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नहीं बंद होता कभी बाॅलीवुड में खबरों का कारोबार! क्या आप कभी खबरों की तह में जाते हैं?

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By Mayapuri Desk
नहीं बंद होता कभी बाॅलीवुड में खबरों का कारोबार! क्या आप कभी खबरों की तह में जाते हैं?
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भले ही महामंदी, महाबंदी, महा भुखमरी की चर्चा पूरे सिनेमा उद्योग में चल रही हो, लेकिन खबरें बनने का कारोबार यहां कभी नहीं थमता। इस पेंडेमिक-टाईम में भी खबरों की फसल ने लहलहाना बंद नहीं किया है। पिछले हफ्ते की खबरें रही हैं- अमिताभ बच्चन ने पत्रकारों को पैसों से मदद भेजी। दिलीप कुमार नहीं रहे। नुसरत जहाँ ने अपने हिन्दू पति से अलग होने का फैसला किया और, कंगना रनौत ने आधे टैक्स भरने की गुहार लगाया।

आइये, सबसे पहले बात करते हैं अमिताभ द्वारा कोरोना त्रासदी में पत्रकारों को आर्थिक मदद किए जाने की। तमाम पत्रकार जो सचमुच तकलीफ में हैं, कहते हैं उनको तो पता तक नहीं है। सबसे ज्यादा अमिताभ को फेवर देने वाली फिल्म पत्रिका ‘मायापुरी’ कही जाती है। मायापुरी ने ना सिर्फ उनको सुपर स्टार बनने में, बीमार होने पर और विवादों के समय फेवर किया है बल्कि कई चुनावी मौकों पर उनको राष्ट्रपति-भारत रत्न दिए जाने का सिफारिशी आर्टिकल तक लिखा है। लेकिन, जब मदद देने की बात आई तब वह खुद को फेवर करने वाले पत्रकारों को भूल गये और मदद की राशि उनको भेजी गई जो उनके विरोध में लिखा करते थे। दिलीप कुमार अपने रूटीन चेकअप के लिए हिंन्दुजा हॉस्पिटल में एडमिट हुए तो उनके मरने की खबर सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गई।

दिलीप साहब के मरने की खबर चैथी बार फैली है। जानते हैं कि इन फेक खबरों का मतलब क्या है ? यह सब यूट्यूब जैसे माध्यमों से पैसा कमाने वालों का कारनामा है। नुसरत जहाँ आज बंगाल की सांसद हैं। बंगाली फिल्मों की हीरोइन हैं। एम.पी.बनने से पहले एक हिन्दू जैन लड़के से विवाह रचाकर सुर्खियां बटोरी थी, अब पति से अलग होने की सुर्खियों में हैं। इनकी खबरों का विश्लेषण करना ही बेकार है क्योंकि सब समझते हैं कि चुनाव से पहले की स्थिति क्या थी और आज धार्मिक दबाव का माहौल क्या है। कंगना रनौत जब भी कुछ कहती हैं, उसमंे कुछ ंमतलब होता है। वह टैक्स आधा चुका पाने की बात करती हैं साथ ही सरकार द्वारा टैक्स पर ब्याज लगाए जाने का भी समर्थन कर रही हैं। हद तो यह है कि वह अपने को ‘हाईपेड’ स्टार भी बता रही हैं। यानी- टैक्स के बहाने एक पैराग्राफ में वह बहुत कुछ कह गई हैं। अब समझिए आप उनकी न्यूज में कितने मतलब छिपे हैं?

तभी तो हम कहते हैं कि यह फिल्म व्यवसाय है जहाँ खबरों की फसल हमेशा लहलहाती है। सोचिए, क्या आप भी कभी उनकी खबरों का असली अर्थ समझ पाते हैं?

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