इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल..! By Sharad Rai 04 Sep 2018 | एडिट 04 Sep 2018 22:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर बॉलीवुड की धरोहरों में से एक आर के स्टूडियो भी ध्वस्त होने जा रहा है। 70 साल पुराने इस स्टूडियो में गत दिनों मशहूर फिल्मकार - अभिनेता स्व. राज कपूर के परिवार के लोगों (श्रीमती कृष्णा राज कपूर, रणधीर कपूर, रिषी कपूर, राजीव कपूर, रीतू नंदा और रीमा जैन) ने विजिट किया। उनके अनुसार अब इस स्टूडियो को बरकरार रखने की जरूरत नहीं रह गई है। यानी-दिन आ गये, जब मुंबई के चेम्बूर स्थित स्टूडियो के इस लैंडमार्क पर बुलडोजर चलेगा! यादों में रह जाएगा आर.के. स्टूडियो! ‘पूंजीवादी बुलडोजर’ तमाम चीजों को बड़ी क्रूरता के साथ रौंदता हुआ आगे बढ़ रहा है। पुराना कोई मकान तोड़कर बहुमंजिला इमारत बनाने के धंधे का शिकार हो गया है आर.के. भी, जो अब इतिहास के पन्नों में या लोगों की यादों में ही मिल पायेगा। पृथ्वीराज कपूर 1929 में मुंबई आये, तब राजकपूर 4-5 साल के ही थे। लगभग 9 मूक फिल्मों में अभिनय करने के बाद पृथ्वीराज ‘आलमआरा’ (1931) के साथ ही बड़े हीरो बन गये। नाटकों से जुड़ाव के चलते, बाद में ‘पृथ्वी थिएटर’ की स्थापना की, 15 सालों तक उसे खुद चलाया, 130 शहरों में घूमकर नाटकों के 2700 शोज किये। उनके परिवार ने फिल्म उद्योग को कई बड़े स्टार्स दिए हैं। राज कपूर ने दस साल की उम्र में ‘इंकलाब’ में बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी। 1947 से फिल्म निर्माण करने लगे। ‘आग’ एवं ‘बरसात’ फिल्में बना तो ली, लेकिन तीव्र इच्छा थी कि अपना स्टूडियो होना चाहिए। 1948 में, विजयादशमी के दिन ‘आर.के. स्टूडियो’ के एक फ्लोर का निर्माण शुरू किया, और ‘आवारा’ का बहुचर्चित ‘स्वप्न दृश्य’ अपने इसी स्टूडियो में फिल्माया। ‘आवारा’ फिल्म जितने रूपये में बनी थी उतने रूपये इस स्वप्न दृश्य में खर्च किए गए थे अगले दो दशकों तक राजकपूर फिल्में बनाते गये। स्टूडियो को बढ़ाते गये। राजकपूर ने करीब 65 फिल्मों में काम किया, इनमें से करीब 15 नरगिस के साथ थीं। एक दौर हुआ करता था जब बंबई घूमने आया हर व्यक्ति आर.के. स्टूडियो के सामने से होकर गुजरता था, जैसे कि अभी कोई कला प्रेमी ‘पृथ्वी थिएटर’ देखने जरूर जाता है। होली के दिन आर.के. स्टूडियो में होली खेलने का आमंत्रण पाने के लिए बड़े-बड़े फिल्मवाले लालायित रहा करते थे। आर.के. स्टूडियो का निर्माण होने से पहले यहां एक बर्तन बनाने का कारखाना था, जो एक मारवाड़ी ने लगाया था। कारखाने के कुछ दूरी पर एक कसाईखाना खुलने के बाद मारवाड़ी ने औने पौने दामों में अपने कारखाने को बेचकर नासिक जाने का फैसला किया, मारवाड़ी से कारखाने की जमीन खरीदने का काम राज कपूर के दोस्त इब्राहिम अली विलाल ने किया था, जो बंटवारे के बाद पेशावर से मुंबई आकर बसे थे कहा जाता है कि इब्राहिम ने राज कपूर से इस जमीन के लिए पैसे लेने से मना कर दिया था। आर.के. में ‘मेरा नाम जोकर’ तक किसी और निर्माता की फिल्म के लिए शूटिंग की इजाजत नहीं थी, लेकिन बाद में इसे सबके लिए खोल दिया गया। तो क्या हर महत्वपूर्ण चीज और जगह की भी एक उम्र हुआ करती है... आदमी की तरह!! सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है...फिर भी किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं! इतिहास, परंपरा, संस्कृति को बचाने का किंचित मात्र प्रयास नहीं! शायद यही सोचकर राजकपूर अपनी एक फिल्म में गाना फिल्मा गये थे- ‘‘इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल!’’ - संपादक #bollywood #Raj kapoor #RK Studio #RK Films हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article