सुरेश ओबरॉय ने फिल्म जगत में अपने तरीके से अपनी जगह बनायी है उनसे हमारी मुलाकात तब हुई थी और जब ‘एक बार फिर’ प्रदर्शित भी नहीं हुई थी। हम आपस में मिलते रहे। एक सैट से दूसरे सैट पर। एक स्टूडियों से दूसरे स्टूडियो में। सुरेश की फिल्म ‘एक बार फिर’ प्रदर्शित हुई और फिल्म-प्रेमियों को एक नये एक्टर का परिचय मिला।
-अरूण कुमार शास्त्री
'पहले मुझे लोग कैरेक्टर रोल या विलेन का रोल ऑफर करते थे' सुरेश ओबरॉय
यह परिचय अगर सही मायने में कहा जाये तो उन दर्शक तक ही सीमित था जो छोटे बजट की आर्ट फिल्म जैसे मुहावरों को पसंद करते हैं यह भी कोई छोटी बात नहीं। नसीरूद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और कलभूषण खरबंदा जैसे आर्टिस्ट आज दर्शकों के समाने इन्हीं फिल्मों के रास्ते आये हैं। सुरेश ओबरॉय के लिए भी यही रास्ता निकला। लेकिन इसी बीच प्रकाश मेहरा की ‘लावारिस’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म ने सुरेश ओबरॉय को फिल्म दर्शकों के उस विशाल समूह के निकट लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ आने का सपना हर एक्टर पालता है। अगर यह कहें तो अनुचित नहीं होगा कि ‘लावारिस’ में अमिताभ बच्चन, जीनत, अमजद और रणजीत जैसे कलाकारों के बीच इस नये अभिनेता ने यह अहसास नहीं होने दिया कि वह नया नहीं है।
सुरेश ओवरॉय से पिछले दिनों हमारी मुलाकात जगदीश सिदाना निदेर्शित नयी फिल्म ‘राम’ के सैट पर ज्योति स्टूडियो में हुई। इस फिल्म में वे हीरों की भूमिका निभा रहे हैं। शूटिंग के काम में ही बातचीत के अनौपचारिक लहजे में कहा-‘लावारिस’ ने मझे हीरो बना दिया। पहले मुझे लोग कैरेक्टर रोल या विलेन का रोल ऑफर करते थे। लेकिन अब लोगों ने यह भी सोचना शुरू कर दिया है कि मैं हीरो की तरह भी जंच सकता हूँ।
सही बात तो यह है कि ‘एक बार फिर’ अगर किसी बड़े बैनर की फिल्म होती तो इसे और भी अधिक सफलता मिलती और इसका फायदा मुझे और जल्दी मिल गया होता। लेकिन जैसे भी हुआ और जिस तरह से भी हुआ भाग्य ने मेरा साथ दिया हैं।
सुरेश ओबरॉय ने इस नई सफलता को कैसे आत्मसात किया है। यानी अपने कैरियर को लेकर जो उन्होंने नई नीतियाँ निर्धारित की है। उसका स्वरूप क्या है? सुरेश ओबरॉय का कहना है-पहली बात तो यह है कि मुझे अपने काम के प्रति इतनी लगन है कि इसका अंदाजा दूसरा नहीं लगा सकता। मैं अपने कैरेक्टर में खो जाता हूँ। बल्कि मेरे साथ तो यहाँ तक होता है कि जिस कैरेक्टर की भूमिका मैं निभा रहा होता हूँ वह मेरे साथ-साथ लगा होता है। सपने में भी मुझे अपना वही कैरेक्टर दिखायी पड़ता है। यांत्रिक ढंग से काम करना मैंने उचित नहीं समझा है।
दीपक को जिस तरह से मैं बर्बाद करता हूँ, राखी उसी तरह से मुझे तबाह करती है
दसरी बात यह है कि एक्टर के रूप में मैं अपनी ड्यूटी यह भी समझता हूँ कि किसी प्रोड्यूसर को मुझसे कोई शिकायत नहीं हो। सही वक्त पर सैंट पर आना और अपना पूरा काम करके ही सैट छोड़ना मेरे लिए एक धर्म है। मेरी जरा सी लापरवाही से प्रोड्यूसर का लाखों रूपये का नुकसान हो सकता हैं और प्रोड्यूसर हमारे सामने में भले ही कुछ न बोले लेकिन मेरी पीठ पीछे वह हर किसी से मेरी बुराई करेगा मैंने तय किया है कि मेरे बारे में लोगों की धारणा गलत नहीं हो।
सुरेश ओबराॅय से मैं उनकी आगामी फिल्मों के बारे में जानना चाहता हूँ। वे जवाब में कहते हैं-नवोदित निदेशक अनिल की फिल्म ‘श्रद्धाज॑लि’ में मैंने विलेत की भूमिका निभायी है। दीपक पराशर राखी के पति बनते हैं। दीपक को जिस तरह से मैं बर्बाद करता हूँ, राखी उसी तरह से मुझे तबाह करती है। इस फिल्म में राखी जैसी आर्टिस्ट के साथ काम करना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति कही जायेगी। साथ ही इस फिल्म में मेरे ‘मैनेरिज्म’ का नया अंदाज लोगों को पसंद आना चाहिये।
मेरी दूसरी महत्त्वपूर्ण फिल्म है ‘तुम्हारे बिना’ यह अंग्रेजी की चर्चित फिल्म क्रैमर वर्सेज क्रैमर पर आधारित है। पति-पत्नी के मन-मूटाव को एक छोटा बच्चा जो उनकी अपनी संतान है बड़ी खूबसूरती से दूर करता है। सत्येन बोस ने बड़ी खूबसूरती से इस फिल्म को निर्देशित किया है
मेरी तीसरी महत्त्वपूर्ण फिल्म हैं ‘मजदूर’ जिसमें मुझे दिलीप कुमार जैसे, बड़े आर्टिस्ट के साथ काम करने का मौका मिला है।
हिन्दुस्तान में हर एक्टर की यह ख्वाइश होती है कि एक बार वह दिलीप कुमार के साथ काम करे
हिन्दुस्तान में हर एक्टर की यह ख्वाइश होती है कि एक बार वह दिलीप कुमार के साथ काम करे, मेरी भी यही ख्वाइश थी और भाग्य ने इसे पूरी होने में मेरा साथ दिया है और अभी जिस फिल्म की शूटिंग मैं कर रहा हूँ, उसमें भी मेरी भूमिका जबर्दस्त है। जगदीश सिदाना निर्देशित राम की स्क्रिप्ट मुझे पसंद है) जगदीश जी की फिल्म पाँचवी की कई लोगों ने मुझसे तारीफ की है।
सुरेश ओबरॉय ने अपनी जिन आगामी महत्त्वपूर्ण फिल्मों का जिक्र किया है उनमें उनकी भूमिकाओं का रंग अलग-अलग है एक ने तो दूसरी में हीरों, तीसरी में कैरेक्टर रोल है तो चैथी फिल्म में हीरो. इसका क्या मतलब है? यहाँ फिल्म के दूसरे एक्टर किसी एक हीं इमेज से जिदगी पर चिपके रहते हैं। सरेश ओवरॉय की प्रतिक्रिया है-- यहाँ हर एक्टर फैशन में यह बात कहता है कि वह किसी इमेज से नहीं बनना चाहता लेकिन वह हमेशा ही- एक इमेज में कैद रहना भी अपने लिए अच्छा समझता है. एक अच्छे एक्टर के रूप में लोग मेरी जरूरत महसूर यही मेरे फिल्म-कैरियर का उद्देश्य हैं।
सुरेश ओबरॉय ने अपनी फिल्म जीवन की जो तस्वीर पेश की उसमें कहीं कोई बनावट नहीं। और सच तो यह है कि सुरेश ओबरॉय से मिलने के बाद यह भी नहीं लगता कि जैसे किसी फिल्म एक्टर से आप मिल रहे हैं। फिल्मों के अलावे सुरेश को जब भी मौका मिलता है, वे घर में अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ व्यतीत करते हैं। उस वक्त आपको उनमें जो घरेलूपन दिखायी पड़ेगा, वह कम ही फिल्म के कलाकारों में दिखायी पड़ता है। फिलहाल इतना ही