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15 अगस्त 1947 को हम आजाद हुए थे। उस वक्त हर देशवासी खुशी से झूम उठा था। हर किसी के दिल में देशभक्ति व देश प्रेम का जज्बा हिलोरे ले रहा था। मगर समय बीतने के साथ धीरे धीरे यह जज्बा भी कम होने लगा। लोगों के अंदर देशप्रेम की लहर तालाबों में उठने वाली तरंगों की तरह खामोशी से सरसराती रहती है, लेकिन 15 अगस्त का दिन यानी कि स्वतंत्रता दिवस की दस्तक के साथ ही समुद्र में सुनामी की ही तरह लोगों के अंदर का सोया हुआ भारतीय जागने लगता है। वास्तव में हमारे देश में देशभक्ति व देशप्रेम मौसमी प्रवृत्ति है। सिनेमा भी समाज से ही प्रेरित होता है। इसलिए बॉलीवुड में भी देशभक्ति मौसमी प्रवृत्ति के अलावा कुछ नही?
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इस बार हमारी आजादी के 74 वर्ष पूरे हो रहे हैं और हम 75 वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं, तो एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने व अपने अंदर की देशभक्ति व देशप्रेम को दिखाने का जोश हर भारतीय में नजर आने लगा है। यही हालत हमारे बॉलीवुड का भी है। इस बार बॉलीवुड स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक नही बल्कि ‘शेरशाह’, ‘भुज द प्राइड आफ इंडिया’ और ‘बेलबॉटम’ सहित तीन फिल्में लेकर आया है। ‘शेरशाह’ 12 अगस्त से अमेजॉन प्राइम पर,‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’13 अगस्त से ‘हॉटस्टार डिजनी’पर स्ट्रीम हो रही है, जबकि फिल्म‘बेलबॉटम’19 अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। 19 अगस्त को ‘बेलबॉटम’के सिनेमाघरों में प्रदर्शन के कई मायने देखे जा रहे हैं। बॉलीवुड मानकर चल रहा है कि ‘बेलबॉटम’ जहां एक तरफ आम भारतीय के दिलों में देशप्रेम की लौ को जगाएगी, वहीं यह फिल्म पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी के चलते बंद पड़े सिनेमा जगत में एक नई उर्जा का संचार करेगी।
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बहरहाल,पूरे वर्ष मनोरंजन के नाम पर उलजलूल कायक्रम व फूहड़ता परोसते आए सभी टीवी चैनल्स स्वतंत्रता दिवस के दिन देशभक्ति की फिल्में दिखाकर खानापूर्ति करते नजर आएंगे। आखिर फिल्में ही तो हैं, जिनके जरिए आम आदमी देशभक्ति की भावना महसूस कर लेता है। देशभक्ति के इस फॉर्मूले को बॉलीवुड हमेशा से ही भुनाता आया है, हालांकि समय के साथ-साथ इसके तरीके में थोड़े बदलाव आते रहे हैं।
यह कहना भी सही नहीं होगा कि बॉलीवुड ने हमेशा देशभक्ति को केवल एक तड़के की तरह इस्तेमाल किया,लेकिन मौजूदा समय की सच्चाई तो यही है। किसी समय में फिल्में या इन फिल्मों के गाने लोगों के बीच देशभक्ति का पर्याय हुआ करते थे।
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जी हां!जब देश गुलाम था,उस वक्त कुछ देशभक्तों ने फिल्मों के माध्यम से अपरोक्ष रूप से लोगों को एकजुट होने का संदेश देना शुरू किया था।तभी 1931 में आरदेक्षीर ईरानी ने पहली फिल्म ‘‘आलम आरा’’ बनायी थी। यूं तो यह कहानी एक राजा और उसकी दो रानियों नवबहार और दिलबहार की है। मगर इसमें एक संदेश उभरकर आता है कि जब हम आपस में लड़ते हैं, तो किस तरह नुकसान होता है। ‘आलम आरा’ में अपरोक्ष रूप से अपने राज्य के प्रति प्रेम का संदेश था। इसी तरह उस वक्त के फिल्मकारों ने कई ऐतिहासिक,धार्मिक व सामाजिक फिल्मो का निर्माण कर अपरोक्ष रूप से लोगों को ‘एकजुट’ होने के साथ नैतिक मूल्यों के साथ जिंदगी जीने का संदेश देने का काम जारी रखा। फिर आजादी से पहले 9 जनवरी 1943 को लेखक व निर्देशक ज्ञान मुखर्जी की फिल्म ‘किस्मत‘ प्रदर्शित हुई थी,जिसमें अशोक कुमार, मुमताज ,कनुराय, मुबारक व कमला कुमारी जैसे कलाकारों ने अभिनय किया था। इसका गाना ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है‘ लोगों के बीच अंग्रेजों के विरोध का चेहरा बन गया था। यूं तो फिल्म ‘किस्मत’ एक कॉनमैन’की कहानी थी, मगर फिल्मकार ज्ञान मुखर्जी ने अपनी फिल्म के इस गीत के माध्यम से सीधे हर भारतीय के अंदर देशप्रेम, देश के लिए कुछ करने की ललक जगाने का काम किया था। फिर 1950 तक कड़क अंग्रेजी सेंसरशिप के बावजूद परोक्ष या अपरोक्ष रूप से फिल्मों में एकता, देशप्रेम व देशभक्ति की बातें की जाती रहीं। मगर 1950 के बाद यह जज्बा गायब हो गया। इसके लिए बॉलीवुड के साथ साथ हमारे देश की सरकारें भी जिम्मेदार हैं। 1950 के बाद देश के नेता अपनी सरकार बनाने व अपनी कुर्सी की चिंता में मगन हो गए। देशभक्ति हर किसी के लिए दोयम स्तर पर पहुंच गयी थी। आम भारतीय भी ‘स्वांतः सुखाय’में लिप्त हो गया था।
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लेकिन 1962 में चीन ने जब भारत पर आक्रमण किया, तब लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ। तब फिल्म निर्देशक चेतन आनंद ने 1964 मेंं फिल्म‘‘हकीकत’’ बनायी थी,जिसमें लद्दाखी जनजाति द्वारा चीन के साथ युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की मदद की कथा बयां की गयी थी। पर हमारे देष का सिनेमा सदैव सरकार की सोच के साथ चलती रही हैं,यही वजह है कि चेतन आनंद ने अपनी इस फिल्म में प्रधानमंत्री स्व.जवाहरलाल नेहरू की अंतिम यात्रा के दृश्य भी जोड़ लिए थे। चेतन आनंद की यह फिल्म देश की जनता की भावनाओं को नही समझ पायी थी और फिल्म को सफलता नही मिली थी। विभिन्न राज्य सरकारों से टैक्स फ्री होने के बावजूद ‘‘हकीकत‘‘ विफल रही। वास्तव में चीन के साथ हुए इस युद्ध में भारतीय ने खुद को अपमानित महसूस किया था।
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इसलिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगतसिंह के साथी रहे बटुकेश्वर दत्त ने भगतसिंह के जीवन पर एक कहानी लिखी, जिस पर निर्देषक एस राम शर्मा ने मनोज कुमार को भगतसिंह के किरदार में लेकर 1965 में फिल्म ‘‘शहीद’ बनायी, जिसे जबरदस्त सफलता मिली। और फिर खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से अपने नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर फिल्म बनाने के लिए कहा। इससे मनोज कुमार को देश के लोगों के बीच देशप्रेम की भावना बढ़ाने की प्रेरणा मिली। मनोज कुमार ट्रेन में सफर करते थे, शास्त्री जी के कहने पर ट्रेन से बम्बई पहुंचने तक उपकार की कहानी लिख दी थी। फिर मनोज कुमार ने स्वयं फिल्म‘उपकार’की कहानी लिखी, फिल्म का निर्देशन किया और मुख्य भूमिका निभायी। फिल्म का निर्माण आर एन गोस्वामी ने किया था। 1967 में प्रदर्शित फिल्म‘उपकार’ को छह फिल्मफेयर और दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। उपकार’के बाद मनोज कुमार ने ‘पूरब और पश्चिम’’, ‘क्रांति’,‘रोटी कपड़ा और मकान’, जैसी कई देशभक्ति की फिल्मों का निर्माण अथवा निर्देशन अथवा उनमें अभिनय करने की वजह से ही लोगों ने मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’कहना शुरु किया था।
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लेकिन मनोज कुमार के बाद अन्य किसी ने भी इस तरफ ध्यान नही दिया। महज दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए फिल्मकार एक्शन व अन्य तरह की बॉलीवुड मसाला फिल्में बनाता रहा। इस बीच देश की सरकारें भी अलग ढंग से काम करती रही। लेकिन 1999 से 2004 के बीच जब केंद्र में स्व. प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार रही,तब एक बार फिर बॉलीवुड के अंदर देशभक्ति प्रधान फिल्में बनाने का बुखार सवार हुआ था। इस दौरान ‘लगान’,‘गदरःएक प्रेम कथा’,‘लक्ष्य’,‘मंगल पांडेः द राइजिंग’, ‘स्वदेश’ जैसी फिल्में बनी। इसी दौरान जे पी दत्ता ने भी ‘‘एल ओ सी :कारगिल’ फिल्म बनायी थी,जो कि 12 दिसंबर 2003 को प्रदर्षित हुई थी। यूं भी जे पी दत्ता का झुकाव युद्ध प्रधान फिल्मों की तरफ रहा है,क्योंकि उनके भाई और वायुसेना के पायलट की मौत युद्ध के दौरान हुई थी।वैसे जे पी दत्ता ने युद्ध पर फिल्म बनाने की अपनी रूचि के चलते 1997 में ‘बार्डर’जैसी चर्चित फिल्म बनायी थी और अब 2018 में बुरी तरह से असफल फिल्म‘ ‘पलटन’’ बनायी।
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मगर इस कटु सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि 2004 में सरकार बदलते ही बॉलीवुड पर से देशभक्ति का बुखार इस कदर उतरा कि सिनेमा पूरी तरह से पथभ्रष्ट हो गया था। 2004 से 2014 तक बॉलीवुड मसाला फिल्मों के नाम पर कुछ भी परोसता रहा। 2006 में राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’, 2008 में नीरज पांडे ‘‘ए वेडनेस्डे’’ जैसी फिल्में लेकर आए थे। तो 2013 में निखिल अडवाणी की ‘डी डे’ आयी थी। इन्हें इस तरह से देखा जा सकता है कि हर वर्ष कोई न कोई इवेंट होता है।
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लेकिन 2014 में सरकार बदलने के साथ ही बॉलीवुड पर एक बार फिर देशभक्ति का बुखार चढ़ गया। इतना ही नही सरकार के विचारों के अनुरूप अब देशभक्ति ने अब अपना दायरा बढ़ा लिया है और इसे राष्ट्रवाद के रूप में वर्णित किया जा रहा है। यह लोगों की मनःस्थिति के अनुरूप प्रतीत होता है। और देखते ही ‘‘एयरलिफ्ट‘‘, ‘‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक‘‘, ‘‘मिशन मंगल‘‘,‘केसरी’, ‘‘परमाणुः द स्टोरी ऑफ पोखरण‘‘, ‘‘राजी‘‘, ‘‘मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी‘‘, ‘‘द गाजी अटैक‘‘,‘‘तानाजीः द अनसंग वॉरियर‘‘जैसी कई फिल्में बन गयी। यह सभी फिल्में देशभक्ति, देशप्रेम व राष्ट्रवाद की बात करती हैं। तो वहीं इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ‘भुज : द प्राइड आफ इंडिया’, ‘शेरशाह’और ‘बेलबॉटम’ जैसी फिल्में आ गयीं। अब बॉलीवुड का एक बड़ा तबका स्वयं को राष्ट्रवादी व देशभक्त साबित करने पर तुला हुआ है। तो कुछ लोग ‘भारत कुमार’ बनने की होड़ का हिस्सा हैं। वास्तव में यह सरकार बदलने का परिणाम है। वर्तमान सरकार राष्ट्रवाद की ही बात करती रहती है। और हमारा बॉलीवुड भी ऑंखमूंद कर उसका अनुसरण करता रहा है और कर रहा है।
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राष्ट्रवाद को प्रेरित करने का एक और तरीका फिल्मों के माध्यम से देश को गौरवान्वित करना है।इसी वजह से ‘‘दंगल (2016)‘‘, ‘‘गोल्ड (2018)‘‘, ‘‘धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी (2016 )‘‘ जैसी फिल्में,डी डे‘, ‘रंग दे बसंती‘, ‘पद्मावत‘, ‘मैरी कॉम (2014)‘, ‘केसरी‘, ‘सुपर 30‘ जैसी फिल्में भी बनी।
कुल मिलाकर हकीकत यही है कि बॉलीवुड के लिए देशप्रेम व देशभक्ति कभी प्रधानता नहीं रही। बॉलीवुड ने देशप्रेम की लौ जगाने वाली फिल्में बनाना कभी लाभ का सौदा नही समझा। यदि हम मनोज कुमार को नजरंदाज कर दें,तो सरकारें बदलने के साथ ही बॉलीवुड पर भी मौसमी बुखार चढ़ता रहा है। जिसे सर्वथा उचित नही कहा जा सकता। हम यह नही कहते कि हर फिल्मकार को सिर्फ देशभक्ति वाली फिल्में ही बनानी चाहिए। मगर बॉलीवुड में एक्शन,रोमांस,बदले की कहानी, व्यवस्था के खिलाफ,एंग्री यंग मैन, सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघाट करने वाली व्यावसायिक फिल्मों के साथ ही उन फिल्मों का भी निर्माण करना चाहिए,जिसमें देश की बात हो। देश व देश के लोकतंत्र को बचाए रखना भी हर आम नागरिक के साथ ही सिनेमा यानी कि बॉलीवुड का भी कर्तव्य है।
कुल मिलाकर हकीकत यही है कि बॉलीवुड के लिए देशप्रेम व देशभक्ति कभी प्रधानता नहीं रही। बॉलीवुड ने देशप्रेम की लौ जगाने वाली फिल्में बनाना कभी लाभ का सौदा नही समझा। यदि हम मनोज कुमार को नजरंदाज कर दें,तो सरकारें बदलने के साथ ही बॉलीवुड पर भी मौसमी बुखार चढ़ता रहा है। जिसे सर्वथा उचित नही कहा जा सकता। हम यह नही कहते कि हर फिल्मकार को सिर्फ देशभक्ति वाली फिल्में ही बनानी चाहिए। मगर बॉलीवुड में एक्शन,रोमांस,बदले की कहानी, व्यवस्था के खिलाफ,एंग्री यंग मैन, सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघाट करने वाली व्यावसायिक फिल्मों के साथ ही उन फिल्मों का भी निर्माण करना चाहिए,जिसमें देश की बात हो। देश व देश के लोकतंत्र को बचाए रखना भी हर आम नागरिक के साथ ही सिनेमा यानी कि बॉलीवुड का भी कर्तव्य है।
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