कमर्शल फिल्मों के अलावा कुछ अलग तरह की संदेशात्मक फिल्में करने के लिये मशहूर अक्षय कुमार इस बार देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान से प्रेरित हो फिल्म ‘ टॉयलेट- एक प्रेम कथा’ में नजर आने वाले हैं। फिल्म के अलावा कुछ अन्य मुद्दों पर हुई अक्षय से एक बातचीत।
अक्षय कहते हैं कि इस फिल्म को लेकर मेरा मानना है कि ये लोगों की सोच को दर्शाती है कि आज हमारे घर में एक टॉयलेट का होना कितना जरूरी है। आज भी हमारे देश के चव्वन प्रतिशत लोगों के घर में टॉयलेट नहीं है। इसका असर सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ता है। हम अपने गांव देहात में देखते हैं कि महिलाओं को अपने घरों से सुबह शाम एक किलोमीटर दूर तक शौच के लिये जाना पड़ता है और इस बात की आदत डालनी पड़ती है कि बीच में उन्हें शौच की हाजत न हो। सबसे बड़ी बात कि आज आधुनिक हो चले समाज में कुछ अपराधी किस्म के लोग उन महिलाओं के बाहर शौच जाने का फायदा उठाते हुये उनकी फोटो या वीडियो बना लेते हैं। इसके अलावा सबसे ज्यादा रेप की घटनायें इसी दौरान होती हैं। आज भी कितने ही गांव खेड़ों में एक तरफ महिलाओं को एक फुट के घूघंट में रहना है लेकिन शौच के लिये उन्हें बाहर भेजा जाता है। हालांकि काफी सुधार भी हुआ है, दस बारह प्रतिशत घरों में टॉयलेट बने हैं।
अक्षय कुमार का कहना है कि मेरा ये फिल्म बनाने को एक मकसद रहा कि इसे देख लोगों में जागरूकता फैले तथा मीडिया का भी फर्ज बनता है कि वे भी अपने अपने पब्लिकेशन के द्धारा इस बात को लोगों तक पहुंचायें, क्योंकि मर्द तो कहीं भी खड़े हो जाते हैं हालांकि वे भी इस तरह गंद फैलाने के जिम्मेदार हैं, लेकिन ओरतों का क्या। दूसरे आपने देखा होगा कि गांव खेड़ों में सरकार ने जिन लोगों को टॉयलेट बना कर दिये हैं उनमें से कितनों ने वहां दुकाने खोल ली या उसे किराये पर चढ़ा दिया या उस जगह को किसी और काम में ले लिया। उन लोगों को इस बारे में जागरूक करने की जरूरत है।
अक्षय कहते हैं कि जहां तक मैं अपनी बात करूं तो इससे पहले मैं भी औरां की तरह ही था, मुझे भी इन सारी बातों का एहसास तक नहीं था, लेकिन इस फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद मुझे इन सारी बातों के बारे में पता चला।
बकौल अक्षय कि अगर इस फिल्म की बात की जाये तो पिछले चार पांच साल से इसकी स्क्रिप्ट यहां वहां घूम रही थी लेकिन किसी ने इस विषय को छूने की कोशिश नहीं की। आखिर घूम फिरकर जब ये मेरे पास आई तो मुझे ये बहुत गहरी संवेदनाशील कहानी लगी।
इस फिल्म को दूर दूर तक पहुंचाने वाली बात पर अक्षय का कहना है कि हमारे प्रोड्यूसर्स ने दूरदर्शन से बात की है, आगे मिनीस्ट्री से भी बात की जायेगी कि वे दूर दराज तक इस फिल्म को लोगों तक पंहुचाने में किस हद तक मदद कर पायेगें।
अक्षय इस बात के लिये दर्शकों पहले ही सचेत करते हुये कहते हैं कि दर्शक इसे फिल्म ही समझे, डाकूमेंट्री नहीं। क्योंकि फिल्म में शुरू से अंत तक कॉमेडी है बस बीच में थोड़े बहुत मूमेनटस हैं जिनकी वजह से कहानी सीरियस हो जाती है और इसी बीच आहिस्ता से एक मैसेज भी सरका दिया गया है। जिसे लोग डेफिनेटली सीरियसली लेंगे, वरना अन्य फिल्मों की तरह ये भी फुल मनोरजंक फिल्म है।
स्वच्छता को लेकर अक्षय का कहना है कि हमें सरकार के भरोसे न रहते हुये इसके लिये स्वंय आगे आना होगा। जैसे हम अपने घर में कूड़ा कचरा खुद उठाकर कचरापेटी में डालते हैं बिलकुल वैसे ही अगर बाहर हमें कूड़ा कचरा पड़ा दिखाई देता है तो हम आगे बढ़कर उसे उठाकर पास की कचरा पेटी में डालना शुरू कर दे तो आपको ये काम करते हुये देखने वाला भी आप को फॉलों करते हुये ऐसा करेगा। इसके बाद हमें किसी सरकारी हमले की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। ये एक विचार है अगर इसे ठीक लिया जाये तो काफी कुछ हो सकता है दूसरे मुझे लगता है समाज में किसी भी काम को लेकर जागरूकता इसी प्रकार फैलाई जाती है।
अक्षय कुमार अंत में कहते हैं कि शौच वगैरह की प्रॉब्लम काफी बड़ी है। जंहा तक फिल्म की बात की जाये तो सवा दो घंटे में मैं जो दिखा सकता था वो मैने पूरी ईमानदारी से दिखाने की कोशिश की है।
अक्षय बताते हैं कि कुछ लोगों का ख्याल है कि ये किसी फिल्म का रीमेक है तो मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि ये पूरी तरह गलत अफवाह है। दरअसल ये अलग अलग राज्यों की आठ दस महिलाओं के साथ घटी घटनाओं से प्रेरित, सच्ची कहानी है। वैसे भी अगर आप गूगल पर जाकर सर्च करोगे तो आपको ऐसी ढेर सारी कहानियां मिल जायेगीं।