सचमुच, कहावत है तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात! जीवन और सिनेमा साथ-साथ चलते हैं, एक बार फिर यह कहावत चरितार्थ हो रही हैं वैज्ञानिकों (इसरो) ने ‘चंद्रयान-2’ लॉन्च किया है जो चंद्रमा पर संभवतः 7 सितम्बर को उतरेगा, इसी के समान्तर बॉलीवुड की एक फिल्म ‘मिशन मंगल’ यानी- ‘मंगलयान’ भारत के थिएटरों में 15 अगस्त को उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है। संयोग यह है कि दोनों की विषय सूची में अंतरिक्ष की कक्षा में जाकर ग्रहों की धरती तलाशना है। यह वैसे ही हुआ है जैसे जब पहली बार चंद्रमा की धरती पर आर्मस्ट्रांग और एल्डरिन दो एस्ट्रोनॉट उतरे थे, उससे पहले बॉलीवुड की एक छोटी फिल्म ‘ट्रिप टू मून’ (1967 में) थिएटरों में आयी थी - जिसके एस्ट्रोनॉट यानी देसी सुपरमैन थे- दारा सिंह। इस बार सब कुछ ठीक रहा तो (ईश्वर करे ऐसा ही हो!) ‘चंद्रयान 2’ की लैंडिंग से पहले बॉलीवुड के एस्ट्रोनॉट अक्षय कुमार (और साथी वैज्ञानिक कलाकार - विद्या बालन, सोनाक्षी सिन्हा, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी, नित्या मेनन आदि) अपनी फिल्म ‘मिशन मंगल’ के साथ थिएटरों में रहेंगे। वैसे, बता दें कि ‘मिशन मंगल’ भारत के अंतरिक्ष संगठन (ISRO) में तैयार उपग्रह को ‘मार्स’ के लिए भेजे जाने की घटना पर आधारित कहानी है। ‘नारी शक्ति ने बनाया भारत को अंतरिक्ष विज्ञान की हस्ती’, भारत में अब महिला सशक्तिकरण खुल कर सामने आ रहा है , इसका जीता जागता उदाहरण ये है की कुछ साल पहले भारत में एक महिला (निर्मला सीतारमण) को पहली बार रक्षा मंत्री बनाया गया , और एकबार फिर मोदी सरकार ने निर्मला सीतारमण को देश की (वित्त मंत्री ) फाइनेंस मिनिस्टर बनाकर एक नजीर पेश की है ,इसके एक और कदम आगे बढ़ कर हमारे (इसरो) के वैज्ञानिको ने मिशन चंद्रयान 2 के मिशन की कमांड 2 महिला वैज्ञानिको रितु करिधल श्रीवास्तव और मुथैया विनीता के हाथ सौंपी, और मिशन सफल रहा, इसको देखते हुए अब लगता है कि बॉलीवुड को भी समझ में आ गया है की अब फिल्मां में महिलाओं को सिर्फ एक अबला नारी देखने के दिन चले गए हैं , शायद इसलिए फिल्म ‘मिशन मंगल’ में भी 5 महिलाओं वैज्ञानिको के में रोल फिल्म एक्ट्रेसस को दिखाया गया है , हमारी बॉलीवुड के निर्माताओं और निर्देशको से ये गुजारिश है की अब वो फिल्मो में महिलाओं को सिर्फ एक शोपीस या डांस आइटम, या रेप सीन के लिए न इस्तेमाल करे बल्कि महिलाओं को एक सुपर पावर की तरह पेश करे,तभी तो जमाना देखेगा, हमारा देश महान। यानी-सच और फिक्शन साथ-साथ चल रहे हैं। बॉलीवुड के लिए चंद्रमा हमेशा आकर्षण का विषय रहा है। वैज्ञानिकों ने चंद्रमा और मंगल की परिकल्पना को अब बताना शुरू कर दिया है किन्तु फिल्मी कवि और गीतकारों के लिए यह विषय हमेशा कोतुहल भरा रहा हैं गुलजार ने बहुत पहले फिल्म ‘बंदिनी’ के लिए लिखा था- ‘‘मोरा गोरा रंग लइले..’’ जिसमें वर्णन था चांद का- ‘‘बदरी हटाके चंदा चुपके से झांके चंदा’’। उसके बाद तो पचासों गीत फिल्मों में आये थे ‘चाँद’ को लेकर। इस बार जब ‘चंद्रयान 2’ अंतरिक्ष में गया है, कहने वाली बात यह है कि सिनेमा और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं और साथ-साथ चलते हैं।
वैज्ञानिक ‘चंद्रयान’ पर जा रहे हैं तो, बॉलीवुड वाले ‘मंगलयान’ पर !
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