खु्दकुशी के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए CINTAA ने ज़िंदगी हेल्पलाईन से की साझेदारी By Pankaj Namdev 13 Aug 2020 | एडिट 13 Aug 2020 22:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर Jyothi Venkatesh बॉलीवुड के कलाकारों के चेहरे पर लगे मेक-अप के पीछे छिपा असली चेहरा तब सामने आता है, जब किसी के खुदकुशी करने जैसी भयावह खबर और उनके स्वास्थ्य की असलियत सबके सामने आ जाती है. उल्लेखनीय है कि बॉलीवुड के ऐसे चेहरों को समाज के लिए आदर्श माना जाता है. CINTAA के ज्वाइंट अमित बहल कहते हैं, 'एक एक्टर के मेक-अप की परतों के मुक़ाबले दबाव की परतें अधिक होती है.' वे कहते हैं, 'सोशल मीडिया अक्सर कलाकारों के मन में सबकी नज़रों में बने रहने से संबंधित तनाव पैदा करता है. इंडस्ट्री महज़ सतत शोहरत और सतत आय का ज़रिया नहीं है. लॉकडाउन ने यकीनन लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी तनाव पैदा कर दिया था, जिसने लोगों में अनिश्चित भविष्य के मद्देनजर डिप्रेशन में जाने पर मजबूर कर दिया. मगर सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिशन (CINTAA) एक अमीर संस्था नहीं है.' वे कहते हैं, 'हम अपने सदस्यों तक पहुंचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं और सिर्फ़ महामारी के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के काम आते हैं. CINTAA ने अब ज़िंदगी हेल्पलाईन के साथ साझेदारी की है जो ऐसे जानकारों व हमदर्दों के केयर ग्रुप से बना है जो काउंसिंग कर लोगों की मदद करता है. CINTAA की कमिटी में साइकियाट्रिस्ट, साइकोथेरेपिस्ट, साइकोएनालिस्ट और साइकोलॉजिस्ट का शुमार है. हम इस मुद्दे को लेकर काफ़ी गंभीर हैं और इसे लेकर लोगों की सहायता करना चाहते हैं.' CINTAA ने खुदकुशी जैसे मुद्दे को उस वक्त गंभीरता से लिया जब संस्था की सदस्य प्रत्युशा बैनर्जी ने 2015 को आत्महत्या कर ली थी. तब से लेकर अब तक संस्था की केयर कमिटी और आउटरीच कमिटी ने कई सेमिनारों और काउंसिंग सत्रों का आयोजन किया है, जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य व योग के सत्रों व साथ ही तनाव, डिप्रेशन, आत्महत्या से बचाव जैसे उपायों पर अमल किया जाता रहा है.' वे कहते हैं, 'हमने यौन उत्पीड़न और #MeToo मूवमेंट में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी. हमने इसपर एक वेबिनार भी किया था. ऐसे ही एक वेबिनारों का आयोजन हमने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मनोचिकित्सक अंजलि छाबड़िया के साथ भी किया है. हमने सोशल मीडिया पर कई सुइसाइड हेल्पलाइन और नंबर भी साझा किये हैं.' अमित कहते हैं कि CINTAA ऐसे बड़े फ़िल्म स्टूडियोज़, हितधारकों, ब्रॉडकास्टरों और कॉर्पोरेट कंपनियों को भी संपर्क करने की कोशिश कर रही है जो अपने CSR के तहत पैसों का योगदान दे सकते ताक़ि कलाकारों और तकनीशियनों के लिए एक 24/7 हेल्पलाइन स्थापित की जा सके.' ज़िंदगी हेल्पलाइन की संस्थापक अनुषा श्रीनिवासन कहती हैं, 'अपने देश मानसिक बीमारी को कलंक समझा जाता है. कलाकारों को अमर शख़्सियतों के तौर पर देखा जाता है और डिप्रेशन और उत्कंठा को कुछ यूं समझा जाता है जैसे ये शब्द शब्दकोश में हैं कि नहीं. लेकिन उनकी ज़िंदगी व शोहरत संक्षिप्त होती है. वो दूसरों से मदद मांगने में भी असमर्थ होते हैं. गौरतलब है कि हाल के दिनों में दीपिका पा्दुकोण मानसिक बीमारी को लेकर काफ़ी सक्रिय रही हैं और लोगों के सामने वो एक मिसाल के तौर पर उभरी हैं और उन्होंने दूसरों की राह को और आसान बना दिया है. ऐसे में ज़िंदगी हेल्पलाइन एक अहम बदलाव लाने में कारगर साबित होगा.' वे कहती हैं, 'इस ग्रुप में जानकार और हमदर्द होंगे और मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों की अच्छी देखभाल की जाएगी और उन्हें समय पर सहूलियतें मुहैया कराई जाएंगी. एक-दूसरे की मदद करना ही हमारा उद्देश्य है. मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, 'टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.' सिधवानी का कहना है कि हम में से अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकिन कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.' वो कहती हैं, 'एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वीता के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की दौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को भुला बैठते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक संकरी सी रेखा होती है. चूंकि इस इंडस्ट्री में काम मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाइफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.' डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपटी सी होती है. वो कहते हैं, 'लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. कई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.' सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, 'किसी तरह के नुकसान और अकेलापन भी इस सफ़र के अहम पड़ाव होते हैं. कई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.' CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, 'CINTAA इस तरह की पहल के लिए तैयार है, लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण करना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं जैसे कि यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए. मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, 'टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.' सिधवानी का कहना है कि हममें अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकिन कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.' वो कहती हैं, 'एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वी के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की हदौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को खो देते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक पतली सी रेखा होती है. चूंकि काम मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाईफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.' डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपेट से होते हैं. वो कहते हैं, 'लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. क ई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.' सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, 'किसी तरह के नुकसान और अकेलापन भी इस सफ़र के अहम पड़ाव होते हैं. क ई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.' CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, 'CINTAA इस तरह के बहल के लिए तैयार है, लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण करना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए. हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article