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आज भी‘‘चाणक्य’’प्रासंगिक है...

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By Mayapuri Desk
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आज भी‘‘चाणक्य’’प्रासंगिक है...

कोरोना की महामारी से निपटने के उपाय के तहत केंद्र सरकार ने लाॅक डाउन की घोषणा करने के साथ ही दूरदर्शन पर अस्सी व नब्बे के दशक के कुछ चर्चित ‘रामायण’,‘महाभारत’और ‘चाणक्य’ सहित कुछ दूसरे धारावाहिकों का  पुनः प्रसारण शुरू किया.तो कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इसे धर्म से जोड़कर विरोध भी जताया.कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि इन धारावाहिकों का प्रसारण कर सरकार देश को हिंदू राष्ट् की ओर ले जाने का प्रयास कर रही है.
मगर सच यह है कि इस तरह का विरोध करने वाले अपने अंर्तमन के डर से डरे हुए हैं.पहली बात ‘रामायण’ और ‘महाभारत’काल में हिंदू नहीं,बल्कि सनातन धर्म था.‘‘चाणक्य’’काल में बौद्ध और जैन धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर था.दूसरी बात धारावाहिक‘‘चाणक्य’’में किसी भी धर्म की कोई बात नहीं की गयी है. फिर भी इन धारावाहिकों के पुनः प्रसारण से कुछ लोग डरे हुए हैं? वास्तव में इनके डर की वजह यह है कि इन तीनों धारावाहिकों में बताया गया है कि देश का राजा/शासक कैसा होना चाहिए?देश की गद्दी कौन संभाल सकता है और कौन नहीं.मसलन-धारावाहिक ‘महाभारत’ की शुरूआत में राजा भरत कहते हैं-‘राजा वही होगा,जो सुयोग्य होगा, वंश के आधार पर नहीं.’और जब इस मर्यादा का उल्लंघन हुआ,तो महाभारत का युद्ध हुआ.‘‘रामायण’’में भी देश का राजा कैसा होना चाहिए.‘रामायण’में तो प्रजा के प्रति देश के राजा के कर्तव्य का ही चित्रण है.‘महाभारत’और ‘रामायण’दोनो में ही प्रजा का हित,आम इंसान के हित, सुख और खुशी की बात सोचना ही राजा का कर्तव्य बताया गया है.

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आज भी‘‘चाणक्य’’प्रासंगिक है...

‘‘चाणक्य’’तो अपने आप में राजा,राज्य व प्रजा के हितों की बात करने वाला राजनीति शास्त्र है.‘चाणक्य’राष्ट्वाद की बात करता है.पूरे राष्ट् को इकट्ठा करने यानी कि एकता के सूत्र में बांधने की बात करता है.देश के हर आम इंसान के सुख दुख का ख्याल रखना ही राजा का कर्तव्य बताता है.प्रजा रोटी खा ले,तब राजा रोटी खाए.यदि प्रजा रोटी न खाए,तो राजा को रोटी खाने का कोई हक नही है.और प्रजा भी ऐसी होनी चाहिए,जो अपने ऐसे राजा पर अपने प्राण न्योछावर करे.अब ऐसी प्रजा यानी कि आम जनता और राजा यानी कि शासक तभी पैदा होंगे,जब देश में लोगों को अच्छी परवरिश और अच्छी शिक्षा मिलेगी.जब देश में शिक्षक का सम्मान होगा.शिक्षक की बात को महत्व दिया जाएगा.

आज भी‘‘चाणक्य’’प्रासंगिक है...

‘चाणक्य’में जब यवन शासक अलेक्झेडर विभिन्‍न जनपदों में बंटे भारत पर आक्रमण करता है, तो उस वक्त पौरव राज अपने राज्य की प्रजा को अनाथ,आक्रांताओं के हाथों कष्ट सहने के लिए छोड़ जाते हैं,तो इससे उनके चाचा और पोरस राज को तकलीफ होती है.पर पोरस राज यानी कि केकई राज्य के शासक अलेक्झेडर से युद्ध करते हैं,पराजित होने पर भी कहते हैं कि उनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए,जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है.उसके बाद अलेक्झेडर अपने जीते हुए सभी जनपदों का उत्तरदायित्व पोरस राज को सौंप देते है.कालांतर में अलेक्झेडर की मृत्यू के उपरांत जब पौरव राज,पोरस राज के आकर माफी मांगते हुए अपना राज्य लौटाने की मांग करते हैं,तब पोरस राज उनसे कहते हैं,‘‘अपने देश की प्रजा से माफी माॅंग कर आओ,जिन्हे तुम अनाथ और मरने के लिए छोड़ गए थे.’इससे यह बात पता चलती है कि राजा को किस तरह अपनी प्रजा,आम जनमानस के सुख दुख का ख्याल रखना चाहिए.मगध में जब राजा धनानंद का अत्याचार बढ़ता है,तब आचार्य चाणक्य आम लोगों का नेतृत्व करते हैं.

यही वजह है कि वर्तमान समय में धारावाहिक‘‘चाणक्य’’की प्रासंगिकता बढ़ गयी है.आज हमारे देश में जो हालात हैं,कमोवेश वही हालात‘चाणक्य’काल में थे.वर्तमान समय में भारत में हर कोई अपने स्वार्थ के लिए सिर्फ कुर्सी हथियाने के कुचक्र में लगा हुआ है.परिणामतः सही काम करने वाले इंसान/प्रधानमंत्री को  काम करने नहीं दे रहे हैं.मगर देश में 65 प्रतिशत, 35 साल से कम उम्र वाले युवा वर्ग है,जो कि ‘चाणक्य’से प्रेरणा लेकर उनके जैसा बनना चाहता है.यही वजह है कि ‘रामायण’और‘महाभारत’के बाद ‘चाणक्य’इन दिनों सर्वाधिक देखा जाने वाला धारावाहिक बना हुआ है.

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