फिल्म इंडस्ट्री में आरक्षण का कोटा By Mayapuri Desk 10 Jan 2019 | एडिट 10 Jan 2019 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर बहुत चर्चा है इस समय देश में आरक्षण के नये कोटे की! पूरा सरकारी तंत्र और राजनैतिक गलियारे में आरक्षण एक जबरदस्त मुद्दा बनकर उभरा है। पर क्या कभी आपने सोचा देश की सबसे बड़ी नाम-दाम देने वाली संस्था फिल्म इंडस्ट्री में भी यह व्यवस्था लागू है, लेकिन अघोषित-बिना किसी नियम कानून के! आईये देखें, कैसे ‘आरक्षण’ होता है बॉलीवुड में। सबसे पहले ‘रिजर्व कैटेगरी’ की शुरूआत बॉलीवुड से ही होती है। हर निर्माता-निर्देशक सबसे पहले अपने पुत्र-पुत्रियों को ही मौका देता है। उनमें टेलेन्ट हो या ना हो (टेलेन्ट गया भाड़ में-बतर्ज डाक्टर्स, इंजीनियर्स के चुनाव चयन की तरह)। फिर आती है- ‘स्पेशल केटेगरी’ - जिसके तहत कोई भी निर्माता चाहता है किसी ‘स्टार सन’ या ‘स्टार-पुत्री’ को ब्रेक देना, ताकि फिल्म शुरू होते ही न्यूज बन जाए। ऐसा मौका किसी दूसरे निर्माता को देने की बजाय इन दिनों हमारे स्टार खुद ही निर्माता बन जाते हैं (जैसे- राजनीति के खिलाड़ी अपने बच्चों को ही चुनाव टिकट दिलाते हैं)। इस हालत में चतुर निर्माता किसी दूसरे क्षेत्र के चर्चित चेहरे ढूंढते हैं (जैसे - कई बार नेताओं के बच्चों को ब्रेक दिया जाता है या स्पेशल एपियरेन्स में किसी नेता को पर्दे पर पेश किया जाता है)। स्पोर्ट्स की दुनिया को भी इसी सोच के साथ जोड़ा जाता है। महेन्द्र सिंह धोनी हो, श्रीशांत हो, साइना नेहवाल हों... वगैरह इसी सोचधारी निर्माताओं द्वारा पर्दे पर पेश किए जाते हैं। फिल्म की विषय वस्तु-‘स्पोर्टस मैन’ भी इसी सोच का हिस्सा हैं, ताकि न्यूज बने और स्पोर्ट्स प्रेमी आकर्षित हों। अब, अगले चरण में बॉलीवुड में सबसे महत्वपूर्ण कोटा है फाइनेन्स का। जो पैसा लगाता है वो किसी गंगू राम को हीरो बनाये या रमिला छमिया को। ज्यादातर किसी ‘छमिया’ धाप हीराइन को ही मौका दिया जाता है। यह कम बजट निर्माताओं का काम है। और जो बड़े बजट फाइनेन्सर हैं वो स्टार पर जुआ खेलते हैं। यहां भी, टेरिटोरियल आरक्षण है। जिस स्टार की जितनी बड़ी प्राइस है उतनी पैसे वाली बड़ी टेरिटरी की कमाई उस स्टार को जाती है। स्टार पैसे नहीं लेते, उस अपनी ‘प्राइस’ के बदले वे फिल्म में पार्टनरशिप ले लेते हैं। आमिर खान, अक्षय कुमार, शाहरुख खान (बाहर के बैनर की) फिल्में ऐसे ही करते हैं। इसके बाद जो कम बजट वाले निर्माता हैं वो गणित लगाते हैं कि किसको काम देने से ‘पैसे’ आ सकते हैं? फिर एक तब का उनका है जो फेस वैल्यू (जैसे - टीवी स्टार) की खोज करता है। और कुछ लोग हैं (जैसे -पंजाबी पॉप गायक या दूसरी भाषाओं के एलबम-गायक) जो खुद को खुद के खर्चे पर लॉन्च करने के लिए अपने लिए पैड तैयार करते हैं। संक्षेप में कहें तो बॉलीवुड आरक्षण के कोटे से सर से पांव तक ‘आरक्षित’ है। जय हो आरक्षण के अघोषित कानून की!! - संपादक #bollywood #reservation हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article