-अली पीटर जॉन
अगर आप चमत्कारों पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आपको उस महान सुनील दत्त और नरगिस दत्त के इकलौते बेटे, की कहानी जरुर सुननी चाहिए
मुझे कभी-कभी लगता है कि संजय को भगवान ने विशेष रूप से लोगों को उनके अस्तित्व और उनकी शक्ति के बारे में याद दिलाने के लिए बनाया था जब कि उनकी शक्ति को उनके स्वयं के द्वारा चुनौती दी जाती है।
अब, संजय के अशांत जीवन में नवीनतम चमत्कार को देखें। वह कई अलग-अलग मोर्चों पर इतने सारे युद्ध लड़ने के वर्षों बाद एक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। वह अपनी 61 की उम्र में कुछ बेहतरीन काम कर रहे थे और एक ऐसे जीवन की आशा कर रहे थे, जिसमें उन्हें कभी रहने का अवसर नहीं मिला था। उनकी पत्नी, मान्यता और उनके जुड़वाँ शाहरान और इकरा दुबई में थे जब महामारी ने दुनिया को जकड़ लिया और संजय अपने घर “इम्पीरियल हाइट्स” में अकेले थे। 11 अगस्त संजय के लिए एक और डार्क डे था क्योंकि इस दिन डॉक्टरों ने उन्हें फेफड़ों के कैंसर के चैथे स्टेज के बारे में बताया था। चारों तरफ टेंशन थी।
स्लोन केटरिंग कैंसर हॉस्पिटल में इलाज के लिए उन्हें अमेरिका ले जाने का फैसला किया गया था (जहां 37 साल पहले उनकी मां का कैंसर का इलाज किया गया था) लेकिन कहा जाता है कि कुछ वीजा समस्याएं थीं और फिर उन्हंे सिंगापुर ले जाने का फैसला किया गया और जब यह योजना विफल हो गई, तो मुंबई में ही उनका इलाज करने का निर्णय लिया गया था। उन्हें पहले लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया और फिर अंबानी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ वे कई दिनों तक कठोर ‘कीमोथेरेपी’ सेशन और अन्य प्रकार के ट्रीटमेंट से गुजरे।
जब उनकी इंटरनेट पर तस्वीरें वायरल हुईं, तो उन्हें एक निराश और निर्बल अवस्था में देखा गया था और लोगों ने कहा कि संजय विनोद खन्ना की तरह दिख रहे थे जब विनोद किडनी के कैंसर से झूझते समय दिख रहे थे।
संजय के वापस लड़ने के पहले संकेत कुछ दिनों बाद ही दिखाई दिए थे, जब उन्हें बहुत बेहतर स्थिति में देखा गया था और यहाँ तक कि वापस लड़ने और पूरी तरह से ठीक होने के बारे में भी बात की गई थी।
संजय ने जो कहा वह खुद के लिए एक भविष्यवाणी की तरह था क्योंकि उन्हें 21 अक्टूबर को कैंसर फ्री घोषित किया गया था जो कि उनके जुड़वा बच्चों का 10 वां जन्मदिन था और उनके लिए उनका खुद का उत्सव था।
अगर संजय दत्त की यह अद्भुत और अविश्वसनीय यात्रा कोई चमत्कार नहीं है, तो मुझे नहीं पता कि क्या है। संजय न केवल सामान्य स्थिति में लौट आए हैं, बल्कि ‘शमशेरा’ के लिए डबिंग भी शुरू कर दी है और जल्द ही अपनी नई फिल्म ‘केजीएफ 2’ पर काम शुरू करेंगे। उन्होंने पहले ही ‘भुज- द प्राइड’ की शूटिंग पूरी कर ली थी और भविष्य में बनने वाली फिल्मों के लिए कई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं।
क्या यह सब संजय के जीवन में नहीं हो रहा है। क्या बाबा यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे भगवान के सबसे अच्छे आधुनिक चमत्कारों में से एक हैं?
और जब हम संजय और उनके चमत्कारों के बारे में बात कर रहे हैं, हम कैसे भूल सकते हैं कि कैसे उन्होंने अपने जीवन के कुछ सबसे बुरे तूफानों को झेला, जैसे कि वह ड्रग्स का शिकार बने जिसने अपनी युवावस्था के नौ वर्षों को बर्बाद कर दिया, एक जेल से दूसरी जेल तक उनका संघर्ष जब उन्हें एक आतंकवादी और देश के दुश्मन के रूप में माना जा रहा था, एक जीवन और मृत्यु के बीच का यह संघर्ष जो तेरह वर्षों तक चला था। और उन्हें उन सभी भावनात्मक उथल-पुथल से गुजरना पड़ा जब उनकी पहली पत्नी ऋचा शर्मा की ब्रेन कैंसर से मृत्यु हो गई थी और वह संजय और अपनी बेटी त्रिशाला को अकेला छोड इस दुनिया से चली गई थी।
मुझे आश्चर्य है कि एक आदमी एक जीवन में इतने सारे दुखो के माध्यम से कैसे जी सकता था और जवाब ढूंढना मुश्किल है। और कितने इम्तेहान लोगे अपने इस गजब के इंसान का, ऐ खुदा?