ऑफिस के कागजों में खो जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ खाने दो जो दिल चाहे इनका कल जब ये बड़े हो जाएँगे हर दाने की कैलोरी गिनाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ रहने दो आज मासूम इन्हें कल जब ये बड़े हो जाएँगे ये भी “समझदार” हो जाएँगे ’हम-तुम जैसे बन जाएँगे’ हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article