New Update
इनदिनों एक खबर खूब सर्कुलेट हो रही है।मेरे पास इस खबर को हफ्ते भर में 13 लोगों ने व्हाट्सअप पर भेजा है। खबर को फॉरवर्ड करनेवाले वो हैं जो मेरी सलामती चाहते हैं।पर वो उस खबर को कहां से पाए हैं ? उनको पता नहीं है। WHO ICMR के लेबल के हवाले से खबर में चेतावनी है कि कोरोना का कहर 20 से 108 घंटे के भीतर भारत मे तीसरे स्टेज यानी कम्युनिटी लहर में तब्दील हो जाएगा और कुछ ही दिन में 50,000 तक लोग मर सकते हैं। बाद में इस खबर पर किसी की प्रतिक्रिया आयी तो थोड़ा सुकून मिला- ''यह खबर पिछले साल की है और, कि WHO ऐसा कोई एनालिसिस नहीं करता।'' शरद राय
कुछ ऐसी ही खबर दिल्ली के एक मशहूर डॉक्टर के नामसे फैलाई गई थी, जिसमे डॉक्टर साहब कोरोना का इलाज करने की दवाइयां बताए होते है। उस प्रिस्क्रिप्सन को हर कोई एक दूसरे को भेजने लगा था।किसी ने वही मैसेज डॉक्टर साहब को भी भेज दिया था , वह तुरंत खंडन भेजे की ऐसा कुछ उन्होंने कहा या लिखा नहीं है। मैसेज डॉक्टर साहब के लेटरहेड पर था और किसी की हैंड राइटिंग में लिखा हुआ था। सोचिए, नाम ही नही , लेटरपैड और 'कम्पनी लोगो' तक इस्तेमाल करके फेंक खबरों के कारोबारी भ्रामक खबरें फैलाते हैं।
और, ऐसे कई वीडियो इनदिनों एयर में हैं जो सोसल मीडिया के अलग अलग प्लेटफॉर्मों से लोगों तक पहुचाए जाते हैं। कई वीडियो कहते हैं कोरोना कुछ होता ही नहीं है । कई कहते हैं सब सरकारी बकवास है। और, कई तो डॉक्टरों के मार्फत चैलेंज करने वाले होते हैं कि कोरोना रूपी झूठ को कोइ साबित करदे तो...। पिछली कोरोना लहर में ऐसे ऐसे वीडियो आये थे जिनमें ब्राजील और दूसरे देशों में कब्रों को दफनाने के लिए जगह ना होने का दृश्य था।बल्कि एक कदम और बढ़कर कुछ वीडियो यह भी दिखाए थे कि कब्रिस्तान में एडवांस बुकिंग हैं इसलिए पहले से गड्ढे खोदकर रखे जा रहे हैं। उफ्फ ! सत्यता का तकाजा यह होता भी तो क्या बताने-दिखाने की चीज थी ? पर वीडियो कारोबारियों और फेंक खबरों के बाजीगरों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या परोस रहे हैं और कोमल हृदय तथा कराहती जनता पर इसका क्या असर पड़ेगा?
हम फिल्मों पर लखते हैं, यह जानने वाले एक चाचा ने मुझपर ही तोहमत मढ़ दिया- ये फिल्मवाले हैं वही यह सब करना जानते हैं वीडियो बनाना गॉसिप लिखना... ये सब वही लोग करते हैं।आरोप लगाने वाले को यह नही पता था कि इंटरनेट और मोबाइल फोन के आज के जमाने मे बच्चा- बच्चा वीडियो बनाना और एडिटिंग करना जनता है। वैसे, मैं फिल्मवालों को स्वेत- पत्र नहीं देता हूं। हां, कह सकता हूं कि उनसे जुड़ी भ्रामक- खबरों का तरीका अलग है। यह बात भी मैं लॉजिक से परे फेसबुक की खबरों के आधार पर बताना चाहूंगा। जब अक्षय कुमार के लिए कोविड पॉजिटिव होकर अस्पताल जाने की खबर आयी, लोगों ने लिखा - 'अक्षय कुमार तो डाबर का च्यवनप्रास दो चम्मच खिलाकर कोरोना दूर कर रहे थे, उनके पास कैसे आगया?' ऐसाही कुछ अमिताभ बच्चन को लेकर भी लोग लिखने से बाज़ नही आए थे कि... जिस आदमी(अमिताभ) को खुद और उसके परिवार(ऐश्वर्या, आराध्या,अभिषेक) को कोरोना हो चुका हो, वो आदमी मोबाइल- टोन पर कोरोना से बचाव करने वाला संदेश कैसे दे सकता है? खैर, इन प्रतिक्रियाओं से अमिताभ की आवाज कॉलर टोन से हटा दी गई बाद में।
बहरहाल सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर हज़ारों खबरें तैर रही हैं। कोरोना वेक्सीन के शुरुवाती विरोध का हश्र हम देख चुके हैं। जिसका नतीजा है आज कोरोना जैसी महामारी बेरफ्तार हो गई है। वेक्सीन अगर जनवरी-फरबरी के महीने में ही तेजी से लगाई गई होती तो शायद आज अस्पतालों में यह भीड़ नहीं होती ! बेशक इम्युनिटी बुस्टर और आयुर्वेदिक आरोग्य वर्धक खबरें हमारे हित की हैं। लेकिन, जिस बीमारी के बारे में कुछ पता ही नही हो, जिसका नया स्ट्रीम रंग बदलकर सामने आरहा हो, उस बीमारी पर जुड़ी कोई भी खबर बहुत मायने रखती है।यह कहना- बीमारी है ही नही, सिर्फ सरकारी- प्रोपोगंडा है या फरमा- व्यवसाय का गेम है...ऐसी भ्रामक खबरें कतई नहीं डालें क्योंकि यह वही जानता है जिसको हो चुका है और जिसनेअपने प्रियजनों को खोया है! प्लीज... प्लीज फेंक खबरों के कारोबारियों भ्रामक खबरें मत फैलाइए। सोचिए जरा, अगर सिर्फ कोई एक आपकी खबर के प्रभाव से टेस्ट नही करवाता, अस्पताल नही जाता, मर जाता है... तो उसकी मौत का जिम्मेदार कौन है ?क्या आप नहीं हैं?