'शिवा' के किरदार के लिए मैंने चार वर्ष कठिन मेहनत कर खुद को तैयार किया...’ By Mayapuri Desk 08 Dec 2020 | एडिट 08 Dec 2020 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘परिश्रम का फल मीठा होता है, परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसका जीता जागता उदाहरण हैं-अभिनेता दिलीप आर्या, जो इन दिनों ‘‘एमएक्स प्लेयर’’ पर वेब सीरीज ‘‘बीहड़ का बागी’’ में शिव कुमार पटेल उर्फ षिवा के मुख्य किरदार में नजर आ रहे हैं। लेकिन यहां तक पहुॅचने तक में उनका लंबा संघर्श रहा है। शांति स्वरुप त्रिपाठी प्रस्तुत है दिलीप आर्या से हुई खास बातचीत के अंश... दिलीप आप अपनी अब तक की यात्रा को लेकर क्या कहेंगें? मेरी जिंदगी व कैरियर में संघर्श बहुत ज्यादा रहा। मैंने कुछ ज्यादा ही कठिन बयाना ले लिया था। मैं अमोली गाॅंव, जिला फतेहपुर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। मेरे पिता राज मिस्त्री थे, मकान बनाया करते थे। जब मैं ग्यारह वर्श का था, तब उनका देहांत हो गया। हम तीन भाई व तीन बहन थे। यानीकि बड़ा परिवार था। मुझसे बड़े मेरे भाई मुझसे दो वर्श ही बड़े थे। हमारे पास न कोई संपत्ति, न मकान,न खेत, न नौकरी कुछ नहीं था। अब मां के सामने छह बच्चों की परवरिश का संकट था। उस वक्त मुझे ज्यादा सुध बुध नहीं थी। हम आज के बच्चों की तरह तेज तर्रार नहीं थे। हम सब भगवान भरोसे हो गए थे। उन दिनों मेरी मां दूसरों के चने के खेत से चना का साग तोड़कर लाती थी, क्योंकि चने के साग को तोड़ने की मनाही नहीं थी। उस वक्त ज्वार/जुंधी मिलती थी, तो थोड़ी सी ज्वारी में चने का साग लगाकर हम लोेग किसी तरह खाकर जिंदगी गुजार रहे थे। तकरीबन एक डेढ़ वर्श तो बहुत तकलीफ हुई। फिर मेरी मां ने ठेकेदार से बात की और बड़ी मुष्किल से बडे़ भाई व मुझे मजदूरी मिल गयी। हम दोनों को 400 रूपए प्रति माह मिलते थे। दो तीन वर्श इसी तरह बीतें। इस बीच हमनेे पढ़ना शुरु कर दिया। फिर हमने सिलाई सीखी। बगल की दुकान में जाकर हम अखबार पढ़ते थे। एक दिन मैंने अखबार में नसीरुद्दीन शाह का इंटरव्यू पढ़ा। जिससे पता चला कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय/एनएसडी से अभिनेता बनते हैं। इसके अलावा दो दिन पहले ही हमारे यहाँ हेलीकोप्टर से मुलायम सिंह यादव जी आए थे, तो सब भागकर गए थे उन्हें देखने। पता चला कि सभी मुलायम सिंह यादव नहीं, बल्कि हेलीकोप्टर को देखने गए थे। तब किसी ने कहा, कि नेता और अभिनेता ही हेलीकोप्टर या हवाई जहाज में घूमते हैं। मैं नेता बनना नहीं चाहता था, मगर नसीरुद्दीन षाह का इंटरव्यू पढ़कर वहीं से मेरे अंदर ललक पैदा हुई कि मुझे भी अभिनेता बनना है। मैं वह अखबार लेकर राष्ट्रिय नाट्य विद्यालय गया, उन्होंने मुझे यह कह कर वापस भेज दिया कि स्नातक तक की पढ़ाई व नाटकों में अभिनय करने के बाद इसकी लिखित परीक्षा पास करने के बाद ही प्रवेश मिलेगा। तो दुबारा पढ़ाई करने के लिए गाॅंव वापस आए। राष्ट्रिय नाट्य विद्यालय से वापस आकर मैं पुनः दिल्ली थिएटर करने के लिए गया। पर बात नहीं बनी फिर मैंने पंडित एन के शर्मा का ‘एक्ट वन ग्रुप’ ज्वाॅइन किया और फुरसत के समय में सिलाई का काम करके पैसे कमा रहा था। एन के शर्मा काफी कठोर थे। उन्हे कक्षा में किसी का देर से पहुॅचना पसंद नहीं था। मैं अक्सर सिलाई करने के काम की वजह से देर से ही पहुॅचता था, तो उनकी मार भी खाता था। सिलाई का काम करना मेरी मजबूरी थी। मैं दूसरों के थिएटर ग्रुप में जाकर बैक स्टेज, झाड़ू लगाने या चाय लाने का काम भी करता रहता था। इसके पीछे मकसद सिर्फ नाटक में दूसरों को काम करते हुए देखना होता था। 2000 की बात है। मैंने दुबारा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की लिखित परीक्षा व इंटरव्यू पास करके वर्कशॉप में पहुॅचा, तो वर्कशॉप में मेरे साथ सभी धुरंधर थे। दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, हर सेंटर से बीस-बीस लोग आते हैं। मेरे साथ पंकज त्रिपाठी, इनामुल हक, चार्ली वगैरह थे। मगर 2000 में हम में से किसी को भी प्रवेश नहीं मिला। उस वक्त मैंने एक कविता सुनायी थी, तो वहीं पर थिएटर के निर्देशक बजाज सर ने कहा कि आप अच्छा कर रहे हो, पर अगली बार आना। तब तक मेरी अरमापुर युनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई पूरी हो चुुकी थी और मैं डीबीएस कालेज, कानपुर युनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर से पोस्ट ग्रेज्युएशन कर रहा था। पर मैं कालेज नहीं जाता था। सिर्फ परीक्षा देने जाता था। इधर दिल्ली में नाटक किया करता था, जिससे मेरे दस नाटक पूरे हो जाएं। पर आपने तो ‘भारतेंदु नाटक अकादमी’ से प्रतिक्षा हासिल किया? यह क्या माजरा है? राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ही मुझे पता चला कि लखनउ के भारतेंदु नाटक अकादमी भी ड्रामा का स्कूल है जो कि सरकार के ही अधीन है। मैंने वहां पर परीक्षा दी। इंटरव्यू दिया और पास हो गया। पर पहली मेरिट में मेरा नाम नहीं आया। मेरा नाम प्रतीक्षा सूची में था। 2001 में एनएसडी में मेरा आवेदन पत्र समय पर नहीं पहुॅंचा, बल्कि पंकज त्रिपाठी वगैरह का आवेदन पत्र समय से पहुॅंच गया था। तो इन्हे एनएसडी में प्रवेश मिल गया। तब मैंने ‘भारतेंदु नाटक अकादमी’ में ही प्रवेश ले लिया। मेरा यह निर्णय सही रहा। क्योंकि ‘भारतेंदू नाटक अकादमी’ से ही हमंे एनएसडी और ‘पुणे फिल्म संस्थान’ भी प्रषिक्शण के लिए ले जाया गया। मैं भारतेंदु नाटक अकादमी का शुक्रगुजार हूंूं कि उन्होंने हमारी ऐसी ट्ेनिंग करवायी कि हमारे अंदर आत्मविष्वास पैदा हुआ। ‘सिने डिजाइनिंग’ की कक्षाएं एनएसडी और फिल्म मेकिंग की क्लासेस पुणे फिल्म संस्थान में हुई। वहां से हम 2005 में मंुबई आ गया। 2005 से अब तक का में किस तरह का संघर्ष रहा? मैं उत्साहित और जोश में था कि मैंने ‘भारतेन्दु नाटक आकदमी’ से प्रषिक्शण हासिल कर लिया है और अब हमारे सामने फिल्म निर्माता कतार लगाकर खडे़ हो जाएंगे। मगर यहां तो हमें कोई पहचान ही नहीं रहा था। बहुत बुरी हालत थी। काफी संघर्श किया। हारकर दिल्ली चला गया। दिल्ली में मैने रोड शो में एंकरिंग करनी शुरु की। मैं पूरे समय सिर्फ सिलाई नहीं करना चाहता था? मैं अपने अंदर के कलाकार को मरने नहीं देना चाहता था। दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी शुरू की। चार सौ रूपए मिलते थे और पूरे भारत में घूम घूमकर एंकरिंग किया करता था। महेंद्र ट्रेक्टर, जे के टायर आदि की। कुछ पैसे जमा हुए। कुछ घर भेजा और पांच हजार बचाकर मुंबई आया और गोरेगांव में चार दोस्तों के साथ मिलकर रहना शुरू किया। फिर निर्देशक रितम श्रीवास्तव के साथ एक वर्ष रहा। रितम ने पहले वेब सीरीज ‘रक्तांचल’ बनायी। उसके बाद ‘बीहड़ का बागी’ बनायी तो मुझे मुख्य भूमिका निभाने का मौका दिया। वेब सीरीज ‘‘बीहड़ का बागी’’के अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगें? दर्शक इस वेब सीरीज को ‘एमएक्स प्लेयर’ पर देख रहे हैं।यह बुंदेलखंड यानी कि चित्रकूट/बांदा के कुछ डकैतों की कहानियों से पे्ररित है। मैं इसमें बुंदेलखंड के खूंखार डकैत शिव कुमार पटेल उर्फ षिवा के प्रमुख चरित्र में नजर आ रहा हॅूं। जो कि अपनी बहन के साथ बलात्कार व उसकी हत्या हो जाने के बाद अपने हाथ में बंदूक उठाकर उन सभी को मौत के घाट उतार देता है, जिन्होने उसकी बहन के साथ गलत किया था। अब पुलिस उसके पीछे पड़ जाती है,तो वह बागी होकर जंगलों में पहुॅच जाता है, जहां वह डकैत गिरोह ददुआ से जुड़ता है और कुछ समय मंे खुद ही इस गिरोह का मुखिया बन जाता है। शिवा के किरदार को निभाने के लिए किस तरह की तैयारी करनी पड़ी? इस किरदार को निभाने से पहले मैंने अपनी तरफ से काफी शोध कार्य किया था। यह मेरे चार वर्षों की कठिन मेहनत के बाद तैयार हुआ किरदार है। मैं खुद कई माह तक चित्रकूट के जंगल यानी कि डकैतों को इलाके में जाकर रहा था। रितम श्रीवास्तव ने मेरी बहुत कठिन ट्रेनिंग करवायी। मैं बहुत दिनों तक बिस्तर पर नहीं सोया। एक बोरिया बिछाकर सो जाता था। बालों में शैम्पू नही किया। बाल बढ़ाए। शूटिंग के दिनों में कई दिन नहाता नही था। मेरे अंदर लोगों का तिरस्कार भरा हुआ था। मैने निर्देशक से कह दिया कि आग में चलने के लिए कहोगे, तो भी चल जाउंगा,पर किरदार के साथ न्याय होना चाहिए। मुझे अपनी प्रतिभा को साबित भी करना था। मैंने सब कुछ किया। मैं भेष बदलकर उस जंगल में रहा। मैंने पता किया कि इनके लिए मुखबरी कौन करता है, इन्हे मदद कौन करता है। इन्हेे राशन पानी कहाँ से मिलता है, सब कुछ मैने अपनी तरफ से पता लगाया। बीमार हुए, तो दवा कैसे आएगी। यह अपना संदेश कैसे भेजते हैं। राजनीतिक गठजोड़,कब उत्तर प्रदेश और कब मध्यप्रदेश में जगह बदलते हैं। सब कुछ समझा।इनकी कारतूस,बंदूके कहाँ से आती हैं? कारतूस और बंदूक की कीमत क्या है? इनकी जिंदगी में पत्नी की क्या औकात है? इस तरह की ढेर सारी बारीक से बारीक बातों को मैने समझा और उन्हे आवष्यकतानुसार अपने अंदर उतारा। सुरक्षा के क्या इंतजाम थे? कुछ नही थे। यह तो कम बजट वाली फिल्म है, जिसे छह भाग की वेब सीरीज के तहत प्रदर्षित किया गया। इसमें सभी खरतनाक सीन मैने ख़ुद ही किए हैं। कोई ‘डुप्लीकेट’ नहीं था। एक दृष्य में तीस फुट उंची पहाड़ी से मुझे ‘स्क्रोेल’ करते हुए नीचे गिरना था। चोट लगना स्वाभाविक था। मेरे पास सिर्फ ‘नीकैप’ ही पहनने के लिए था। अब सवाल हुआ कि क्या किया जाए?तो मैने निर्देशक से कहा कि आप चिंता न करें,मैं ख्ुाद ही करुंगा। मैंने किया और मेरे बाएं पैर में फ्रैक्चर भी हुआ था। बाद में मुंबई आकर कोकिलाबेन अस्पताल में आपरेशन करवाया। मैंने इतना तिरस्कार व अपमान झेला हुआ था, उसके सामने मुझे यह तकलीफ कुछ नहीं लगी। किस तरह के अनुभव रहे? वेब सीरीज ‘‘बीहड़ का बागी’’ की शूटिंग में अलग अलग कहानियां घटी हमने चित्रकूट में उन स्थानों पर षूटिंग की,जो कि वास्तव में डकैतो के ही इलाके हैं। राजिया, बड़खडियां जैसे डकैतों के गैंग उस वक्त भी सक्रिय थे। हम पुलिस सुरक्षा में ष्ूाटिंग करते थे। जो डकैत सक्रिय थे,उनके पास हथियार बहुत अच्छे अच्छे थे। इस फिल्म के बिकने में काफी तकलीफ हुई। लोगों ने कहा कि नया हीरो है, कौन इस फिल्म को देखना चाहेगा? पर रितम श्रीवास्तव ने ‘एमएक्स प्लेअर’ से बात की, बात बन गयी और जिस तरह का रिस्पांस मिला, वह कमाल का है। लोगों ने इसे काफी पसंद किया। एमएक्स प्लेयर ने इसे कई अखबारों में पूरे पृष्ठ का विज्ञापन भी दिया। अब हर कोई इस वेब फिल्म और मेरे अभिनय की ही चर्चा कर रहा है। ‘एमएक्स प्लेअर’ पर इसके आने के बाद क्या प्रतिक्रिया? बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। इस वक्त यह नंबर वन वेब सीरीज है। करोड़ों लोग देखकर मेरेे अभिनय की प्रशंसा कर रहे हैं। कुछ नया कर रहे हैं? एक फिल्म की शूटिंग शुरू ही होने वाली थी कि अचानक कोरोना संकट आ गया। कुछ पटकथाएं आयी हैं। पर कब क्या होगा, फिलहाल कहना मुष्किल है। मैं अच्छी पटकथा व किरदार का इंतजार कर रहा हूँ। किस तरह के किरदार निभाना है? मैं ख़ुद को दोहराना नहीं चाहता। इसके अतिरिक्त हर तरह के किरदार करना चाहता हूं, जिन्हे करके मेरे कलाकार मन को खुषी मिले। मैं मानवीय भावनाओं को उकेरने वाली फिल्में व किरदार करना चाहता हंू। मुझे वह फिल्में करना है,जो मानवीय ताने बाने से बुनी गयी हों। रिष्तों व मानवीय संबंधों के सभी नौ रसों को परदे पर निभाना चाहता हूं। सोशल मीडिया? मैं ठहरा देसी इंसान। मुझे यह सब आता ही नही हैं अब मैं इंस्टाग्राम पर कुछ तस्वीरें डालनी शुरू की हैं मुझे टिक टाॅक बनाना भी नही आता। हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article