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इस समय जब पूरा देश चुनावमय होने के मूड में है। सबकी नजर 2019 के लोकसभा चुनाव पर है और सोचा जा रहा है कि केन्द्र की सबल सरकार का सामना करने के लिए कौन व्यक्ति है जो देश के तमाम धुरंधर नेताओं को एक प्लेटफार्म पर ला सकता है? एक ख्याल मन में आता है कि क्या वह व्यक्ति अमिताभ बच्चन नहीं हो सकते! शायद स्वयं अमिताभ बच्चन के मन में यह सवाल कभी नहीं उठा होगा। इंडस्ट्री के लोग भी इस विषय पर विचार नहीं करते कि 283 बहुत बहुमत देने वाली आंकड़े की सरकार में सैकड़ों सांसद अमिताभ के मित्र हैं। अगर मान लिया जाये कि वह रूचि लें, तो निश्चय ही केन्द्रीय राजनीति की पृष्ठभूमि पर वह ‘किंग-मेकर’ की जगह ले सकते हैं। आइये देखें, देश के कितने धुरंधर नेता उनके मित्र हैं। सत्ता और विपक्ष की किस पार्टी में उनके चाहने वाले और मित्र नेता नहीं हैं? बात करते हैं सत्ता पक्ष की। दिल्ली और मुंबई की सरकारों के आधे मंत्री जब मुंबई में घूमने आते हैं, सब अमिताभ के बंगले ‘जलसा’ के चक्कर लगाने की इच्छा रखते हैं। भले ही ‘बच्चन’ को दुनिया सरकारी योजनाओं का विज्ञापन करते देखती हो, वह प्रधानमंत्री के अलावा किसी को भाव नहीं देते। विपक्ष की पार्टियों में तो हूज-वाला मामला है। कांग्रेस और कांग्रेसियों से बिग बी का पुराना -रिश्ता है। बस, रिश्ते पर पड़ी धूल की सलवटों को झटका देकर हटा देना है। कभी वह नेहरू परिवार के लाडले थे और कांग्रेस का टिकट पाकर इलाहाबाद से चुनाव जीते थे और फिर, राजनीति को अलविदा कह दिया था...। आज, फिर से देवर-भाभी के मन मुटाव को हटाने का प्रयास भर करना है। सपा सुप्रीमो-मुलायम सिंह/अखिलेश यादव, बरास्ता-अमर सिंह से उनकी दोस्ती जग जाहिर है। जया बच्चन आज भी इसी पार्टी से सांसद हैं। जयाप्रदा उनकी हीरोइन रह चुकी हैं। बसपा-सुप्रीमो-मायावती, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और कोलकाता के सांसद बाबुल सुप्रियो, मूनमून सेन उनके ऐसे मित्र नाम हैं जो हफ्ते में एक बार बिग बी से टेलीफोन पर बंगला में बतियाते हैं। दक्षिण के सुपर-स्टार रजनीकांत, कमल हासन, मोहन लाल, चिरंजीवी जैसे खुद को बिग बी का भाई मानते हैं। रजनी मुंबई आते हैं तो पूछते हैं- आप बताइये? ऐसी है दक्षिण में उनकी पकड़। ये सभी दिशा-बदलने की ताकत रखने वाले लोग हैं। भोजपुरी इंडस्ट्री से सांसद बने मनोज तिवारी, सांसद होते होते रह गये रवि किशन, नगमा (दोनों अगला चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं) इनकी पूजा करते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी, मेनका गांधी भले सरकार में हों बच्चन बुलायें और वो ना आएं, जैसी स्थिति है। तात्पर्य यह था कि अमिताभ वह स्त्रोत हैं जो कहां नहीं हैं? अगर वह आहवान करें और निमंत्रित करें तो नेता अभिनेता सभी उनके बुलावे पर एक जगह आने के लिए मना नहीं करेंगे। शेष काम ‘नेतागिरी’ का जो है, उसके लिए धुरंधरों की कमी नहीं है। वे सब अपना ताल ठोकेंगे। हां, मंच बच्चन दे सकते हैं। वह किंग-मेकर बन सकते हैं। यह एक नजरिया है ‘मायापुरी’ का...और, बस!