मैं मौली के प्यार में पागल था। हम एक ही कॉलेज (भावन) में थे। जब तक हमने अपना इंटर पूरा किया तब तक सब ठीक था और उसने आगे पढ़ने के लिए हिस्ट्री ली और मैंने इंग्लिश लिटरेचर ली और हमें डिफरेंट क्लासेज को अटेंड करना पड़ता था। -अली पीटर जॉन
जब मैं अपना सीनियर बीए कर रहा था तब मुझे उषा अय्यर सिद्धमूर्ति नाम की एक सुंदर साउथ इंडियन लड़की मिली। उसकी सादगी और उसकी मासूमियत ने मुझे अपना दीवाना बना दिया था। लेकिन वह मेरे साथ बहुत दोस्ताना रही और हमने अपना अधिकांश समय एक साथ बिताया और इस बात की अफवाह फैली हुई थी कि हम प्यार में थे। और मैं एक गरीब लड़का था, जो छात्रवृत्ति की मदद से पढ़ाई करता था, उसके लिए कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन वह अक्सर मुझे चाय पिलाने के लिए कैंटीन में ले जाया करती थी, जो 25 नया पैसे में एक कप मिला करती थी। और कैंटीन में उसके साथ बिताए वो पल मेरे लिए आनंद के पल थे।
हमारी दोस्ती कुछ और दिलचस्प हो गई और वह एक दिन मुझे एक विशिष्ट दक्षिण भारतीय इलाके में अपने घर ले गई और कई बुजुर्ग महिलाओं ने मुझे घेर लिया और बाते करने लगीं और तमिल में बातें कर रही थी और मुझे एक कप में एक कप कॉफी की पेशकश की, जिसे मैं उनके घर में होने के मेरे उत्साह के कारण कॉफी को पकड़ नहीं सका।
समय बीतता गया और मुझे अपने एमए की कक्षाओं में शामिल होना पड़ा, जो चर्चगेट में यूनिवर्सिटी क्लब हाउस में आयोजित की गई थीं, उस समय मैंने कॉलेज पत्रिका के लिए एक लेख लिखा था, जो मेरे जीवन में तीन महिलाओं के बारे में था और उनमें से एक उषा थी और प्रोफेसर एस कंदस्वामी ने लेख पर प्रतिबंध लगा दिया और यहां तक कि उषा के परिवार को भी मेरे लेख के बारे में बताया। मैं उषा से उस घटना के एक साल से ज्यादा समय तक नहीं मिला था।
मैं एक आवारागर्द में बदल गया था और अपनी छवि को जोड़ने के लिए, मैंने एक अग्रणी पत्रिका के लिए एक दलाल का इंटरव्यू लिया था, जिसे ‘डेबोनियर’ कहा जाता है, लेख ने सनसनी पैदा कर दी थी और पत्रिका को एक हिट बना दिया था और मुझे पहली बार सफलता का स्वाद चखने को मिला था। मुझे इसके लिए 150 रुपये का भुगतान भी किया गया था जो मुझे एक बैंक में जमा करना था जो मैंने किया था और उस चेक के बारे में मुझसे फिर से कभी कोई पूछताछ नहीं की गई थी।
मैं एक शाम विश्वविद्यालय के भवन के बाहर से जा रहा था जब मैंने उषा को देखा और मेरा दिल बहुत तेज धड़क रहा था और फिर उसने मुझे बुलाया और मैं तब लगभग मर ही गया था। उसने मुझे यूनिवर्सिटी कैंटीन में एक कप चाय की ऑफर की। मुझे पता था कि उसे पता चल जाएगा कि मेरे पास कोई पैसा नहीं है और हमने भावांस के कैंपस में उन खूबसूरत दिनों के बारे में बात की, उसने बिल का भुगतान किया और फिर हमने एक दूसरे को अलविदा बोला।
उस शाम मैंने बिना टिकट के अंधेरी की यात्रा की और वो लिखा जो मुझे लगा और यह हमारी मुलाकात के बारे में एक कविता थी। नियति की हमारी अपनी योजनाएँ थीं। मेरा दोस्त जेसुदास एमवी कॉलेज में एक छात्र था और मैंने उसे उषा को एक नोट में उस कविता को देने के लिए कहा और उसने वही किया जो मैंने उसे करने के लिए कहा था, क्योंकि वह मेरा एक अच्छा दोस्त था। और फिर मैं इस बारे में सब भूल गया था।
जब तक मैं एक शाम घर पहुँच गया और मेरा भाई रॉय जो अपनी व्हिस्की पी रहा था, ने मुझसे कहा, “लफड़े में क्यों पड़ता है, ये सीबीआई वाले तुमको ढूँढने क्यों आये थे?” मुझे लगा कि वह नशे में था या मजाक कर रहा था, लेकिन वह बहुत गंभीर था। मैंने उनसे पूछा कि वे किस तरह की कार में आए थे और वे कितने आदमी थे। उन्होंने कहा कि वह एक काले रंग की एम्बेसडर कार में आए थे और वह चार लंबे पुरुष थे।
अगली सुबह मैंने अब्बास साहब से पूछा कि सीबीआई को मेरे झोपड़े में आने में क्या दिलचस्पी थी और उन्होंने हंसते हुए कहा, “सीबीआई को और कोई काम नहीं है क्या?”
मैंने तब अपने जैसो के रूप में अपने दिमाग को नियुक्त किया और कहानी को एक साथ रखने की कोशिश की। और एक फ्लैश में ही सब कुछ स्पष्ट था। उषा ने मुझे बताया था कि उसके पिता के पास एक ब्लैक एम्बेसडर कार थी और उसमे उसके तीन भाई थे। मुझे चैन आया।
लेकिन अगली सुबह मैं राजा से मिला जो उषा का पड़ोसी था और उसने मुझे रोका और मुझसे पूछा, “पीटर तूने उषा के साथ क्या किया यार?” मैंने उन्हें उषा को भेजे गए नोट के बारे में बताया जिसमे कविता थी, और राजा ने कहा, “वो तेरी पोएम ने उषा की जिन्दगी बदतर कर दी, तेरी पोएम उसके बाप केे हाथ में पड़ गई और उसने उसी दिन उषा को नौकरी छोड़ने के लिए कहा और दोपहर की फ्लाइट से चेन्नई भेज दिया, और सुना है उसने उषा के लिए कोई लड़का भी देख लिया है और उसकी शादी अगले महीने होने वाली है।”
और एक महीने के भीतर उषा ने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से शादी कर ली थी और 50 साल बाद भी मैं आज भी उस बात से आश्चर्यचकित हूं। मेरी खूबसूरत उषा के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए मैं दोषी हूं।
अनु- छवि शर्मा