- शरद राय
सिनेमा समाज का दर्पण है और आज के युग में सिनेमा में वह ताकत है कि सरकारों की तख्ता पलट दे! लेकिन, दुर्भाग्य से इस ताकत को समझने के लिये ना कभी सरकार ने कोशिश की और ना ही सिनेमा में किसी प्रतिनिधि मंडल ने गंभीरता से किसी सरकार के सामने खुद को पेश किया। पहली बार हुआ है जब बॉलीवुड से गये किसी प्रतिनिधि मंडल ने सीधे प्रधानमंत्री के सामने अपनी बात रखी है और प्रधानमंत्री ने भी आश्वासन दिया है कि वे स्वयं देख-विदेश की यात्राओं में जाते हुये भारतीय-सिनेमा के महत्व को समझ पाये हैं और एक सिस्टम तैयार करवायेंगे जो फिल्म इंडस्ट्री के लिये ‘स्पेशल टीम’ के रूप में काम करेगी।
आमिर खान बेशक इस प्रतिनिधी मंडल का खास चेहरा थे। जिनको प्रधानमंत्री से सम्मानपूर्ण तव्वजो मिली है। आमिर खान के साथ इस फिल्मी टीम के प्रमुख चेहरे थे। राज कुमार हिरानी, सिद्धार्थ राय कपूर, रितेश सिधवानी, आनंद एल.राय, महावीर जैन आदि।
प्रधानमंत्री से मिलने जाने से पहले फिल्म इंडस्ट्री के प्रमुख निर्माता-निर्देशकों ने एक विस्तृत कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार की थी और तय किया था कि वे बिना अपने मकसद का ढ़िढ़ोंरा पीटे चुपचाप सीधे प्रधानमंत्री से अपनी बात कहेंगे। आमिर खान ने जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के करीबी समझे जाते हैं, वे भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे और उनकी पहल पर ही बिना मंत्रालयों की फाइल पलटे प्रधानमंत्री से इस प्रतिनिधि मंडल की बातचीत हो पायी है। तय समय से एक दिन पहले फिल्मी-टीम दिल्ली पहुंचकर एक होटल में टिकी थी और वार्ता में आश्वासन प्राप्त कर यह टीम चुपचाप बॉलीवुड लौट आयी है। खबर है टीम ने प्रधानमंत्री को बताया है कि प्रतिवर्ष 1000 फिल्मों को बाजार में उतारने और करीब 2 मिलियन डालर की वार्षिक कमाई देने वाली भारत के इस अग्रणी उद्योग बाजार को ‘उद्योग’ का पूर्ण दर्जा तक नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री ने भी स्वीकार किया है कि वे जहां कहीं भी जाते है खासकर विदेशों में भारतीय फिल्मों की बात जरूर सुन पाते हैं। प्रतिनिधि मंडल ने फिल्मवालों की तमाम समस्याओं को पीएम के सामने रखा है। जैसे- फिल्म इंडस्ट्री का स्टेटस, आर्थिक सहयोग का पर्याप्त साधन ना होना, स्टूडियो की खस्ता हालत, सिनेमा घरों की शार्टेज आदि। एक दबी चर्चा यह भी है कि बैंकों से लोन न मिलना, उपरोक्त स्थिति पर भी बातचीत की गई हैं। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया है कि वे चाहेंगे किसी विशेष व्यक्ति की देखरेख में एक ‘स्पेशल टीम’ का गठन किया जाए जो सिनेमा उद्योग से जुड़ी समस्याओं पर कार्य करे। टीम के सभी सदस्य जो इस वार्ता में शामिल होने गये थे, संतुष्ट होकर वापस आये हैं। देखने वाली बात होगी कि सरकार क्या कदम उठाती हैं।
ऐसा नहीं है कि पहली बार सितारे सरकार से रूबरू होने गये थे और अपना एजेन्डा पेश किए हैं। इससे पहले भी कई बार पहल हुई है। इस बार पहल सितारों से और मंत्रियों से मिलने के आकर्षण में दबकर रह गई है और हर बार मुद्दा फाइलों में छुप गया है। पंडित नेहरू के समय से स्टार-नेता मिलन का फलसफा चलता आ रहा है। बहुत बार सितारें राज्य सभा के द्वार से सरकार में शामिल हुए है और इसबार की सरकार में तो सीधे कई सितारे पर्लियामेंट का हिस्सा हैं। मगर फिर वही जब वे संसद में बैठते हैं, देखने की चीज बनकर रह जाते हैं, बोलते तक नहीं! पहली बार हुआ है जब आमिर खान के नेतृत्व में फिल्म वाले प्रधानमंत्री से सीधे अपनी बात कहकर आये हैं और आश्वासन लेकर आये हैं। देखिये, नई पहल क्या गुल खिलाती हैं।
प्रधानमंत्री वार्ता में : मायापुरी के ही थे सवाल
कुछ समय पहले प्रधानमंत्री के “मन की बात“ कार्यक्रम पर हमने मायापुरी संपादकीय लिखा था। अंक 2283 में हमने कई सवाल उठाते हुए लिखा था कि PM के ‘मन की बात’ में 31000 सवाल पूछे जा चुके हैं, जिनमें एक भी सवाल फ़िल्म इंडस्ट्री को लेकर नहीं हैं, क्यों ? कोई फ़िल्म वाला प्रधानमंत्री से सीधे क्यों नहीं पूछता की इंडस्ट्री कितनी तकलीफ में रहती है।...हमे खुशी है कि PM से मिलने गए डेलीगेट्स ने वही सवाल प्रधानमंत्री के सामने रखे हैं। सचमुच हमारी कोशिश है कि आवाज कहीं से भी उठे, आवाज उठनी चाहिए।