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दादी जी की अक्लमन्दी (कहानी) - सुलेना मजुमदार अरोरा

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By Mayapuri Desk
दादी जी की अक्लमन्दी (कहानी) - सुलेना मजुमदार अरोरा
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बंटू का बर्थडे था और  दादी जी उसे कोई प्यारा सा सरप्राइज गिफ्ट देना चाहती थी। दादी ने अपने बटुए में रुपए गिनकर देखे तो एक हजार रुपये कम पड़ रहे थे। उसके पास ए टी एम कार्ड तो था नहीं कि झटपट जाकर पैसे निकाल लेती और अगर वह घर के किसी दूसरे सदस्य को भेजती है तो बर्थडे गिफ्ट का सरप्राइस फिर सरप्राइस नहीं रह जाएगा, सबको पता चल जाएगा यह सोचकर दादी जी अपना वाकिंग स्टिक लेकर खुद धीरे-धीरे बैंक पहुंच गई। वहां बहुत भीड़ थी और लंबी लंबी लाइन लगी थी। दादी जी लाइन में जाकर खड़ी हो गई। काफी देर के बाद जब उनका नंबर आया तो काउंटर पर बैठी लड़की को उसने एक हज़ार रुपए निकालने के लिए चेक जमा किया। लड़की ने चेक को देखा और झल्लाकर वापस दादी के हाथों में थमाते हुए बोली, 'अरे आप लोग छोटी छोटी रकम निकालने के लिए हमें क्यों परेशान करती हैं, देखती नहीं, कितनी लंबी लाइन है। जाइये, एटीएम से पैसे निकाल लीजिए।' इसपर बूढ़ी दादी ने कोमलता के साथ कहा, 'बेटी मेरे पास एटीएम कार्ड नहीं है और मुझे सिर्फ एक हज़ार रुपयों की ही जरूरत है।' लेकिन लड़की बूढ़ी दादी की कोई बात सुनने को राजी नहीं हुई और बड़ी कठोरता से जवाब देते हुए बोली, 'इतनी छोटी रकम देने के लिए मैं खाली नहीं बैठी हूँ। आप हटिया यहां से।' बूढ़ी दादी ने तब दो पल सोचा और फिर तुरंत चेक बुक निकालते हुए कहा, 'बड़ी रकम निकालूंगी तो  दे दोगी?,  ठीक है बेटी, मुझे मेरे अकाउंट में जमा दस लाख रुपये पूरे के पूरे अभी निकाल कर दो।'  यह सुनते ही लड़की सकपका गई और बगले झांकती हुई लज्जित स्वर में बोली, 'सॉरी दादी जी, पर इतनी बड़ी रकम एक साथ तो फिलहाल हमारे बैंक में नहीं है देने के लिए।' यह सुनकर दादी जी मुस्कुराई और बोली, ' ठीक है पचास हजार ही दे दो।'  लड़की ने चुपचाप पचास हज़ार दादी को पकड़ा दिए। दादी ने उसमें से एक हज़ार रुपए अपने बटुए में रखें और बाकी उनचास हजार उस लड़की को वापस देते हुए बोली, 'जब छोटी रकम मांगी तो तुमने नहीं दिया, बड़ी रकम मांगी तो भी तुम्हारे बैंक के पास नहीं है, जबकि मुझे पता है कि कोई भी बैंक किसी भी सीनियर सिटीजन को इन बातों के लिए मना नहीं कर सकता है। अब कम से कम यह उनचास हज़ार रुपए वापस जमा करने के लिए मना तो नहीं करोगी?' काउंटर गर्ल ने शर्म से सर झुकाते हुए फिर से 'सॉरी मैम' कहा और दादी जी विजयी मुस्कान के साथ लाठी टेकती हुई बंटू के लिए गिफ्ट खरीदने, बैंक से बाहर निकल गई।

इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि बुज़ुर्गो को कभी युवाओं से कम बुद्धिमान समझने की गलती नहीं करना चाहिए। उनके पास बुद्धि के साथ साथ अनुभव भी होता है।
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★सुलेना मजुमदार अरोरा★

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