हर फूल गुलाब क्यों नहीं बनता By Mayapuri Desk 26 Feb 2021 | एडिट 26 Feb 2021 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर एक हीरे को और एक पत्थर को एक साथ पास रखा. हर रोज़ सुबह उठ कर देखा तो वो वैसे के वैसे ही पड़े थे. क्यों? क्यों पत्थर हीरा नहीं बना? बनना चाहता था क्या वो? या वो पत्थर रह के ही खुश था? उसे हीरा बनने कि ख्वाहिश नहीं थी? - आरती मिश्रा गुलाब का फूल जिसे पूरी दुनिया में प्यार कि निशानी माना जाता है. क्यों नहीं दुनिया का हर फूल उसके जैसा बनना चाहता? कई फूल तो यूँ ही खिलते हैं और मुरझा जाते हैं. क्यों नहीं वो खुद को बदलना चाहते? तो सवाल यह उठता है कि क्यों नहीं हर पत्थर हीरा और हर फूल गुलाब बनना नहीं चाहता है? क्यों नहीं पेड़ कि हर पत्ती दुसरे से इतनी अलग हो के भी शांत है? क्यों नहीं हर नदी गंगा बनना चाहती? क्यों नहीं हर पत्थर शिवलिंग बनना चाहता? क्यूंकि सब खुद में खुश हैं. कुदरत की हर चीज़ अपने आप में संतुष्ट है. इसलिए खुश है. हम खुश क्यों नहीं है? ज़वाब आसान है. क्यूंकि हम एक दुसरे के जैसा बनना चाहते हैं. मुझे वही खूबी चाहिए जो मेरे साथ वाले में है, मुझे उस आदमी जैसा अमीर बनना है, मुझे उस लड़की जैसी ख़ूबसूरती चाहिए, मुझे उस लड़के जैसी गाड़ी चाहिए, मुझे उसी कि तरह बनना है व्गेरहा, व्गेरहा, व्गेरहा. बच्चे जब स्कूल में होते हैं तब माँ बाप उनकी तुलना दुसरे बच्चों से करते हैं. जब वो बड़े होते हैं तब माँ बाप उनकी दुसरे बच्चों से तुलना करते हैं. जब उनकी शादी हो जाती है तब वो अपने हमसफ़र कि तुलना किसी और से करने लग जाते हैं. जब वो खुद माँ बाप बन जाते हैं तब वो अपने बच्चे कि तुलना औरों से करने लग जाते हैं. और यह सिलसिला चलता रहता है. बस यह तुलना ही सब को खा जाती है. अब अगर जंगल का रजा अपनी तुलना चील से करेगा तो वो तो ऐसे ही मर जाएगा. जब कि कुदरत कि सचाई तो यही है कि जो शेर कर सकता है वो एक बाज़ नहीं कर सकता और जो एक बाज़ कर सकता है वो एक शेर नहीं कर सकता मगर दोनों अपने अपने इलाक़े में राज़ करते हैं. ज़िन्दगी भी एक “रेस” है जिसमें हमारा मुकाबला खुद से है आज कि आरती का मुकाबला बीते हुए कल कि आरती से है. इन दोनों कि तुलना कि जा सकती है. यही जायज़ है. आज कि आरती कल से बेहतर ही होनी चाहिए. मगर हम यह ग़लती करते हैं कि ज़िन्दगी कि इस “रेस” में हम खुद के बजाये दूसरों से मुकाबला करने लगते हैं. बताओ फिर जीतेंगे कैसे? जब ‘रेस’ ही ग़लत चुनी है हमने. तो अगर यह जानना हो कि हमारा मुकाबला किस से है तो बस एक काम करना है कि आईने के सामने खड़े होना है और आईने के अंदर जो दिखाई दे उसी से तुम्हारी जग है बस. अनु- छवि शर्मा हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article