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अमजद खान
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अमजद में भी ‘गंगा जमुना’ के दिलीप कुमार की गहरी छाप नजर आती हैं. और एक यही बात थोड़ी-सी अमजद के हक में अच्छी नहीं गई। जो मुझे भी बहुत खटक रही थी. अमजद से समय लेकर जब मैं आर. के. स्टूडियो पहुंचा तो वह ‘परवरिश’ के लिए स्मगलिंग के दृश्यों की शूटिंग कर रहा था। लंच ब्रेक होने पर उसने सेट से बाहर कुर्तियां डलवाई और आकर बैठ गया।
मैंने! अपने इन्टरव्यू को शुरूआत ‘शोले’ से ही करनी उचित समझकर अमजद से कहा। “आपको ‘शोले’ में जो सफलता मिली है उसका श्रेय आप किस को देते हैं? खुद को, रमेश सिप्पी को या दिलीप कुमार को जिसकी आपके अभिनय पर गहरी छाप नजर आती है?’
मैं उसका सारा क्रेडिट रमेश सिप्पी को ही देता हूं। वह जो कुछ भी है वह सब रमेश सिप्पी की मेहनत का फल है। अमजद खान ने बिना झिझक कहा। रही बात दिलीप साहब की छाप की तो फिल्म में डाकू का रोल वैसी ही डिमांड करता था। और फिल्म की डिमांड को पूरी करना जरूरी था।
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‘सैंसर’ पाप्त करेगी या नहीं यह हमारा सिरदर्द नहीं है। हम तो कलाकार हैं हमारा काम केवल निर्देशक के निर्देश के अनुसार काम करना है. क्या पास होगा क्या नहीं होगा यह निर्माता जानें या निर्देशक! अमजद खान ने सीधा-सा जवाब दिया।
क्योंकि कलाकार का अपने आपको इमेज के दायरे में कैद करना ऐसा है जैसे कि अपने हाथों अपनी मौत का सामान करना, दरअसल मेरे खयाल में ख्याल को फोम की तरह होना चाहिए जो हर सांचे में ढ़ल सके। मैं इसीलिए विभिन्न प्रकार की भूमिका निभा रहा हूं। परवरिश, सुहाग आदि ऐसी ही फिल्में हैं, अमजद खान ने बड़े सुलझे हुए ढंग से उत्तर देते हुए कहा।
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आज जितनी फिल्में आपके हाथ में हैं। उनमें आपने बताया कि आप विभिन्न प्रकार के रोल कर रहे हैं। क्या आप बता सकते हैं कि उनमें किस फिल्म में आप का रोल सबसे अच्छा हैं कि जिससे लोग गब्बर सिंह को भूल जायेंगे?” मैंने पूछा।
“दरअसल फिल्म में रोल स्वीकार करते समय कई बातें होती हैं कुछ रोल मुहब्बत में जबरदस्ती करने पड़ते हैं। कुछ को स्वीकारते समय कामर्शियल एंगल होता है. और कुछ रोल अपने आप में इतने सशक्त होते हैं कि उन्हें करने के लिए मन से आवाज आती है।”
‘मैं आपसे ऐसे ही रोल के बावत पूछ रहा हूं’। मैंने अपना प्रश्न स्पष्ट करते हुए कहा।
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क्षमा करना हमारे यहां मेकर्स में इतना साहस नहीं है कि वह किसी कलाकार को किसी नये रूप में पेश कर सकें। यहां तो यह देखा जाता है कि फिल्म किसके नाम पर बिकती है। फिर फिल्म में चाहे उस कलाकार की जरूरत हो या नहीं उसे ठुंस दिया जाता है। उसमें अगर इतने नयेपन की समझ नहीं है। आज केस्टो मुकर्जी को वे लोग शराबी के अलावा किसी अन्य रोल में पेश नहीं कर सके। ऐसे में किसी विशेष रोल को निभाने की चाह करना निरर्थक ही लगता है।” अमजद खान ने बड़ी बेवाकी से उत्तर देते हुए कहा।
‘सेन्सर की नई पॉलिसी के बारे में आपका अपना क्या विचार है?’
‘मेरे ख्याल से यह अच्छा ही हुआ क्योंक्रि हम जरूरत से ज्यादा एक्शन के चक्कर में पड़ गए थे। लेकिन मैं इसमें फिल्मकारों का भी कुसूर नहीं मानता क्योंकि दर्शक जो मांगते हैं। वह वही कुछ उन्हें देते हैं? अममद खान ने दोनों पक्षों को खुश करने’ वाला उत्तर देते हुए कहा।
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इस पर अमजद बोला। “आप उन फिल्मों की बात मत कीजिए। ऐसी फिल्में आटे में नमक बराबर ही बनती है। और उसमें कितनी चलती हैं और उनकी क्या दुर्दशा होती है वह भी आपको मालूम ही होगा। ऐसी दो-एक फिल्में अगर चल गई तो आप उसे मापदंड नहीं मान सकते”।
‘सीधी-सी बात है। अगर घर में तीनों टाइम दाल ही बनने लगे तो क्या आपको अच्छी लगेगी? ऐसा ही यहां भी होगा। यह फेमिली ड्रामा लोग कब तक देखेंगे? आखिर एक न एक दिन तो उकता ही जाएंगे। और ऐसे में लोग ऐसी फिल्में से ऊब गए थे। इसीलिए एक्शन फिल्में। का जोर हुआ। और एक दिन इतिहास फिर अपने आपको दुहराएगा यह मैं ही नहीं आप खुद भी देखेंगे” अमजद खान ने कहा।
“आज आप लगभग सभी छोटे-बड़े निर्देशको के साथ काम कर रहे हैं क्या आप उनके विषय में कुछ बताना पसन्द करेंगे ?
अमजद में एक आदत है कि वह बात बड़े रूक-रूक कर और चबा- चबाकर बोलता है. बोला-मुझे काम करने का बहुत शौक है- (खामोशी )- मैं सबसे एडजस्ट कर लेता हूं। मैं रमेश सिप्पी को भारत के सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों में से एक मानता हूं। इस लिए नहीं कि उन्होंने ‘शोले” में काम दिया। बल्कि ‘शोले’ सही मायनों में निर्देशक की फिल्म है। उसके बाद मैं अपने भाई इम्तियाज को बहुत पसन्द करता हूं. अभी इम्तियाज की कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई है लेकिन आप जब इम्तियाज की फिल्में देखेंगे तो खुद मेरी बात पर ईमान ले आएंगे मनमोहन देसाई--ए। सलाम-अशोक राय--वगैरह ऐसे निर्देशक हैं जिनका अपना एक विशेष स्टाइल है। और यह लोग ऐसे डायरेक्टर हैं जिनके साथ काम करते हुए मुझे किसी किस्म की टेन्शन नहीं होती। उनके साथ बड़े आराम से काम होता है.”
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“हम दोनों भाई स्टेज के जमाने से साथ काम करते आ रहे हैं। मेरे लगभग सारे ही नाटक उन्हीं के लिखे और डायरेक्ट किये हुए हैं। वह एक सुलझे हुए जीनियस निर्देशक हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह समझता हूं और वह मुझे अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए क्लेश जैसी बात कभी न हुई हैं और न भविष्य में होने की संभावना है। उनके साथ काम करने का लुत्फ ही कुछ और है। मैं अगर उनके बारे में कुछ अधिक बोलूंगा तो लोग कहेंगे कि वह मेरे भाई हैं इसलिए प्रशंसा कर रहा हूं. लेकिन आप उनकी फिल्में रिलीज होने दीजिए फिर मैं ही क्या सब उनकी प्रशंसा करते नजर आएंगे. अमजद खान ने कहा।
“आपने अपना फिल्मी कैरियर स्व. के. आसिफ जैसे महान निर्देशक के सहायक के रूप में शुरू किया था. क्या आप भी निकट भविष्य में कोई फिल्म डायरेक्ट करने का इरादा रखते हैं? यदि हां तो किस विषय पर फिल्म बनाना पसन्द करेंगे?
“निर्देशन देने, की तमन्ना तो है किन्तु अभी पांच-सात साल तक मैं इसको कल्पना भी नहीं कर सकता. इसलिए फिलहाल विषय के बारे में सोचना समय से बहुत पहले नामुमकिन सा है. पांच सात सालों में देश क्या उन्नति करता है. कैसी हवा बनती है! जनता का रूझान क्या होता है इस का अभी से क्या पता चल सकता है. विषय-का फैसला तो समय आने पर हीे किया जा सकेगा।” अमजद खान देश की स्थिति को सामने रखकर अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा।
हमारे वार्तालाप के दौरान प्रोडक्शन के आदमी खाने के लिए बुलाने कई बार आ चुके थे। और हर ब्रार अमजद ने यह कह कर उन्हें टाल दिया था कि अभी आते हैं। इसलिए खाने के बीच दीवार बन कर किसी की शराफत का नाजायज लाभ न उठाते हुए मैंने इन्टरव्यू को यहीं खत्म करना ही उचित समझा।
जेड ए जोहर