लोग कहते हैं सिनेमा बदल गया, कोई कहता है सिनेमा मर गया ! By Sharad Rai 08 Nov 2017 | एडिट 08 Nov 2017 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर तब्दीलियां अब दिख रही हैं। नई और पुरानी सोच की जंग शुरू है फिल्म इंडस्ट्री में। और, दर्शक बिल्कुल निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। मेरा सवाल है क्या सिंसिअरिटी के साथ सिनेमा बनाने वाले हैं आज ? यह सवाल उठाते हैं 46 वर्ष से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी सेवाएं दे रहे वरिष्ठ फिल्मकार कमल मुकुट। मुकुट जो निर्माता हैं, वितरक हैं, एक्जिबीटर हैं, फाइनेन्सर हैं, थिएटर्स-ओनर हैं और तमाम फिल्मों के डिजाइनर व प्रेजेन्टर रहे हैं, कहते हैं- कितने फिल्मकार है जो सिनेमा को पहचानते हैं? सिनेमा के बदलाव का ताजा स्वरूप है- नई फिल्म ‘शादी में ज़रूर आना’। राजकुमार राव के हीरोशिप (सुपर स्टार स्टेटस से परे) वाली यह फिल्म ‘टॉयलेट-एक प्रेमकथा’, ‘न्यूटन’,‘बरेली की बर्फी’ जैसी फ्लैवर वाली फिल्मों की कड़ी में एक ताजगी भरा तड़का है। यह हो रहा है बदलाव, जो दिख भी रहा है। विचारात्मक सवाल है- बात कहां फंस रही है? क्यों आज पारिवारिक पृष्ठभूमि वाली फिल्में पर्दे से गायब हो रही हैं? जवाब भी मुकुट ही देते हैं- ‘हमने ‘महल’, ‘रजिया सुल्तान’, ‘गदर’, ‘क्षत्रिय’ जैसी फिल्में दीया और अब अंतराल के बाद ‘शादी में ज़रूर आना’ दे रहा हूं। और, यह कह रहा हूं कि सिनेमा देखने जरूर आना... जानते हैं क्यों? क्योंकि हमें सिनेमा के विन्डो के पीछे का गणित पता है, मार्केटिंग पता है।’ सचमुच आज दर्शक की सोच क्या है, किसको सिनेमा दिखाया जा रहा है, यह जानकर फिल्म बनाएंगे तो दर्शक आएंगे। विन्डो के आगे ‘स्टार’ को दिखाकर फिल्म बनेगी, भाई-भतीजावाद और पैसा फेंक तमाशा देख, अच्छी फिल्म बनाईये तब दर्शकों से कहिये-सिनेमा देखने जरूर आना...! - संपादक #Shaadi Mein Zaroor Aana हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article