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अभी तक ढेर सारे कलाकार थियेटर से निकल कर फिल्मों या टीवी से जुड़ कर व्यस्त हुए तो उनमें से ज्यादातर ने फिर कभी थियेटर की तरफ मुड़कर नहीं देखा, लेकिन बहुत सारे अदाकार ऐसे भी हैं जिन्होंने टीवी और फिल्म दोनों जगह लोकप्रियता हासिल की, लेकिन थियेटर को कभी नजरअंदाज नहीं किया। उनमें सर्वप्रथम अंजन श्रीवास्तव का नाम लिया जा सकता है। इप्टा के प्रति समर्पित इस कलाकार ने एक वक्त फिल्मों और टीवी पर अपनी भारी व्यस्तता के बाद भी थियेटर नहीं छोड़ा। इसे उनका थियेटर प्रेम ही कहा जायेगा कि प्रसिद्ध नाटक संस्था इप्टा जहां पिच्चहतर वर्ष पुरानी हो चुकी है, वहीं अंजन को इस संस्था से जुड़े पचास वर्ष हो गये हैं। इन दिनों वे बतौर थियेटर कर्मी अपनी गोल्डन जुबली अपने विभिन्न नये पुराने नाटकों का मंचन कर मना रहे हैं। इस बार उनके साथ उनकी दोनों बेटियों नुपूर और रंजना को भी इप्टा से जुड़ते हुए, उन्हें मंच के आगे पीछे काम करते देखा जा सकता है।
बैंक में नौकरी करते हुए अंजन ने 1968 में नाटक करने शुरू किये थे। उस दौरान वे महज बीस वर्ष के थे। कुछ ही दिनों बाद वे रंगमंच में ऐसे रमते चले गये जैसे वे थियेटर के लिए ही बने हो। अभिनय के सारे रंग उन्हें इसी रंगमंच पर देखने को मिले और इसी मंच ने उन्हें एक गुणवान और समर्थ अभिनेता बनाया। उन्होंने कदापि नहीं सोचा था, कि वे इप्टा के साथ कदम से कदम मिलाते हुए पचास वर्षों का सफर पूरा कर लेंगे। बकौल अजंन जी मैंने इप्टा के साथ चलते चलते जिन्दगी के अनेक उतार चढ़ाव देखे, लेकिन इप्टा का मंच मुझे मेरी सारी तकलीफों से आजाद कर मुझ में एक सुकून सा भर देता था, लिहाजा बैंक की नौकरी से शाम को निजात पाते ही मेरे कदम घर नहीं बल्कि मुझे थियेटर के तरफ ले जाते थे। वहां मैं किसी नाटक की रिहर्सल करते हुए दीन दुनिया से अलग हो जाता था। उस वक्त मेरे सामने एक ही बात होती थी कि आगे किरदार के लिये कैसा अभिनय करना होगा।
नाटकों की दुनिया में इप्टा का नाम सर्वोपरि है। इस संस्था में अंजन जी का प्रवेश 1978 में हुआ था। उसके बाद उन्हें वहां एस एम सथ्यु, रमेश तलवार, बासू भट्टाचार्य, वामन , रमन कुमार तथा जयदेव हटंगडी जैसे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। अंजन कहते हैं इप्टा में मुझे बकरी, आखिरी शमा, कशमकश, मोटेराम का सत्याग्रह, ताजमहल का टेंडर, दरिंदें द विलैंस तथा एक और द्रौणाचार्य जैसे नामचीन नाटकों में काम करने का अवसर मिला। इनमें बकरी आज भी मेरे दिल के बहुत करीब नाटक है।
पृथ्वी थियेटर के शुरूआती नाटक थे बकरी और द जू स्टोरी। बकरी में जहां मैं मुख्य किरदार निभा रहा था वहीं द जू स्टोरी में ओमपुरी और नसीरूद्दीन शाह काम कर रहे थे। बकरी की सबसे खास बात ये थी कि उसके निर्देशक हमेशा उसमें हर बार कोई ताजी घटना जोड़ देते थे लिहाजा ये नाटक पूरी तरह से सामयिक बन गया था। बकरी के द्धारा मैंने इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, राजीव गांधी, वीपी सिंह तथा नरसिंम्हा राव जैसे नेताओं के किरदारों को मंचित किया। हाल ही में इप्टा के पिच्चहतर वें वर्ष पर बकरी का मंचन किया जा रहा है जिसके लिए मैंने पहले से अपनी सफेद दाढी बढ़ा ली है, इससे आप साफ तौर पर समझ सकते हैं कि इस बार आप मुझे किस नेता के गैटअप में देखने वाले हैं।
इप्टा जैसी सस्ंथा को लेकर अंजन जी का कहना है कि इस नाट्य संस्था की नीव उन्हीं हाथों ने रखी थी जो हमेषा इसके लिये समर्पित बने रहे। कैफी आज़मी, ए के हंगल, आर एम सिंह तथा एस एम सथ्यु के हाथों जन्म लेने वाली इस सस्ंथा ने इस बीच कितने ही उतार चढ़ाव देखें लेकिन अपने नाटकों में कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया, इसीलिए इसे नाटकों का आइना कहा जाता है। मुझे गर्व है कि मैं इतने साथ इस संस्था के साये में बिता चुका हूं और आगे भी ये सफर यूं हीं जारी रहेगा।