‘‘हमारी फिल्म‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ रोटी और सैनेटरी पैड के बीच की लड़ाई है.’’ - सुशील जांगीरा By Mayapuri Desk 30 May 2021 | एडिट 30 May 2021 22:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर खुद को जन्मजात लेखक व निर्देशक मानने के साथ ही ‘‘पावर ऑफ पेन‘‘ और ‘‘सिनेमा के प्रभाव‘‘ में यकीन करने वाली लेखक, निर्देषक, एंकर व अभिनेत्री सुषील जांगीरा निरंतर कंटेंट प्रधान सिनेमा बना रही हैं। वह स्वयं को स्वाभाविक और विचारशील लेखक मानती हैं। उन्होंने लेखक व निर्देशक के रूप में तीन वर्ष पहले जब पहली लघु फिल्म ‘मेरी रॉकस्टार वली जीन्स’ (रॉकिंग माई रॉकस्टार जीन्स) का निर्माण किया,तो उन्हें कई राष्ट्ीय व अंतरराष्ट्ीय अवार्ड से नवाजा गया था। -शान्तिस्वरुप त्रिपाठी इन दिनों वह अपनी दूसरी लघु फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ को लेकर चर्चा में हैं.सुषील जांगीरा ने अपनी इस फिल्म में ‘एक महिला के लिए स्वच्छता और भूख में से किसकी ज्यादा अहमियत है?’ इस मुद्दे को बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से उठाया है। सुषील जांगीरा लिखित व निर्देषित यह फिल्म अब तक कई विश्व स्तरीय फिल्म फेस्टिवल/फिल्म महोत्सवों पुरस्कार और प्रशंसा बटोर चुकी है। इस लघु फिल्म में मासिक धर्म पर एक बेहद भावुक गीत ‘पेट भरुं या लाज ढकूंू’ है, जिसे स्वयं सुशील जांगीरा ने लिखा है। आपको ‘‘फीड आर ब्लीड इंडिया’’ बनाने की प्रेरणा कहां से मिली? देखिए, मुझे कंटेंट आधारित सिनेमा करने का शौक है। ऐसा सिनेमा जो आपके दिल को छू जाए और अपने अस्तित्व पर सवाल उठाए? यॅॅंू तो महिलाओं के मासिक धर्म और सैनेटरी पैड को लेकर लगातार फिल्में बनाई जा रही हैं। लेकिन भिखारी महिलाओं की परवाह कोई नहीं करता। आखिर यह महिलाएं सड़कों पर रहते हुए माहवारी के दिनों से कैसे निपटती हैं? इस सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए मैंने लघु फिल्म ‘‘फीड आर ब्लीड इंडिया’’ बनायी, जिसे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्ीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। यह लघु फिल्म भारत की सड़कों पर रहने वाली भिखारी औरतों और उनकी मासिक धर्म से जुड़ी दीन दशा के बारे में है। इसमें जो ज्वलंत प्रश्न उठाया गया है, वह यह है कि अगर हम उन्हें एक सैनेटरी पैड दें या रोटी दें, तो वह इनमें से पहले क्या उठाएंगी ? और उनका जवाब/सच्ची प्रतिक्रिया इस ब्लैक एंड व्हाइट लघु फिल्म में व्यक्त किया गया है। हमने इसे भारत के तीन मुख्य शहरों- मुंबई, दिल्ली और अमृतसर में चिलचिलाती गर्मी और कंपकपाती सर्दी में फिल्माया है। यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म अंधेरे, नीरस और गंदे (अनहेल्दी) जीवन का प्रतिनिधित्व करती है। जी हाॅ! यह फिल्म बेघर भिखारी भारतीय महिलाओं की मासिक धर्म के समय रक्तस्राव की तकलीफों को रेखंाकित करती है। जिसे वह अभी भी सड़कों पर सोते समय झेलती है। यह कहना बहुत आसान है कि हमें साफ सफाई पर पहले ध्यान देना चाहिए। लेकिन भूखे पेट भजन भी नही होते। भूख से बड़ा कुछ नहीं। कुल मिलाकर हमारी फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ रोटी और सैनेटरी पैड के बीच की लड़ाई है। इस लड़ाई को कैसे जीता जा सकता है? सही षिक्षा ही पहला उपाय है। पढ़ी लिखी लड़की भीख नही माॅंगेगी। वह काम करके ही अपनी जरुरतों के लिए धन इकट्ठा करेगी। षिक्षित लड़की भीख मांगने की बजाय कोई न कोई स्किल विकसित कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहेगी। सैनेटरी पैड को लेकर कई फिल्में बनी। इनका क्या असर हुआ? सिनेमा का असर होता है। मैं कलम की ताकत में यकीन करती हॅूं। मैं दस वर्ष की उम्र से हिंदी में कविताएं व कहानियां लिखती आयी हॅूं। आठ वर्ष की उम्र में मैंनेे देषभक्ति वाली कविता लिखी थी। मैं एंकर,माॅडल व अभिनेत्री बहुत बाद में बनी। मैं सिनेमा की ताकत में भी उतना ही यकीन करती हूं। मैं लोगांे से कहती हूं कि पूरी षिद्दत से सिनेमा बनाओ। सिनेमा आपकी आवाज को दूर तक पहुॅचाता है। मुझे लगता है कि सिनेमा ही एकमात्र माध्यम से जिसके माध्यम से हल्के-फुल्के मनोरंजक तरीके से एक बड़े मुद्दे को लोगों तक पहुॅचा सकते हैं। अब तो मोबाइल की मदद से भी सिनेमा बनाया जा सकता है। आप षुरूआत मंे देषभक्ति वाली कविताएं लिखती थी। अब किस तरह की कविताएं लिख रही हैं। कभी आपने कविताओं के माध्मय से महिलाओं की समस्याओं को पेष किया? जी हाॅ! किया है.मैं टीनएजर/12 वर्ष की उम्र में फिलाॅसिफिकल/दार्षनिक कविताएं लिखने लगी थी। लेखक किसी को देखकर नही बनता। वह तो अपने अंदर से उद्धेलित होता रहता है। लेखन के लिए विचार अंदर से ही आते हैं। पहले मैं कागज पर लिखती थी, अब लैपटाॅप व सेल्यूलाइड के परदे पर लिख रही हॅूं.मेरे भाव व भाषा वही है। मैं हिंदी में ही लेखन करती हॅूं। ‘पेट भरुं या लाज ढकूं’ यह गाना मैने लिखा,जो कि लघु फिल्म‘फीड आर ब्लीड इंडिया’का हिस्सा है। इन दिनों जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी गरमाया हुआ है? जी हाॅ! जलवायु तो बदल रही है। प्रदूषण बढ़ रहा है। पेड़ कटते जा रहे हैं। सड़क पर गंदगी का अंबार नजर आता है। इस दिषा में काफी लोग काम कर रहे हैं। हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article