शाहरुख खान को अमेरिका के एक एयरपोर्ट पर जब तलाशी लेते हुए पुकारा गया था- ‘ये इंडियन!’ तब उनके चेहरे पर जो भाव आया था, उसके लिए उनकी जुबान पर एक ही शब्द आया था- ‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी!’ यह शब्द तब और खलता है जब हम ‘इंडियन’ शब्द का डिक्शनरी-अर्थ जान जाते हैं। इसे अंग्रेजों की देन समझें या विदेशी अक्रान्ताओं की विकृत सोच की पराकाष्ठा, जो भी हो, अंग्रेजी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में (पेज 789 पर) इंडियन शब्द का अर्थ लिखा है- old Fashioned and criminal peoples (यानि-असभ्य, पिछड़े और घिसेपिटे विचारों वाले अपराधी प्रवृत्ति के लोग)! इस नाम की व्याख्या पर शायद ही किसी फिल्मकार का ध्यान गया हो... हम 15 अगस्त की आजादी का एहसास करने वालों को स्मरण दिलाने के लिए ही यह बात जिक्र के रूप में यहां ला रहे हैं। फिल्मकारों के लिए यह रोचक विषय हो सकता है।
अमेरिका के नागरिक को ‘अमेरिकन’ जापान के नागरिक को ‘जापानी’, नेपाल के लोगों को ‘नेपाली’ और यहां तक कि हमारे पड़ोसी-शत्रु पाकिस्तान के नागरिकों को ‘पाकिस्तानी’ कहा जाता है। क्या कभी हमने सोचा कि जब हर देश के लोग उनके देश के नाम से संबोधित होते हैं तो हम भारतीयों को ‘इंडियन’ क्यों बुलाया जाता है, जिस देश के महिमा मंडन में फिल्मकार ये लाइने देते हों- ‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी...’, ‘...झांकी हिन्दुस्तान की’, ‘शून्य दिया है भारत ने...’ ‘मां तुझे सलाम...’, ‘जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती’ है बसेरा, वो भारत देश है मेरा...’। जैसे गीतों के रचयिताओं को सादर स्मरण करते हुए हम कहेंगे कि इस देश के लोग विदेशों में अपने असली परिचय से ना पुकारे जाएं तो हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की सोच में कहीं कुछ भूल है। हम इस भूल को क्यों नहीं सुधार सकते? अगर बॉम्बे का नाम बदलकर ‘मुंबई’, मद्रास का नाम ‘चेन्नई’, कलकत्ता का नाम ‘कोलकाता’ और बंग्लौर का नाम ‘बैगलुरू’ किया जा सकता है तो अपने देश का नाम ‘भारत’ (‘हिन्दुस्तान’) क्यों नहीं कर सकते? किसी देश के कई नाम नहीं होने चाहिए। फिल्म वाले ही इस मुहिम को चलाने की पहल कर सकते हैं। सुन रहे हो मनोज कुमार जैसी सोच वाले निर्माताओं...?
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