स्वर लता में स्वर के सातों सुरों कि रानी से कुछ सुरीली बातें By Mayapuri Desk 09 Mar 2021 | एडिट 09 Mar 2021 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर दस साल पहले एक गायिका द्वारा गाए गए गीतों की संख्या ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। उसने एक सार्वजनिक घोषणा की थी कि वह राष्ट्रीय पुरस्कारों को छोड़कर किसी भी निजी पुरस्कार को स्वीकार नहीं करेगी, और उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया जो कि भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। वह राज्यसभा के लिए नोमिनेट भी हुईं थी जहाँ से वह बेहद निराश होकर लौटीं क्योंकि उन्हें लगा कि सदन में विभिन्न नेताओं के द्वारा उठाई गई आवाजों में उनकी आवाज नहीं सुनी गई और उनमें से अधिकांश नेताओं ने सड़क पर गुंडों की तरह व्यवहार किया था। वह अस्सी के दशक में थीं जब उन्होंने अपने द्वारा गाए गए गीतों की संख्या में भारी कटौती की थी। आखिरी बार उन्होंने यश चोपड़ा (जिन्हें वह अपना छोटा भाई मानती थी) की फिल्म ‘वीर ज़ारा’ के लिए गीत गए थे, जिसमें यश चाहते थे कि वे सभी फीमले सोंग्स गाएं, चाहे वह दो हीरोईन के लिए हो या घर की नौकरानी के लिए, क्योंकि यश जो उनकी आवाज के बिना फिल्म बनाने के बारे में कभी नहीं सोच सकते थे, उन्हें लग रहा था कि वह फिर कभी फिल्म नहीं बनाएंगे, लेकिन उन्होंने उनकी आवाज के बिना अपनी आखिरी फिल्म ‘जब तक है जान’ बनाई थी और इस फिल्म की रिलीज के तुरंत बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी। लता मंगेशकर एक वैरागी का जीवन जी रही हैं और अपना ज्यादातर समय पेडर रोड पर ‘प्रभु कुंज’ में अपने कमरे में बिताती हैं, जहाँ वे साठ वर्षों से अधिक समय से अपने परिवार के साथ रह रही हैं। दूसरी तरफ उनकी छोटी बेहन और उनकी ही तरह समान रूप से लोकप्रिय और सफल गायिका, आशा भोसले परिवार को छोड़कर और लोअर परेल में सबसे महंगे और विशेष अपार्टमेंट में से एक की एक पूरी मंजिल में रह रही हैं। आशा भोसले जो हमेशा से अपनी बहन और परिवार के प्रति सम्मानजनक नहीं होने के कारण खबरों में रही हैं। लता काफी समय से हिंदी फिल्मों के लिए नहीं गा रही हैं, लेकिन वह इंडस्ट्री में जो कुछ भी नया हो रहा है विशेष रूप से म्यूजिक के क्षेत्र में वह इसके टच में रहती हैं। वह उन स्टैंडर्ड्स के बारे में मुखर रही है, जिनसे हिंदी फिल्म संगीत में गिरावट आई है। और जब वह अपनी दुनिया में खुश थी, तो उन्होंने अपने भाई पंडित हृदयनाथ मंगेशकर के लिए एक बार कुछ प्राइवेट क्लासिकल सोंग्स रिकॉर्ड किए थे, वह इस बात से बहुत परेशान हैं कि इन दिनों हमारे फिल्म निर्माता उनके, उनकी बहनों और यहां तक कि अन्य गायकों द्वारा गए अमर गीतों के ‘रीक्रिएशन’ के लिए क्यों कहते हैं। फिल्म निर्माताओं जिन्होंने उन्हें परेशान किया है और यहां तक कि इंद्र कुमार जैसे एक निर्देशक और अजय देवगन जैसे स्टार भी उनके लिए तैयार हैं और उनसे माफी मांगने की योजना बना रहे हैं, लेकिन उनके परिवार का कहना है कि वह अकेले रहना पसंद करती है और अपने जीवन के इस पड़ाव में अनावश्यक विवादों में नहीं पड़ती है (वह अब 91 की हो गई है)। और अब इस पॉइंट पर, मुझे याद आता है कि मैं आखिरी बार मैं उनसे ‘म्हाडा’, चार बंगलों में एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो में मिला था, जिस स्टूडियो का नाम उनके सम्मान के रूप में ‘श्रीलता’ रखा गया था। वह महान आत्माओं में एक है, वह तब एक गीत रिकॉर्ड कर रही थी जिसे वह अपने दिल से रिकॉर्ड नहीं कर रही थी क्योंकि यह राज कपूर की फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के टाइटल गीत के ‘रीक्रिएशन’ जैसा था। उन्होंने मुझे बताया कि वह केवल संगीत निर्देशक, राम-लक्ष्मण की मदद करने के लिए इस गीत को कर रही थी, जिनके साथ उन्होंने राजश्री के कुछ बड़े गीतों जैसे ‘मंैने प्यार किया’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में कुछ बेहतरीन गाने भी रिकॉर्ड किए हुए थे। उस शाम के दौरान, मुझे उनके मिनी-फ्लैशबैक में जाने की खुशी थी। उन्होंने कहा कि कैसे उनके पिता, पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने उन्हें और उनके भाई-बहनों को संगीत सीखने के लिए और यहां तक कि मराठी थिएटर में अभिनय की मूल बातें भी बताईं थी। जब वह आठ साल की थी तब तक उन्हें अपने पिता के सिंगिंग पार्ट में महारत हासिल थी और एक गायक के रूप में वह किसी भी प्रतियोगिता का सामना कर सकती थी। उनके पिता, हालाँकि बहुत कम उम्र में ही मर गए थे और अपने परिवार को पालने के लिए लता को सारी जिम्मेदारी उठानी पड़ी थी जिसमें उनकी पत्नी माई और उनकी बहनें और उनका एकमात्र भाई शामिल था। उन्हें अभिनय करने के लिए फाइनेंसियल सर्कम्स्टैन्सज द्वारा मजबूर होना पड़ा था और उन्होंने एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में अपनी शुरूआत की, जो तब भी गा सकती थी जब वह केवल बारह वर्ष की थी और उन्होंने पाँच फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें वह ज्यादातर नायक या नायिका की बहन की भूमिका निभाया करती थी। उन्होंने अभिनय में अपनी रुचि खो दी क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि अभिनय उनके लिए नहीं था और फिर उन्होंने गायन में अपना कैरियर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया और यह उनका जुनून ही था जो उन्हें मुंबई ले आया और जब नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसे अन्य स्ट्रोंग सिंगर्स का राज था तो उन्हें अपनी ‘पतली’ आवाज होने के कारण शुरुआत में काफी संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन गुलाम हैदर, नौशाद और खेमचंद प्रकाश जैसे संगीत निर्देशक थे जिन्होंने उन्हें गंभीरता से लिया और यह उनके एक शानदार करियर की शुरूआत ही थी जिसे अगले साठ साल और अब अनंत काल तक जारी रहना था। उन्होंने कहा था कि वह सही लोगों और सही अवसरों को पाकर बहुत खुश किस्मत थी और उनका मानना था कि क्रिएटिव माइंड के लिए सही दिशा में आगे बढ़ना बहुत जरूरी होता है। उस शाम ‘श्री लता’ में, वह कुछ ऐसी सच्चाइयों के साथ सामने आई, जिनके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे उन्हें एक बार पाकिस्तान में एक शो करने के लिए इनवाइट किया गया था और इस निर्णय को लेने में उन्हें कितना समय लगा था और आयोजक उनकी सुरक्षा के बारे में तब इनसिक्योर हो गए जब उन्होंने लोगों के बीच उत्साह को देखा उनके पाकिस्तान आने की बात सुन कर। शो को आखिरकार बंद कर दिया गया था और उन्होंने महसूस किया कि अब कोई लता मंगेशकर शो नहीं होगा और अब यह सकारात्मक रूप से कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में या इस मामले के लिए कहीं ओर लता मंगेशकर का शो नहीं हो सकता। उन्होंने नरगिस, मीना कुमारी, नूतन और साधना के नामों का उल्लेख किया और एक निश्चित सीमा तक सायरा बानो के बारे में कहा, जिन्हें वह गाने के लिए उत्साहित महसूस करती थीं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने जो भी गाने गाए, उन्हें चुनने में वह हमेशा से बहुत चूजी रही है। उनके लिए, हमेशा सबसे पहले लिरिक्स मेटर करता था, फिर म्यूजिक कंपोजर और फिर इसके बाद अभिनेत्री और फिर वह सिचुएशन जिसमें साॅग को पिक्चराइज किया जाना था। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पसंदीदा निर्देशक राज कपूर के कुछ गानों के बोलों के साथ शो किया था, विशेष रूप से ‘का करू राम मुझे बुड्ढा मिल गया’ गीत जिसे वैजयंतीमाला पर राज कपूर की ‘संगम’ में एक स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहने पूल में तैरते हुए चित्रित किया जाना था। जिन गीतकारों के साथ काम करना उन्हें पसंद था, वे थे साहिर लुधियानवी, शैलेंद्र, मजरूह सुल्तानपुरी और गुलजार। अपने पसंदीदा रचनाकारों में वह खेमचंद प्रकाश, नौशाद, गुलाम मोहम्मद और संगीतकार की नई पीढ़ी के बीच, केवल ए. आर. रहमान के साथ वह काम करना पसंद करती थी। लताजी तब एक सुर्पि्रस के साथ सामने आईं जब उन्होंने कहा कि हृषिकेश मुखर्जी उन्हें ‘आनंद’ का संगीतकार बनाना चाहते थे। वह कुछ देर के लिए लालच में आ गई थी, लेकिन आखिरकार उन्होंने गिवअप कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि वह इस जिम्मेदारी भरे काम को नहीं कर पाएगी। उन्होंने निर्माता बनने की भी कोशिश की थी और मराठी में तीन फिल्में भी बनाई थीं और गुलजार की ‘लेकिन’ प्रेजेंट की थी, लेकिन उन्होंने देखा कि प्रोडक्शन उनके लिए सही नहीं था और ‘लेकिन’ के बाद उन्होंने प्रोडक्शन में काम नहीं किया लताजी न केवल भारत और पाकिस्तान में, बल्कि दुनिया भर में संगीत के तेजी से गिरते स्टैण्डर्ड से बहुत परेशान हैं। “ऐसे क्यों होता है कि एक ही वक्त चारो ओर संगीत का दर्जा इतना क्यों गिरता है? हमने तो वो सुनेहरा जमाना देखा है, हम खुश नसीब है। लेकिन बहुत तकलीफ होती है जब संगीत और कविता या शायरी बीमार होते जा रहे है।” लताजी अब भी 91 कि उमर में एक उत्साही प्रशंसक हो सकती हैं। सभी युवा गायकों में से, वह केवल सोनू निगम को पसंद करती हैं और उन्होंने इसे साबित किया जब आखिरी बार उन्होंने अपने भाई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया और उन्हें पता था कि सोनू निगम को गाने का एक पूरा सेगमेंट गाना था, उसने इस शो में भाग लेने के का एक लक्ष्य बनाया और वहाँ केवल तब तक रुकी रही जब तक कि सोनू निगम ने उस शाम के खतम होने तक अपने गाने नहीं गाए और फिर तबियत खराब होने की शिकायत करते हुए सभागार से चले गई थी। वह इसके बाद कभी किसी शो में शामिल नहीं गई, पंडित दीनानाथ मंगेशकर को विले पार्ले में उनके भाई द्वारा आयोजित शो को सम्मानित करने के लिए आयोजित एनुअल शो में भी नहीं, जो वह 14 साल से अपने दोस्त अविनाश प्रभावालकर के साथ कर रही थी। वह किसी भी परिस्थिति में अपने कमरे से बाहर नहीं आ रही है और उनकी बहन उषा मंगेशकर अपने ‘दीदी’ को परेशान करने वालो को रोकने के लिए उनके कमरे के बाहर ‘रक्षक’ बनकर खड़ी है। लेकिन, जो मुझे आश्चर्यचकित करता है, वह यह है कि उनके पीएस को सांत्वना देने के लिए बरती जाने वाली सभी सावधानियों के बावजूद, वह भाजपा के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस और श्री अमित शाह से मिलने के लिए पूरी तरह से ठीक और तैयार थी। यह वास्तव में मुझे पीड़ा देता है जब मैं उन लीजेंडस को देखता हूं जिन्हें मैं बहुत करीब से देख रहा हूं, लताजी, उनके ‘भाई’, दिलीप कुमार, मनोज कुमार और चंद्रशेखर असहाय अवस्था में बिस्तर पर पड़े है और उनकी देखभाल (झूटी ही सही) के लिए किसी के पास समय नहीं था। अनु- छवि शर्मा #Sachin #Amit Shah #Manoj Kumar #Dilip Kumar #Lata Mangeshkar हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article