सर्वोच्च न्यायालय ने ‘विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध की धारा 497 पर फिर एक बार चर्चा करने के लिए लोगों को विषय दे दिया है। यह टॉपिक बॉलीवुड प्राणियों के लिए वैसा ही है जैसे LGBT की धारा 377 को विषय बनाये जाने पर बात सामने आई थी। ‘मायापुरी’ पहली पत्रिका है जिसने पाठकों को बताया था कि वह टॉपिक तो बॉलीवुड फिल्मों के लिए पहले से ग्राह्य था। कानून बाद में निरस्त हुआ, हिन्दी-फिल्में पहले से LGBT विषय पर बन रही थी। अब वैसा ही कुछ ‘। Adultery’ - विवाहेत्तर विषय पर हिन्दी-फिल्मों के बनाये जाने की बात हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं। धारा 497 अब निरस्त होने की चर्चा हुई है, फिल्म - इंडस्ट्री इस विषय पर पहले ही कई गंभीर फिल्में दे चुकी है।
याद कीजिए - 1963 में बनी फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ (सुनील दत्त-लीला नायडू अभिनीत)। यह फिल्म मशहूर नेवी ऑफिसर नानावती -कांड पर आधारित थी। पिछले साल इसी विषय पर फिल्म ‘रूस्तम’ (अक्षय कुमार अभिनीत) आई थीं जिस फिल्म के लिए अक्षय कुमार को नेशनल अवॉर्ड भी मिला था। विनोद पांडे निर्देशित फिल्म ‘एक बार फिर’ (दीप्ति नवल, सुरेश ओबेराय) की विषयवस्तु भी विवाहेत्तर यौन-सम्बन्ध वाली फिल्म थी। जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था। ‘एक ही भूल’, ‘रिहाई’, ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’, ‘पंचवटी’, ‘अस्तित्व’, ‘कभी अलविदा ना कहना’, ‘मर्डर’, ‘मनमर्जियां’ वगैरह ऐसी ही फिल्में थीं जो विवाहेत्तर यौन-संबंधों के टॉपिक पर आधारित थीं विवाहिता-स्त्री के सेक्सुअल-डिजायर पर सवाल उठते रहे हैं और ये फिल्में उन्हीं अरोपों-प्रत्यारोपों का जवाब देने के लिए बनी हैं। माननीय न्यायाधिशों ने विषय को गंभीरता से लेते हुए ‘। Adultery’ को मान्य किया है कि औरत सिर्फ ‘भोग्या’ नहीं हैं। उसके शरीर और मन पर किसी पति रूपी पुरूष का एकाधिकार असंविधानिक है। फिल्मों में इस सोच और गहन और मंथन को सरल कहानियों में परोसा है। सचमुच एक बार फिर साबित हुआ है कि फिल्में समाज की रूढ़ परम्पराओं को दूर करने में अगुवाई करती हैं।
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