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अगर सब कुछ ठीक ठाक हो गया, जैसा सोचा गया है तो साल 2018 में संगीत जगत से जुड़े लोगों की बल्ले बल्ले है! IPRS ( इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी) कानून पारित होकर सरकार से स्वीकृति प्राप्त कर लेगा, उस के तहत संगीत से जुड़े तमाम लोग- गीतकार-संगीतकार म्यूजिक निर्माता कंपनी नियमित लाभ प्राप्त कर सकेंगे। संस्था के नए चेयरमैन जावेद अख्तर की माने तो “ नया संविधान और नया संचालक मंडल एक नए युग में प्रवेश करेगा जहां लेखक और प्रकाशक में टकराव नहीं सहयोग सहयोगत्मक रवैया रहेगा। इसमें हर एक का सुखद भविष्य होगा!”
बता दें कि इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी (प्च्त्ै) वह संस्था है जो 1969 से गीतकार संगीतकार और म्यूजिक कंपनी के लिए काम करती है। इसके तहत कहीं भी गीत- संगीत बजता है चाहे स्टेज पर, होटल की लॉबी में, रेडियो, टीवी पर बैकग्राउंड म्यूजिक के रूप में- जहां कहीं भी म्यूजिक प्ले किया जाता है या बेचा जाता है उनको यह संस्था अनुमति देती है एक पेमेंट लेकर। जो उनसे जुड़े लोगों को लाभ के रुप में दिया जाता है. यह लाभ गीतकार संगीतकार और संगीत कंपनी को जाता है (जिसको प्रकाशक कहते हैं) ऐसे ही साहित्य से जुड़े कॉपीराइट को भी जो संगीत से जुड़ा है तो लाभांश दिए जाने का प्रावधान है। पिछले कुछ समय से प्च्त्ै को लेकर बड़ी भ्रांतियां बन गई थी। करीब 25 सौ करोड़ रुपए के लेन देन में 3 संगीत कंपनियों पर घपले का सर्च चल रहा है। अब, नया चुनाव करा कर संस्था की नई बॉडी बनाई गई है, संविधान में बदलाव किया गया है। संस्था के चेयरमैन जावेद अख्तर इस नए प्च्त्ै को कानूनी जामा पहनाने के लिए कटिबद्ध हैं। अगर सबकुछ जैसा कहा जा रहा है हो गया तो शुभा मुद्गल के अनुसार- “जो अपने जीवन यापन के संघर्ष में है चाहे गीतकार हों, संगीतकार हो यह सोसाइटी उनके लिए इनकम का नियमित साधन बना सकेगी या एक तरह से उन सबके लिए पेंशन का प्लान जैसा भी होगा म्यूजिक पब्लिशर के लिए इन्वेस्टमेंट का बेहतर रिटर्न प्लान होगा बहरहाल लगता है. नया साल 2018 संगीत की दुनिया वालों को नया तोहफा लेकर आया है। हम यही उम्मीद करेंगे-सपने सच हो जायें।
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