Advertisment

मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

author-image
By Mayapuri Desk
New Update
मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

मैंने घर पर रहने और लिखने के एक एक्सपेरिमेंट में असफल होने लगा तो। मैं अपनी केयरटेकर ‘पुष्पा’ की अनुमति के साथ और अपने युवा दोस्तों ‘बिहान’ और ‘नितिन’ के सहयोग से एक ऑटो में बैठकर जुहू के लिए रवाना हुआ, जहाँ हजारों लोग विशेष रूप से रविवार के दिन दुनिया की चिंताओं को भूलने के लिए जाते हैं और मैं जुहू में अपने पैरों के उन निशान खोजने के लिए गया जो मैंने 50 साल पहले वहा छोड़े थे!
-अली पीटर जॉन

मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

जुहू पहले कि तरह एक स्वर्ग जैसा नहीं रहा था क्योंकि कुछ सेल्फिश लोगों ने इसे नरक में बदल दिया है और अब वह ऐसे दिखावा करते है कि जैसे उन्होंने इसे स्वर्ग बनाया हो। मैं अब चलते- चलते उस स्थान पर पहुँचता हूँ जहाँ मेरे गुरु के.ए.अब्बास फिलोमेना कॉटेज नामक एक पुराने कॉटेज में रहा करते थे! यहीं पर अब्बास साहब दो बेडरूम वाले घर में अपनी पूरी सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे और इसके किराए के रूप में 100 रुपये देते थे! उनके घर के ठीक पीछे नॉर्थ बॉम्बे हाउसिंग सोसाइटी है जहाँ अब्बास साहब ने उसकी 5 वीं मंजिल पर अपना ऑफिस खोला हुआ था, जो उनके दोस्त बहुत ही शानदार और बहुत ही बेहतरीन डायलॉग राइटर इंद्र राज आनंद ने उन्हें गिफ्ट किया था। यह इस ऑफिस में ही था कि मैं पहली बार अब्बास साहब से मिला था और यही मैं अमिताभ बच्चन नामक एक स्ट्रगलर से भी मिला था। यह इस ऑफिस में ही था कि अब्बास साहब से मिलने के लिए राज कपूर पाँच मंजिल तक चढ़ के आए थे। और अब्बास साहब ने उन्हें शराब पीये होने के कारण भेज दिया था, इन जगहों के बारे में मेरे पास कितनी और यादें हैं? मैं अपने जीवन के अंत तक इनके बारे में बात कर सकता हूँ। अब्बास साहब अपने जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान जिस फ्लैट में रहते थे, उसे किसी तरह के संग्रह में बदल दिया जाना था, लेकिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ इसकी घोषणा के बाद फिर कुछ भी नहीं सुना गया। मुझे नहीं पता कि क्यों। उनके सम्मान में मैंने जो बोर्ड लगवाया था, उसमें दरारें पड़ने लगी हैं और इस पर लिखे शब्दों के मिटने के चांसेस बने हुए है। अब्बास साहब के सम्मान में मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा लगाया गया बोर्ड पर उनके नाम को ख्वाजा अब्बास लिखकर उनकी स्मृति का अपमान किया गया है और इस बारे में कई बार शिकायत करने के बाद भी कुछ नहीं किया गया हैं। पेड़ की सूखी पत्तियां जो अब्बास साहब के जीवन की गवाह थीं, वे बोर्ड के पास जमीं पर गिरी हुई थीं जैसे कि उस महापुरुष के सम्मान में जिसे उन्होंने देखा था!मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

मेरे दिल भारी हो गया था और मेरा दिमाग यादों से भर गया था, मैं अपने ऑटो में बलराज साहनी के टूटे हुए घर और समुद्र तट की और बढ़ा। यह एक रन डाउन स्थिति में है और कहा जाता है कि महान अभिनेता के परिजनों के बीच इस पर मुकदमा चल रहा है। इस घर को अभिनेता ने अपने सिद्धांतों (प्रिंसिपल्स) के खिलाफ जाकर बनाया था (वे एक साम्यवादी प्रैक्टसिंग कम्युनिस्ट थे)। उन्होंने इसका नाम ‘इकराम’ (प्रार्थना या उपहार) रखा था। बंगला उनके लिए सकारात्मक रूप से अशुभ साबित हुआ था। नए घर में परिवार के बसते ही एक युवा नौकरानी ने आत्महत्या कर ली थी। साहनी की खूबसूरत बेटी ने भी आत्महत्या कर ली, इससे पहले साहनी ने अपनी आखिरी फिल्म ‘गर्म हवा’ की थी। और साहनी की खुद की मौत उसी घर में दिल का दौरा पड़ने से हुई जब वह केवल 56 वर्ष के थे! उनके बेटे परीक्षित साहनी ने ‘इकराम’ को छोड दिया और अपनी पत्नी और दो छोटी बेटियों के साथ पिरोजा कोर्ट में अपने नए घर में शिफ्ट हो गए थे। साहनी की दूसरी पत्नी संतोष ‘इकराम’ में अपनी अंतिम साँस तक रहती रही थी! बंगला अब साहनी की इकलौती जीवित बेटी, सनोबर के बीच चल रहे मुकदमे का सामान है, सनोबर जो इस टूटे-फूटे घर में रहना जारी रखती है और परीक्षित की बेटियों के साथ इसके कब्जे के लिए लड़ते है जिन्होंने अब हार मान ली है और कहा है कि अब उनका अपने पिता के घर से कोई लेना देना नहीं है। बंगले को देखना अब किसी दर्दनाक सजा की तरह है। और मुझे आश्चर्य है कि इस घर के बारे में भविष्य में क्या लिखा हैं।मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

साहनी के बंगले के ठीक बगल में एक इमारत थी जो साहिर लुधियानवी की थी, क्योंकि वह वर्सोवा के सेवन बंगला इलाके में अलग-अलग घरों में रहते थे। साहिर की 5 वीं मंजिल के अपार्टमेंट में सबसे अच्छी पार्टियाँ और मुशायरे हुआ करते थे और जहाँ उनका लेखन कॉर्नर भी था जहाँ उन्होंने अपने मास्टरपीएस जैसे “परछाइयाँ” लिखीं, जो उनके द्वारा निर्मित बिलिन्डिंग का नाम है! यह वह स्थान भी था जहां से उनके शरीर को सांताक्रूज कबरस्तान ले जाया गया था और एक कोने में दफन किया गया था जहां गरीब से गरीब व्यक्ति को दफनाया जाता था और उनकी कब्र अन्य लोगों को बेच दी गई थी। लिंकिंग रोड पर उनके लिए एक स्मारक बनाया गया था, लेकिन अगली सुबह ही उसे बर्बाद कर दिया गया था। उनका अपार्टमेंट एक बार केवल उनकी कीमती किताबों और प्रतिष्ठित पुरस्कारों को देखने के लिए खोला गया था। मैंने इस तबाही को व्यक्तिगत रूप से देखा था और मेरी इच्छा है कि मुझे इस तरह के दृश्यों को फिर से न देखना पड़े क्योंकि वे मुझे इस बात का एहसास कराते हैं कि वे एक महान युद्ध के शिकार की तरह हैं जो पहले कभी नहीं या शायद ही कभी लड़ा गया हों।मैं अचानक अपने गुरु, के.ए.अब्बास,बलराज साहनी और  साहिर लुधियानवी के समय में वापस चला गया

बाहर, समुद्र ऐसा लगता है जैसे कोई आग हो। या, साहिर की सौवीं जयंती पर समुंदर रों रहा है जिससे उसकी आंखे लाल हो गई थी?

अनु-छवि शर्मा

Advertisment
Latest Stories