युद्ध गवाह हैं...
जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ है सन् 1965,1971 या कारगिल के बाद की एयर स्ट्राईक में, हमारे वीर जांबाज सैनिकों के पराक्रम के बीच एक गुप्तचरी की लोमहर्षक कहानी चलती रही है। सिनेमा के पर्दे पर उन अनजाने-देशभक्तों के पराक्रम को काल्पनिकता का जामा पहनाकर पेश किया गया है। कारगिल हो, राजी हो या, उरी, हो हमारे दर्शकों ने इन फिल्मों की सरआँखों पर बिठाया है। अब, जब कुछ समय पहले ही पुलवामा अटैक की वारदात हुई है, भारतीय-प्रेक्षक पर्दे पर फिर किसी ‘उरी’ जैसी फिल्म को देखने के इंतजार में हैं। सिनेमा-मेकर भी ऐसे मौकों पर पीछे नहीं रहते। लीजिये, जॉन अब्राहम को लेकर बनाई गई एक और स्पाई फिल्म ‘रॉ’ अब दर्शकों के सामने है।
रॉ (त्।ॅ) यानी- ‘रोमियो अकबर वाल्टर’ के तीन रूपो वाले पोस्टर देखकर उत्सुकता बढ़ जाती है कि फिल्म में है क्या? ‘रॉ’ एक ऐसा गुप्तचर संगठन है जो स्वतंत्र रूप से काम करता है, जिसके बारे में किसी को पता तक नहीं चलता और इसके एजेन्ट ऐसे देशभक्त होते हैं जो रोमाचंक, रोमांटिक और जान हथेली पर रखकर काम करते हैं। इनका खुफिया एजेन्सी से कोई लेना देना नहीं होता। ‘रॉ’ के निर्देशक रॉबी ग्रेवाल ने फिल्म के नाम को भी शायद इसीलिए और रूप में परिभाषित कर भ्रम की स्थिति को बनाये रखा है। फिल्म के कलाकार है। जॉन अब्राहम, मौनी राय, जैकी श्रॉफ, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, सिकंदर खेर, बोमन ईरानी आदि।भारत-पाकिस्तान के बीच सन् 1971 में हुए युद्ध के परिणाम स्वरूप ढाका के रमना रेसकोर्स मैदान में एक बड़ा सैनिक सर्मपण हुआ था, और नतीजतन बंगलादेश का जन्म हुआ था। इस पृष्ठभूमि में उपजी एक जासूसी कथा है ‘रॉ’ जिसके मुख्य नायक हैं जॉन अब्राहम ऐसी फिल्मों में खूब जंचते है, ‘पोखरण, ‘बाटला हॉउस’ जैसी फिल्मों से जुड़े जॉन अब्राहम कहते हैं- यह मेरी पसंद का विषय था। जब निर्माताओं (बन्टी वालिया, अजय कपूर, रॉबी ग्रेवाल, धीरज माधवन, विवेक भटनागर) की तरफ से प्रस्ताव आया और निर्देशक ने फिल्म की थीम सुनाया, मैं चहक पड़ा। और अब वही कथानक ‘रोमियो अकबर वॉल्टर’ यानी ‘रॉ’ आपको मोहने आ रही है.... तैयार रहिये देश-प्रेम को एक और सेल्यूट देने के लिए।